यह हिंदी अनुवाद अंग्रेजी के मूल लेख का है, Tensions mount as India deploys 10,000 additional troops along its contested border with China जो मूलतः 2 अप्रैल 2024 को प्रकाशित हुआ था I
जैसे ही भारत-चीन सीमा विवाद पांचवें साल में प्रवेश कर रहा है, नई दिल्ली ने पश्चिमी तिब्बत से लगे राज्यों उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में चीन के साथ लगती विवादित सीमा पर 10,000 अतिरिक्त सैनिक तैनात कर दिए हैं.
तनाव का यह प्रसार, परमाणु हथियार संपन्न प्रतिद्वंद्वियों के बीच ऐलानिया जंग के ख़तरे को बढ़ाता है. स्पष्ट तौर पर इसके पीछे वॉशिंगटन का हाथ था और पिछली गर्मियों में भारतीय अधिकारियों ने खुलासा किया था कि वॉशिंगटन ने नई दिल्ली से पूछा था कि अगर अमेरिका चीन के साथ युद्ध छेड़ता है तो भारत पेंटागन को क्या मदद देगा. ये ऐसे वक्त में हो रहा है जब अमेरिका भारत-चीन सीमा विवाद में पहले से ज़्यादा दखल देने की कोशिश कर रहा है और ताईवान और एशिया में अपने सबसे बड़े क़रीबी देशों जापान, दक्षिण कोरिया और फ़िलीपींस के माध्यम से चीन पर आर्थिक, कूटनीतिक और सैन्य-रणनीतिक दबाव तेज़ कर रहा है.
दोनों देशों के बीच अपरिभाषित सीमा, वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर मई 2020 से ही दसियों हज़ार भारतीय और चीनी सैनिक तैनात हैं. चीन नियंत्रित अक्साई चिन से सटी भारत नियंत्रित लद्दाख की सीमा पर कई मौकों पर भारतीय और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के जवानों के बीच भिड़ंत हुई है. दुनिया की दो सबसे बड़ी आबादी वाले देशों के बीच 1962 के जंग के बाद यह सबसे अहम सीमाई संघर्ष है. जून 2020 में हाथापाई वाले संघर्ष में 20 भारतीय और चार चीनी सैनिक मारे गए थे. उसी साल अगस्त में हज़ारों भारतीय सैनिकों ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण 'ऊंची जगहों' पर बिना विरोध के कब्ज़ा कर लिया था. भारत के सरकारी आधिकारियों ने बाद में स्वीकार किया कि इससे चीनी सैनिकों के साथ एक बड़ा संघर्ष शुरू हो सकता था और जंग की ओर चीजें जा सकती थीं. दिसम्बर 2022 में एक और झड़प के बाद, नई दिल्ली ने छाती ठोंकी कि अमेरिका द्वारा 'रियल टाइम ख़ुफ़िया जानकारी' साझा करने के कारण कथित तौर पर आगे बढ़ते चीनी सैनिकों को उसके सैनिकों ने पीछे धकेल दिया था.
हालात बहुत नाजुक बने हुए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी हिंदू बर्चस्ववादी भारतीय जनता पार्टी सरकार ने वॉशिंगटन और एशिया प्रशांत में इसके प्रमुख सहयोगियों जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ द्विपक्षीय, त्रिपक्षीय और चौकड़ी के साथ भारत के सैन्य रणनीतिक संबंध को नाटकीय रूप से विस्तारित करने के लिए सीमा विवाद का इस्तेमाल किया है. और इस तरह चीन के ख़िलाफ़ अमेरिकी साम्राज्यवाद के युद्ध में भारत की भूमिका एक जूनियर पार्टनर और अमेरिका की अग्रिम मोर्चे के देश के रूप में हो गई है.
उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में सैनिकों की नई तैनाती उस समय हुई जब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 5 से 8 मार्च के बीच दक्षिण कोरिया और जापान के अपने दौरे को ख़त्म किया, जहां उन्होंने मज़बूत सैन्य सहयोग को बढ़ाने पर ज़ोर दिया था.
पाकिस्तान से लगती देश की पश्चिमी सीमा से सैनिकों को हटाया जा रहा है और इससे पता चलता है कि नई दिल्ली अब अपने ऐतिहासिक प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को मुख्य विरोधी मानने की बजाय चीन को मान रहा है. ये तैनाती उन अतिरिक्त 50,000 सैनिकों के अलावा है जो 2020 से ही भारत और चीन ने अग्रिम मोर्चे पर तैनात कर रखा है, यही नहीं अच्छी खासी संख्या में टैंक, जंगी जहाज और तोपों की भी तैनाती की गई है. दोनों तरफ़ से सीमा के पास लगातार किलेबंदी हो रही है, हवाई पट्टी, सड़कों, टनल, पुलों और रेलवे पटरियों का निर्माण किया जा रहा है ताकि हिमालय के इस दुर्गम इलाके में बहुत तेजी से सैनिकों और रसद को पहुंचाया जा सके.
क़रीब दो दर्जन द्विपक्षीय वार्ताओं के बावजूद, जिसमें सबसे ताज़ा वार्ता 19 फ़रवरी को हुई थी, गतिरोध बना हुआ है और दोनों पक्ष एक दूसरे पर पीछे हटने का दबाव बना रहे हैं.
भारत के ताज़ा उकसावे को लेकर चीन की प्रतिक्रिया अपेक्षाकृत शांत रही है. चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने कहा था कि ”यह तनाव को कम करने में मददगार नहीं” होगा और ”सीमाई इलाक़ों में शांति और स्थिरता को बनाए रखने के लिए चीन भारत के साथ मिलकर काम करने को प्रतिबद्ध है.”
भारत-चीन सीमा संघर्ष में वॉशिंगटन का और भी अधिक आक्रामक दखल
तनावों में और घी डालते हुए मोदी ने 4000 मीटर की ऊंचाई पर बने दो लेन की सुरंग का उद्घाटन करने के लिए 9 मार्च को भारत के पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश का दौरा किया. इस सुरंग का मकसद है- सैनिकों और मिलिटरी साजो सामान को इस सीमांत प्रदेश में आसानी से पहुंचाया जा सके और सुदूर इलाक़े में पूरे साल आवागमन को सुनिश्चित किया जा सके. इसके अलावा उन्होंने सड़क निर्माण और बिजली उत्पादन समेत अतिरिक्त आधारभूत ढांचा खड़ा करने की भी कई घोषणाएं कीं.
मोदी के दौरे के कारण अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन और भारत के बीच बयानबाज़ियां हुईं. इस इलाक़े में, जिस पर चीन दावा करता है, मोदी के दौरे और आधारभूत ढांचे के भारत के विकास का विरोध करते हुए चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने 11 मार्च को दुहराया कि “ज़ांगनन (अरुणाचल प्रदेश के लिए चीन का दिया हुआ नाम) चीन का क्षेत्र है“ और “उसने कभी भी अरुणाचल प्रदेश को मान्यता नहीं दी.“ उन्हें ज़ोर देकर कहा कि “भारत को कोई अधिकार नहीं है कि वो ज़ांगनन के इलाक़े को अपनी मर्ज़ी से विकसित करे“ और उन्होंने “चीन-भारत की सीमा के पूर्वी हिस्से में“ मोदी के दौरा का कड़ा विरोध किया.
इसके एक दिन बाद भारत ने प्रतिक्रिया दी और विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने बयान जारी कर कहा, “समय समय पर भारतीय राजनेता अरुणाचल प्रदेश का दौरा करते रहे हैं, जैसे वो भारत के अन्य राज्यों का दौरा करते हैं“ और यह “भारत का अभिन्न और अविभाज्य हिस्सा है और हमेशा रहेगा.“
बॉर्डर को लेकर भारत के दावे का खुलकर समर्थन करते हुए अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वेदांत पटेल ने 20 मार्च को कहा था, “अमेरिका अरुणाचल प्रदेश के इलाक़े को भारत का हिस्सा मानता है और हम वास्तविक नियंत्रण रेखा के पार सैन्य या नागरिक घुसपैठ या अतिक्रमण द्वारा क्षेत्रीय दावों को आगे बढ़ाने के किसी भी एकतरफ़ा प्रयास का दृढ़ता से विरोध करते हैं.“ सीमा विवाद पर भारत के पक्ष का वॉशिंगटन के इस पुरज़ोर वक़ालत का विरोध करते हुए बीजिंग ने घोषणा की कि सीमा विवाद दो देशों का आपसी मामला है और इसका अमेरिका से कोई लेना देना नहीं है. दिलचस्प है कि अमेरिका का यह नया रवैया 2020 से पहले नहीं था.
नई दिल्ली ने अपनी सैन्य बयानबाज़ी को बढ़ा दिया है. स्पष्ट रूप से चीन को निर्देशित एक टिप्पणी में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सात मार्च को कहा था, “अगर किसी ने भारत पर ज़मीन, हवा या समंदर के रास्ते हमला किया तो हमारी सेनाएं उसका कड़ा जवाब देंगी“ और “किसी ने आंख उठाकर भी देखा तो हम उसे मुंहतोड़ जवाब देने की स्थिति में हैं.“
भारतीय पूंजीपति वर्ग अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक बड़ा खिलाड़ी बनना चाहता है. हालांकि सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग की अहंकारी आकांक्षाएं भारतीय पूंजीवाद के वास्तविक क्षमता से मेल नहीं खातीं. हालांकि दावे अलग अलग हैं लेकिन चीन की अर्थव्यवस्था भारत के मुकाबले पांच गुना बड़ी है और अधिकांश तकनीकी क्षेत्र में चीन भारत से कहीं आगे है. इसके अलावा बीजिंग के पास नई दिल्ली के मुकाबले कहीं अधिक सैन्य ताक़त है.
बीजिंग के मुकाबले अपनी अपेक्षाकृत अहम कमज़ोरियों को पूरा करने के लिए दिल्ली, चीन के ख़िलाफ़ अमेरिका की रणनीतिक आक्रामकता में खुद को पूरी तरह शामिल करने और चीन के मुकाबले अपने यहां उत्पादन शृंखलाओं के लिए वैकल्पिक सस्ते लेबर को साम्राज्यवादियों के सामने परोसने की कोशिश कर रहा है.
दूसरी तरफ़, भारत बहुत आक्रामक तरीके से अपनी सैन्य ताक़त को बढ़ाने पर भी काम कर रहा है. 11 मार्च को परमाणु हथियार समेत एक साथ कई हथियारों को ले जाने में सक्षम घरेलू निर्मित मिसाइल का भारत ने परीक्षण किया, जिसे मुख्य तौर पर चीन को ध्यान में रखते हुए विकसित किया गया है. साल 2021 में भारत ने पहली बार अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (आईसीबीएम) अग्नि-5 का परीक्षण किया, जिसकी मारक क्षमता 5000 किलोमाटर तक है. इसने भारत को चीन के लगभग सारे इलाक़े को निशाने पर लेने में सक्षम बना दिया है.
भूटान, नेपाल और हिंद महासागर का क्षेत्र
नई दिल्ली पूरे दक्षिण एशिया में अपने रणनीतिक प्रभाव को बढ़ाने में बहुत आक्रामक तरीक़े से काम कर रहा है. हाल के सप्ताहों में इसने छोटे से हिमालयी देश भूटान पर अपना ध्यान केंद्रित किया है, जिसे लंबे समय से भारत अपना संरक्षित देश मानता आया है. भूटान के साथ क़रीबी रिश्ते बनाने की चीन की कोशिशों से चिंचित भारत ने, 14 से 18 मार्च तक भूटान के प्रधानमंत्री दाशो त्शेरिंग टोबगाय के दौरे को अपने प्रभाव को और मज़बूत करने के लिए इस्तेमाल किया. मोदी और टोबगाय ने आधारभूत ढांचे को विकसित करने, कनेक्टिविटी बढ़ाने, ऊर्जा क्षेत्र और जनता के बीच आदान प्रदान को लेकर बात की और दोनों देशों के बीच “अनोखी“ और “स्थाई“ दोस्ती को और मज़बूत करने की “प्रतिबद्धता“ पर ज़ोर दिया गया.
टोबगाय के दौरे से पहले मोदी ने 22-23 मार्च को भूटान का दो दिवसीय दौरा किया था. रिपोर्टों के अनुसार, थिंपू में मोदी ने व्यापक क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों को और आगे ले जाने के लिए वार्ता की. इसमें द्विपक्षीय ऊर्जा सहयोग भी शामिल है और साथ ही भूटान की पंचवर्षीय योजना में भारत की ओर से होने वाली 50 अरब रुपये (600 मिलियन डॉलर) की मदद को बढ़ाकर 100 अरब रुपये करने की घोषणा भी हुई.
नई दिल्ली इन ख़बरों से चिंतित है कि थिंपू और बीजिंग ने एक व्यापक समझौते को लेकर अहम प्रगति की है. उसे डर है कि इस तरह का कोई समझौता भूटान और चीन के बीच सीमा विवाद का फायदा उठाने की की भारत की कोशिशों पर पानी फेर देगा. 2017 के मध्य में, भारत ने भूटान की मदद के नाम पर डोकलाम पठार सीमा विवाद में दखल दिया था. भारत ने खुद अपने सैनिकों को इस हिमालयी क्षेत्र में भेजा, जिसपर भूटान और चीन दोनों दावा करते हैं ताकि उसका प्रभाव बना रहे और ये सुनिश्चित किया जा सके कि थिंपू किसी और इलाक़े के बदले डोकलाम को बीजिंग के हवाले न कर दे.
भारत के रणनीतिकार लंबे समय से आवाज़ उठाते रहे हैं कि अगर युद्ध की स्थिति पैदा होती है तो डोकलाम पर कब्ज़ा, चीनी सेनाओं को महत्वपूर्ण सिलिगुड़ी कॉरिडोर पर नियंत्रण कर लेने की स्थित पैदा कर देगा. यह कॉरिडोर भारत का वो संकरा क्षेत्र है जो बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और चीन के बीच पड़ता है और पूर्वोत्तर राज्यों को शेष भारत से जोड़ता है.
इसके अलावा, नई दिल्ली और वॉशिंगटन श्रीलंका और नेपाल को अपनी रणनीति में और गहरे तौर पर शामिल करने के लिए आक्रामक तरीक़े से काम कर रहे हैं. 12 से 14 मार्च के बीच अमेरिका रक्षा मंत्रालय और कोलंबो में अमेरिकी दूतावास ने श्रीलंकाई एयर फ़ोर्स की ट्रेनिंग का आयोजन किया, जिसमें हिंद महासागर में चीनी गतिविधि पर निगरानी को और तगड़ी करने के लिए इंटेलिजेंस एवं ख़ुफ़िया सूचनाएं इकट्ठी करने और टोही उड़ानों का प्रशिक्षण दिया गया. इसमें अमेरिकी सरकार के चार वरिष्ठ अधिकारी भी हैं, जिनमें मैनेजमेंट और रिसोर्स मामले के उप विदेश सचिव रिचर्ड वर्मा भी हैं, जिन्होंने फ़रवरी में श्रीलंका का दौरा किया था. चीन से संबंध तोड़ने के लिए बांग्लादेश पर भी भारत का भारी दबाव है.
हिंद महासागर के पश्चिमी क्षेत्र में अपनी मौजूदगी को बढ़ाने की नई दिल्ली की व्यापक रणनीति के हिस्से के तौर पर, फ़रवरी के अंत में, भारत और मॉरिशस के अधिकारियों ने भारत के वित्तीय सहायता से मॉरिशस के एक छोटे से द्वीप अगालेगा पर बनी हवाई पट्टी और जेटी का उद्गाटन किया. हिंद महासागर में अगालेगा एक महत्वपूर्ण रणनीतिक चौकी है, जो अफ़्रीका के बिल्कुल क़रीब स्थित है. इसके अलावा भारत ने ओमान के डूकम बंदरगाह पर अपनी पहुंच सुरक्षित कर ली है.
मालदीव की चीन समर्थक सरकार और इसके बीजिंग के साथ किए गए हालिया सैन्य समझौते की काट के लिए नई दिल्ली ने भारत के लक्षद्वीप द्वीपसमूह के सबसे दक्षिणी द्वीप मिनिकॉय पर एक नया नौसैनिक अड्डा, आईएनएस जटायु स्थापित किया है, जो इसके दक्षिण-पश्चिमी तट पर स्थित है. यह द्वीपसमूह पर भारत का दूसरा नौसैनिक अड्डा होगा और मालदीव से लगभग 800 किमी दूर है. पिछले साल के मुकाबले मालदीव में भारतीय पर्यटकों की संख्या में भारी गिरावट आई है, जिसे नई दिल्ली माले, मालदीव की राजधानी, पर दबाव डालने के रूप में देख रहा है, जिसकी विदेशी मुद्रा आमदनी का मुख्य स्रोत ही पर्यटन है.
कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के तहत शुरू किए गए और मोदी के भाजपा शासन के 10 सालों के दौरान और विस्तारित किए गए चीन विरोधी ”भारत-अमेरिकी वैश्विक रणनीतिक साझेदारी”, भारत, एशिया और दुनिया की जनता को एक वैश्विक विस्फोट और परमाणु महाविनाश के ख़तरे में डालता है. फिर भी, भारत के चुनावी प्रचार अभियान के दौरान इस ख़तरे पर कोई बात नहीं होगी, जोकि अगले दो महीने तक जारी रहने वाला है. ऐसा इसलिए है क्योंकि राजनीतिक सत्तातंत्र के सभी हिस्से- बीजेपी से लेकर स्टालिनवादी सीपीएम और सीपीआई समर्थित कांग्रेस पार्टी की अगुवाई वाले विपक्षी इंडिया गठबंधन तक- अमेरिकी साम्राज्यवाद के साथ भारतीय पूंजीपति वर्ग के युद्ध गठबंधन के साथ खड़े हैं.