राहुल गांधी भारत की कांग्रेस पार्टी के प्रमुख नेता हैं और साल 2019 के आम चुनावों में पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे. बीते शुक्रवार को एक बोगस अवमानना के आरोप में दोषी ठहराये जाने और दो साल की सज़ा मिलने के महज एक दिन बाद ही उन्हें भारतीय संसद से निष्कासित कर दिया गया.
गांधी का निष्कासन, असल में सत्तारूढ़ हिंदू श्रेष्ठतावादी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) द्वारा उन्हें बदनाम करने और चुप कराने के लिए हफ़्तों तक चलाए गए दुष्प्रचार अभियान का नतीजा था.
सोमवार, 13 मार्च से लेकर गुरुवार 25 मार्च तक बीजेपी सांसदों ने संसद की कार्यवाही चलने नहीं दी. उनकी मांग थी कि फ़रवरी में ब्रिटेन में एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने भारत को 'बदनाम' किया कि भारत में लोकतंत्र 'ख़तरे' में है और इसके लिए उन्हें माफ़ी मांगनी चाहिए.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके सबसे वफ़ादार गृहमंत्री अमित शाह, गांधी द्वारा उनके शासन के तानाशाही रवैये का लगातार भंडाफ़ोड़ किए जाने से बेशक चिढ़े हुए थे. उन्होंने गांधी के हमले को अपमान की तरह लिया कि आरएसएस ने न्यायपालिका समेत सरकार के सभी अंगों में घुसपैठ कर लिया है. आरएसएस- हिंदू साम्प्रदायिकों की नागरिक सेना और राष्ट्रवादी पुनर्जागरण के लिए प्रतिबद्ध पर्दे के पीछे काम करने वाला संगठन है जिसने बीजेपी को खड़ा किया और मोदी और शाह समेत बीजेपी का नेतृत्व उसके प्रति लगातार वफ़ादारी जताता रहता है.
लेकिन अगर बीजेपी ने ये तय कर लिया है कि वो गांधी के ख़िलाफ़ क़ानूनी रूप से बदला लेगी और लंबे समय से जिसका एक बड़ा मुद्दा कांग्रेस पार्टी को निशाना बनाने का ही रहा है, इन सबके बावजूद इसका एक बड़ा कारण है कि उन्होंने सरकार और ख़ासकर मोदी का, भारतीय अरबपति गौतम अडानी और उनके अडानी ग्रुप के क़रीबी रिश्ते पर तीखा सवाल खड़ा किया था.
जनवरी के आख़िर में वॉल स्ट्रीट की एक शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च की एक रिपोर्ट आने के बाद अडानी ग्रुप और इससे जुड़ी कंपनियों के शेयरों की क़ीमतें आधी हो गईं. इस रिपोर्ट में अडानी ग्रुप पर 'कारपोरेट इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला' करने का आरोप लगाया गया था.
ऐसा लगता है कि अडानी ग्रुप के संकट से उपजे तत्कालिक आर्थिक गिरावट पर सरकार और भारतीय वित्तीय नियामकों ने काबू पा लिया है, लेकिन ये लगातार मोदी सरकार के लिए राजनीतिक रूप से ख़तरा बना हुआ है. मोदी का गौतम अडानी के साथ दशकों पुराना निजी रिश्ता रहा है और एयरपोर्टों, बंदरगाहों और खदानों समेत सरकारी संपत्तियों के निजीकरण से उनकी कंपनियों को अरबों डॉलर का फ़ायदा पहुंचा है. जबसे मोदी सरकार 2014 में केंद्र की सत्ता में आई और अडानी का संकट शुरू होने से पहले तक, अडानी की निजी संपत्ति में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की गई, उनकी दौलत 8 अरब डॉलर से 140 अरब डॉलर तक पहुंच गई और वो कुछ ही समय के लिए सही एशिया के सबसे बड़े अरबपति बन बैठे थे.
जब संसद में पिछले बजट सत्र के दौरान राहुल गांधी ने अडानी मामले को कांग्रेस की ओर से होने वाले हमले का मुख्य बिंदु बना दिया और मोदी अडानी साठगांठ की जांच की मांग की तो बेजीपी को 'हिस्टीरिया का दौरा' पड़ गया. लोकसभा स्पीकर, जो एक बीजेपी सांसद हैं, उन्होंने बार बार गांधी का माइक्रोफ़ोन बंद कर दिया और मोदी से अडानी के रिश्ते पर उठाए गए उनके सवालों को संसदीय कार्यवाही से निकालने का आदेश दे दिया.
इन सबके बीच, 16 फ़रवरी को गुजरात के बीजेपी विधायक पुर्नेश मोदी ने गांधी के ख़िलाफ़ 2019 के एक मुकदमे को फिर से ज़िंदा कर दिया. यही वो मुकदमा है जिसमें पिछले हफ़्ते कांग्रेसी नेता को सज़ा हुई और इसके दूसरे ही दिन उनकी संसद से सदस्यता रद्द कर दी गई. भारत के क़ानून के मुताबिक, अगर किसी सांसद को दो साल या उससे अधिक की सज़ा मिलती है तो उसकी सदस्यता रद्द की जा सकती है.
हालांकि गांधी को इस सज़ा को चुनौती देने का क़ानूनी अधिकार है, फिर भी सरकार ने आनन फानन में उनकी संसदीय सीट को खाली घोषित कर दिया.
गांधी के ख़िलाफ़ “मानहानि” का मुकदमा साफ़ तौर पर ग़लत आरोपों पर आधारित है और इसका आधार बदनाम ब्रिटिश औपनिवेशिक क़ानून है.
13 अप्रैल 2019 को कर्नाटक के कोलार में एक चुनावी रैली के दौरान दिए गए भाषण पर ये मुकदमा हुआ था. हिंदी में बोलते हुए गांधी ने भ्रष्टाचार के लिए बीजेपी सरकार को उखाड़ फेंकने का आह्वान किया था. उन्होंने कहा, 'मेरा एक सवाल है, इन सबके नाम, इन सब चोरों के नाम, मोदी मोदी मोदी कैसे हैं? नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी. अगर हम थोड़ा और तलाशें तो ऐसे कई और मोदी मिल जाएंगे.'
नीरव मोदी एक भगोड़ा हीरा व्यापारी और ज्वेलरी स्टोर चेन का मालिक है, जिसे भ्रष्टाचार, मनी लॉंड्रिंग, फंड के हेरफेर, फर्ज़ीवाड़ा समेत कई अपराधों के लिए भारत सरकार और इंटरपोल तलाश रही है.
ललित मोदी, एक जाने माने उद्योगपति परिवार का वारिस है और इंडियन प्रीमियर क्रिकेट लीग का संस्थापक है. मनी लॉंड्रिग के आरोपों का जवाब देने से बचने के लिए वो देश से भाग गया और सालों से लंदन में रह रहा है.
जब वसुंधरा राजे पहली बार राजस्थान में बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री बनीं तो ललित मोदी का उनसे इतना क़रीबी रिश्ता था कि उसे मीडिया और विपक्ष की ओर से राज्य का 'सुपर चीफ़ मिनिस्टर' कहा जाता था.
राहुल गांधी के 2019 में कोलार में दिए गए भाषण के तीन दिन बाद पुर्नेश मोदी ने कांग्रेस नेता पर पूरे 'मोदी समाज' को बदनाम करने का आरोप लगाते हुए एक आपराधिक शिकायत दर्ज कराई.
ये आरोप अनर्गल था. जैसा कि बहुत सारे टिप्पणीकारों ने भी कहा, 'मोदी समाज' जैसी कोई चीज़ नहीं है, भारतीय राजनीतिक सत्ता और मीडिया जिन अर्थों में इस्तेमाल करता है उस अर्थ में भी नहीं, जबकि इन दोनों ने तो पैसे और पॉवर के लिए दशकों से जातिवाद और सांप्रदायिकता को मज़दूर वर्ग को बांटने के लिए बढ़ावा दिया. मोदी कोई जातीय समूह नहीं है. इस उपनाम के लोग कई उत्तर भारतीय राज्यों में रहते हैं और ये 'निचली' या 'उच्च' जाति से हो सकते हैं और अलग अलग धर्मों से भी हो सकते हैं.
और ये भी कि गांधी के ख़िलाफ़ मामला गुजरात कोर्ट में दर्ज कराया गया, न कि कर्नाटक में जहां उन्होंने वो भाषण दिया था या दिल्ली में जहां वो रहते हैं. ये सिर्फ ग़लत और राजनीतिक रूप से प्रेरित किस्म के आरोपों को अंतिम नतीजे तक पहुंचाने के लिए ही किया गया था. गुजरात पर बीजेपी का शासन है, यहीं से नरेंद्र मोदी आते हैं और 1996 से ही क़रीब एक दशक तक इस राज्य के मुख्यमंत्री रहे. सभी जानते हैं कि राज्य में न्यायपालिका धुर बेजीपी समर्थक है और इसी न्यायपालिका ने, 2002 में मुस्लिम विरोधी नरसंहार को भड़काने और उसमें मदद करने की मोदी और बीजेपी की भूमिका पर लीपापोती करने में अहम भूमिका निभाई थी.
भारत में अन्य क़ानूनी मामलों की तरह ही, राहुल गांधी के ख़िलाफ़ ये मामला कछुआ गति से चला, फिर भी इस मामले में शिकायतकर्ता बीजेपी विधायक पुर्नेश मोदी ने खुद भी एक साल तक की जानबूझ कर देरी की. और इसके बाद अचानक फ़रवरी में, जब अडानी के साथ नरेंद्र मोदी की भ्रष्ट सौदैबाजी को लेकर राहुल गांधी के आरोपों से बीजेपी बिफर रही थी, शिकायतकर्ता की अपील पर ये मुकदमा पुनर्जीवित हो गया, जोकि भारतीय क़ानूनी कार्रवाई में एक हैरतअंगेज़ बात ही है, इसके बाद आनन फानन में फैसला भी हो गया.
16 मार्च को मानहानि के मामले में जज ने कांग्रेस नेता को दोषी पाया और इसके तत्काल बाद ही उसने दो साल की अधिकतम सज़ा दे दी- और ये संयोग नहीं है कि उसने जनप्रतिनिधि क़ानून 1951 की धारा 8(3) के तहत संसद से अयोग्य घोषित करने के लिए जो अधिकतम सज़ा हो सकती है वो दी.
और इस इशारे पर, लोकसभा में बहुमत लेकर बैठी बीजेपी ने उसके अगले ही दिन गांधी को निष्कासित करने के पक्ष में मतदान कर दिया. इसके साथ ही उनके सभी संसदीय अधिकार छिन गए और सीट भी चली गई. अगर अपील के बाद सज़ा पटल जाती है तभी गांधी अगला चुनाव लड़ पाएंगे, जोकि अगले अप्रैल-मई 2024 में होने वाले हैं.
जिन लोगों ने 'अदृश्य' मोदी समाज का कथित अपमान करने के लिए गांधी को निष्कासित कराया वे खुद साम्प्रदायिक खेमे से आते हैं. इनमें अधिकांश, मोदी और शाह समेत, बहुत ही घिनौने और भड़काऊ बयान दे चुके हैं. उसी 2019 के चुनावी अभियान के दौरान शाह ने 'बांग्लादेशी प्रवासियों को दीमक कहा था और वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद बीजेपी सरकार एक एक घुसपैठिये को चुन चुन कर बंगाल की खाड़ी में फेंक देगी.'
गांधी के निष्कासन की विपक्षी दलों ने कड़ी निंदा की और चेतावनी दी कि सरकार सीबीआई, टैक्स डिपार्टमेंट, अन्य सरकारी एजेंसियों और अदालतों का इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों पर हमले करने के लिए बंद करे. पिछले महीने बीजेपी सरकार ने टैक्स विभाग के अधिकारियों को आदेश दिया कि वे नई दिल्ली और मुंबई के बीबीसी दफ़्तरों पर छापा मारें, जोकि कई दिनों तक चलता रहा. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि ब्रिटिश ब्राडकॉस्टर ने एक डॉक्यूमेंट्री प्रसारित की जिसमें 2002 के दौरान गुजरात में हुए मुस्लिम विरोधी नरसंहार में मोदी की भूमिका पर सवाल खड़े किए थे.
बीजेपी सरकार के विदेशी और सामाजिक आर्थिक नीतियों में कांग्रेस और विपक्षी पार्टियों के बीच कोई अंतर नहीं हैः मसलन, चीन के ख़िलाफ़ अमेरिकी सैन्य रणनीतिक आक्रामकता की नीति के प्रति भारत को अधिक से अधिक साझीदार बनाना; भारत के परमाणु हथियारों से लैस मिलिटरी का व्यापक विस्तार करना; निजीकरण के मार्फ़त निवेशक समर्थक माहौल को बढ़ाना, बड़े पूंजीपतियों और अमीरों को भयानक टैक्स छूट देना, ठेका मज़दूरी को और बढ़ाना; और कोविड महामारी के दौरान लोगों की ज़िंदगी पर मुनाफ़े को ऊपर रखना.
हालांकि हिंदू श्रेष्ठतावादी बीजेपी राजनीतिक सत्ता को अपने हाथ में केंद्रित करने के लिए दिन रात लगी हुई है और ये सब वो बुनियादी संसदीय नियमों को धता बताकर, केंद्र की ओर से नियुक्त राज्यपालों को राज्य सरकार के मामलों में दखल देने के लिए बढ़ावा देकर और अपने खिलाफ़ छोटी सी भी आलोचना को गद्दारी जैसा पेश करके कर रही है.
संसद से गांधी के निष्कासन पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने ट्वीट किया, 'अदालत के फैसले 24 घंटे के अंतर इतने आनन फानन में की गई कार्रवाई से मैं हैरान हूं और जबकि सभी जानते हैं कि एक अपील अभी प्रक्रिया में है. ये क्रूर राजनीति है और लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक़ है.'
बुर्जुआ प्रेस में प्रतिक्रियाओं को ख़ामोश करा दिया गया है. उदारवादी मीडिया के कुछ हिस्से, जैसे चेन्नई के हिंदू अख़बार ने अफ़सोस जताया, जैसे वो पहले बीजेपी की तानाशाही कार्रवाईयों और दंगों पर करते रहे हैं, मसलन, सरकार विरोधियों को अरबन नक्सलाइट घोषित करने, कश्मीर के ख़िलाफ़ 2019 में संवैधानिक तख़्तापलट करने, मुस्लिम विरोधी नागरिकता संशोधन क़ानून लाने, सरकार विरोधी प्रदर्शनों का हिंसक दमन और इनमें शामिल रहे कुछ लोगों के घर पर बुलडोज़र चलाने आदि को लेकर.
सत्ताधारी वर्ग का एक बड़ा हिस्सा, मोदी और धुर दक्षिणपंथी हिंदू श्रेष्ठतावादी कार्यकर्ताओं वाली बीजेपी को अपने सबसे बेहतरीन दांव के रूप में देखना जारी रखे हुए है. उसे लगता है कि वैश्विक संकटों के हालात में देश में मज़दूर वर्ग के शोषण को निर्दयता से तेज़ करने और दुनिया के पैमाने पर विश्व शक्ति बनने की उसकी सबकुछ हज़म करने वाली चाहत पूरा करने में वे ही सबसे उपयुक्त होंगे.
जबकि बीजेपी के लिए, विकास के मामले में भारत के दुनिया को पीछे छोड़ देने और मोदी को व्यापक जनसमर्थन हासिल होने के बड़े बड़े दावों के बावजूद, पार्टी जानती है कि वो एक सामाजिक उथल-पुथल के मुहाने पर बैठी है. ग़रीबी के स्तर वाली मज़दूरी, ख़राब रोज़गार, सरकार का निजीकरण अभियान और खर्चों में कटौती के उपायों, बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी और कृषि संकट ने बड़ी बड़ी हड़तालों और प्रदर्शनों में घी का काम किया है.
हाल ही में अपने 10 दिवसीय ब्रिटेन के दौरे में राहुल गांधी ने कहा था कि भारतीय लोकतंत्र को बीजेपी और आरएसएस से ख़तरा पैदा हो गया है, जबकि उन्होंने दशकों तक कांग्रेस पार्टी के अपने ही रिकॉर्ड के बारे में एक लब्ज़ नहीं कहा, जब कांग्रेस ने हिंदू दक्षिणपंथियों के साथ मिलकर धोखाधड़ी की और पिछले 30 सालों में उसने समाज में असंतोष पैदा करने वाले बाज़ार उन्मुख/निवेशक समर्थक 'सुधार कार्यक्रमों' के ज़रिए बड़े पूंजीपतियों की अगुवाई की भूमिका निभाई.
इसका ज़िक्र करते हुए कि 'पश्चिमी लोकतंत्र' यानी साम्राज्यवादी शक्तियां मोदी सरकार की तानाशाही कार्यवाहियों और साम्प्रदायिक एजेंडे पर चुप हैं, गांधी ने ये कह कर उनका समर्थन मांगा कि कांग्रेस सरकार, चीन के ख़िलाफ़ उनकी युद्ध की तैयारी में और जोर शोर से मदद करेगी. और सच है कि गांधी और कांग्रेस पार्टी मोदी सरकार पर उसके चीन के प्रति 'नरम' रहने को लेकर लगातार हमलावर रहे हैं.
स्टालिनवादी सीपीएम और सीपीआई और ट्रेड यूनियनों ने 'फासीवादी बीजेपी' से लड़ने के नाम पर दशकों तक मज़दूर वर्ग को राजनीतिक रूप से कांग्रेस पार्टी और अन्य दक्षिणपंथी जातिवादी और अंधराष्ट्रवादी पार्टियों के मातहत बनाए रखा. उन्होंने मज़दूर वर्ग के संघर्ष को ठेकेदारी के ख़िलाफ़ संघर्ष में उलझा कर, कांग्रेस और बीजेपी की केंद्र सरकार पर जनपक्षधर नीतियां लाने का दबाव बनाने के लिए बेकार के प्रदर्शनों के बहाने बड़े व्यवस्थित ढंग से मज़दूर वर्ग के संघर्ष को अलग थलग कर दिया.
बाकी दुनिया की तरह ही भारत में भी लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए मज़दूर वर्ग की एक स्वतंत्र राजनीतिक लामबंदी की ज़रूरत है. साम्राज्यवादी युद्ध के विरोध और सामाजिक बराबरी के लिए संघर्ष खड़ा करते हुए साम्प्रदायिक घटनाओं और तानाशाही के ख़िलाफ़ संघर्ष को एक सूत्र में पिरोना होगा.