यह हिंदी अनुवाद अंग्रेजी के मूल लेख Sri Lankan trade unions seek alliance with opposition parties का है, जो मूलतः 15 अप्रैल 2024 को प्रकाशित हुआ था I
तीन अप्रैल को, श्रीलंका की कई सारी ट्रेड यूनियनें नेशनल रिसोर्स प्रोटेक्शन मूवमेंट (एनआरपीएम) के राष्ट्रवादी बैनर तले इकट्ठा हुईं और विपक्षी संसदीय पार्टियों के साथ एकजुट होकर कोलंबो में हाईड पार्क में एक सार्वजनिक सभा की। ट्रेड यूनियनों ने एलान किया था कि यह सभा 'सरकारी कंपनियों और राष्ट्रीय संसाधनों को बेचे जाने' का विरोध करने के लिए आयोजित की गई थी।
सेंट्रल बैंक एम्प्लाईज़ यूनियन (सीबीईयू), पोस्टल ट्रेड यूनियंस ज्वाइंट फ़्रंट (पीटीयूजेएफ़), ऑल टेलीकॉम एम्प्लाईज़ यूनियन (एटीईयू), सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड टेक्निकल इंजीनियर्स एंड सुप्रीटेंडेंट्स यूनियन और फ़ेडरेशन ऑफ़ यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन (एफ़यूटीए) ने मिलकर ये मीटिंग बुलाई थी।
यह मीटिंग ऐसे समय आयोजित की गई थी जब सरकार के 'पुनर्गठन कार्यक्रम' को लेकर सरकारी कंपनियों के कर्मचारियों में असंतोष बढ़ रहा है। यह 'पुनर्गठन कार्यक्रम' इंटरनेशनल मॉनेटरी फ़ंड (आईएमएफ़) द्वारा थोपे गए 'खर्च कटौती' (ऑस्टेरिटी) के एजेंडे के तहत लागू हो रहा है। इसके तहत कुछ सार्वजनिक कंपनियों का निजीकरण और उन्हें व्यावसायीकरण होगा और मुनाफ़ा न बनाने वाली कंपनियों को बेचा जाएगा।
आईएमएफ़ के प्रोग्राम को पीछे धकेलने के लिए मज़दूर वर्ग द्वारा किसी एकजुट कार्रवाई का बुनियादी तौर पर विरोध करने वाली ट्रेड यूनियनों ने छिटपुट प्रदर्शनों का आह्वान किया था और ये भ्रम पैदा किया कि निजीकरण प्रक्रिया को रोकने के लिए सरकार को मनाया जा सकता था। लेकिन सरकार ने इन सीमित प्रदर्शनों को नज़रअंदाज़ कर दिया और पिछले साल से ही सरकारी कंपनियों के पुनर्गठन की योजना को लागू करने में तेजी ला दी। सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (सीईबी) के पुनर्गठन के लिए एक विधेयक तैयार किया जा रहा है और टेलीकॉम कंपनी के निजीकरण की बातचीत चल रही है, जबकि कोऑपरेटिव होलसेल इस्टैब्लिशमेंट को पिछले साल ही बंद कर दिया गया था।
ट्रेड यूनियन नेता अब विपक्षी पार्टियों के साथ एक व्यापक मोर्चा बनाने की अपील कर रहे हैं, ताकि बड़े पैमाने पर पुनर्गठन की इसकी योजनाओं को रोकने के लिए सरकार पर दबाव बनाया जा सके।
हम वर्करों को चेतावनी देते हैं कि पूंजीवादी पार्टियों का उन्हें ग़ुलाम बनाने की यह राजनीतिक चाल है। समागी जन बालावेगाया (एजेबी) और जनथा विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) से जुड़ी नेशनल पीपुल्स पॉवर (एनपीपी) पार्टी समेत सभी विपक्षी पार्टियां आईएमएफ़ के कार्यक्रम के लिए पूरी तरह बीछ गई हैं। अगर वे सत्ता में आती हैं तो वे उसी निर्मम तरीक़े से इन कार्यक्रमों को लागू करेंगी जैसे राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे और उनकी सरकार लागू कर रही है।
हम मज़दूरों से अपील करते हैं कि वे पूंजीवादी पार्टियों के साथ एक गठबंधन बनाने के ट्रेड यूनियनों की अपील को ख़ारिज़ कर दें और बुनियादी सामाजिक अधिकारों- रोज़गार, वेतन और काम के हालात, पर विक्रमसिंघे के हमले को नाकाम करने के लिए अपना स्वतंत्र औद्योगिक और राजनीतिक शक्ति इकट्ठा करें।
एसजेबी, श्रीलंका फ़्रीडम पार्टी (एसएलएफ़पी), फ़्रीडम पीपुल्स कांग्रेस, जोकि सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) से अलग हुआ गुट है और सिंहला अस्मिता वाला यूनाइटेड रिपब्लिक फ़्रंट (यूआरएफ़)- इन सभी ने मीटिंग में अपने प्रतिनिधि भेजे थे। स्टालिनवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपी) और छद्म वामपंथी फ़्रंटलाइन सोशलिस्ट पार्टी (एफ़एसपी) ने भी इसमें हिस्सा लिया।
एनपीपी/जेवीपी ने अपने प्रतिनिधि नहीं भेजे। जेवीपी नियंत्रित ऑल सीलोन इलेक्ट्रिसिटी एम्प्लाईज़ यूनियन (एसीईईयू) ने सीईबी ईमारत के सामने एक प्रदर्शन और मार्च का आह्वान किया था। हालांकि, यूनियन नेताओं ने इस प्रदर्शन को रद्द कर दिया और हाईड पार्क के आयोजन में हिस्सा नहीं लिया।
ऐसा लगता है कि जेवीपी/एनपीपी ने सोचा कि अपने चुनावी प्रतिद्वंद्वी एसजेबी के साथ एक ही मंच पर मौजूद होना नुकसानदायक होगा। और भी बुनियादी रूप से, जैसा कि वह खुद सत्ता की दौड़ में है, जेवीपी ने आईएमएफ़ की खर्च कटौती योजनाओं के ख़िलाफ़ अपने सभी ट्रेड यूनियन प्रदर्शनों को रोक दिया है, ताकि सरकार में शामिल होने की अपनी इच्छा प्रदर्शित कर सके।
हाईड पार्क मीटिंग में, सीबीईयू अध्यक्ष छन्ना दिसानायके ने जुमलेबाज़ी करते हुए एलान किया कि सरकारी कंपनियों को “पैसे की लूट“ के लिए बेचा जा रहा है। इसे बचाने के लिए उन्होंने, 'नाइंसाफ़ी के ख़िलाफ़ सभी विपक्षी पार्टियों को उठ खड़ा होने का आह्वान किया।'
क्या ही फ़र्ज़ीवाड़ा है! दिसानायके उन ट्रेड यूनियन नेताओं में से थे जिन्होंने पूर्व राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे से आईएमएफ़ से मदद मांगने की अपील की थी क्योंकि श्रीलंका एक अभूतपूर्व आर्थिक संकट से बेहाल था और इसकी वजह से अप्रैल-मई 2022 के दौरान जनविद्रोह फूट पड़ा था।
तीन मई 2022 की सुबह बोलते हुए उन्होंने आईएमएफ़ से मदद की अपील की थी और कहा था कि, 'इस आसन्न संकट का हल हमारी क्षमता से बाहर है.' वे डर ज़ाहिर कर रहे थे कि सभी बैंक 'बंद होने की कगार' पर पहुंच गए थे।
पोस्टल ट्रेड यूनियन फ़्रंट के संयोजक चिंताका बांडारा ने घोषणा की कि वो चाहते थे कि 'राष्ट्रीय संपत्ति इस बिक्री के संबंध में सभी राजनीतिक पार्टियों के नेता मंच पर आएं और देश के सामने अपने विचार ज़ाहिर करें।'
राष्ट्रवादी बड़बोलापन करते हुए बांडारा ने आरोप लगाया कि सरकारी कंपनियों को ख़रीदने के लिए “श्रीलंकाई नहीं“ बल्कि “विदेशी ताक़तें“ आज लाईन लगा कर खड़ी हैं। उन्होंने अफ़सोस जताया कि स्थानीय निवेशक श्रीलंका में संपत्ति गवां रहे हैं। दूसरे शब्दों में, अगर स्थानीय निवेशक उन्हें ख़रीदते हैं तो वह सरकारी कंपनियों के “पुनर्गठन“ और मज़दूरों की नौकरियां जाने का समर्थन करते हैं।
ऑल टेलीकॉम एम्प्लाईज़ यूनियन के नेता जगथ गुरुसिंघे ने विक्रमसिंघे पर पूरे देश की संपत्ति को बेचने के लिए काम करने का आरोप लगाया: 'बिना कोई काम किए, वो सबकुछ बेच देना चाहते हैं और सिर्फ टैक्स इकट्ठा करने और कुर्सी से चिपके रहना चाहते हैं।'
एफ़यूटीए सेक्रेटरी अथुलासीरी समाराकून ने कहा कि सरकार शिक्षा को बाज़ार के हवाले करना चाहती है। उन्होंने कहा, 'सरकार की नीति है कि 1947 के बाद मिली निःशुल्क शिक्षा व्यवस्था को रद्दी की टोकरी में फेंक दिया जाए। पार्टियों और विचारधारा के आधार पर मतभेदों को भुला देना चाहिए और निःशुक्ल शिक्षा को बचाने के लिए एकजुट होना चाहिए।'
दिलचस्प बात है कि ट्रेड यूनियन नेताओं में से किसी में भी मज़दूर वर्ग के सामाजिक अधिकारों की रक्षा की ज़रा सी भी मंशा नहीं है। विपक्षी नेताओं के साथ एकता के लिए उनकी अपील का मकसद मज़दूर वर्ग में अशांति और बढ़ते गुस्से को दबाने और भटकाने वाला है।
मीटिंग में जितनी भी पार्टियां मौजूद थीं, उनका लंबा इतिहास, बड़े उद्योगों की मांगों को मज़दूर वर्ग पर लादने का रहा है।
एसजेबी के मुजीबुर रहमान मंच पर मौजूद थे लेकिन बोले नहीं। विक्रमसिंघे की दक्षिणपंथी यूनाइटेड नेशनल पार्टी से अलग हुई उनकी पार्टी आईएमएफ़ के खर्च कटौती कार्यक्रम का समर्थन करती है। इसने समय रहते आईएमएफ़ से बातचीत न शुरू करने के लिए पहले की राजपक्षे सरकार की आलोचना की थी।
स्टालिनवादी कम्युनिस्ट पार्टी एमपी वीरासुमन वीरासिंघे ने ताल ठोंका कि उनकी पार्टी का इतिहास “सरकारी संस्थानों की रक्षा“ करने का रहा है। इसके बाद उन्होंने घोषणा की कि जो इस मीटिंग में नहीं आए, उन्हें गद्दार माना जाए। असल में उनकी पार्टी का असली इतिहास एसएलएफ़पी और एसएलपीपी के साथ गठजोड़ करना और उनके खर्च कटौती के कार्यक्रमों और लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमले का समर्थन करना रहा है।
फ़र्ज़ी वामपंथी एफ़एसपी के प्रोपेगैंडा सेक्रेटरी डुमिंडा नवगामुवा, आईएमएफ़ खर्च कटौती के प्रति अपने समर्थन और अपने लालची रिकॉर्ड को ढंकने छुपाने के लिए मंच पर ट्रेड यूनियन नेताओं और विपक्षी पार्टियों के साथ मौजूद दिखे। कुछ देर बाद वो मंच से ये बहाना बनाकर ग़ायब हो गए कि दक्षिणपंथी मदरलैंड पीपुल्स पार्टी इसमें हिस्सा लेने जा रही थी। हालांकि मंच पर अन्य पूंजीवादी पार्टियों- एसजेपी, एसएलएफ़पी और यहां तक कि सिंहला बर्चस्ववादी यूआरएफ़ के सदस्यों के साथ बैठने में उनकी अंतरआत्मा ने उन्हें नहीं धिक्कारा!
2022 में एफ़एसपी ने, पूंजीवादी शासन को बचाने के लिए एक अंतरिम प्रशासन बनाने की एसजेबी और जेवीपी की अपीलों का समर्थन किया था। हालांकि राजपक्षे देश छोड़कर भाग गए और इस्तीफ़ा दे दिया, लेकिन इस राजनीतिक विश्वासघात ने बदनाम संसद में विक्रमसिंघे को राष्ट्रपति भवन तक पहुंचाने का रास्ता साफ़ कर दिया।
मज़दूर वर्ग अपने अधिकारों की रक्षा, इस पूंजीवादी समर्थक यूनियन-पार्टी गठबंधन पर भरोसा करके नहीं कर सकता है। मज़दूरों को सभी पूंजीवादी पार्टियों और उनकी ट्रेड यूनियनों से स्वतंत्र होकर संगठित होने की ज़रूरत है। हर कार्यस्थल पर लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई वर्कर्स एक्शन कमेटियां गठित की जानी चाहिए।
विक्रमसिंघे सरकार और इसके आईएमएफ़ खर्च कटौती के कार्यक्रम के ख़िलाफ़, मज़दूर वर्ग द्वारा एकजुट एक्शन का यह आधार है, जिसमें आम हड़ताल की तैयारी भी शामिल है।
बड़े उद्योगों के मुनाफ़े को बढ़ाने के लिए नौकरियों को ख़त्म करने, मज़दूरी में कटौती करने और काम के बोझ को बढ़ाने वाले पूंजीवादी पुनर्गठन के ख़िलाफ़, मज़दूरों की यह मांग होनी चाहिए: सभी सरकारी कंपनियों को मज़दूर वर्ग के लोकतांत्रिक नियंत्रण के मातहत लाओ!
इस संघर्ष को, बैंकों, बड़ी कंपनियों और बागानों को मज़दूरों के नियंत्रण में लाने और सभी विदेशी कर्ज़ों को ज़ब्त करने से ज़रूर जोड़ा जाना चाहिए।
एसईपी इस बात पर जोर देता है कि इन मांगों के लिए लड़ाई के लिए मुनाफ़े के सिस्टम को उलटने, मज़दूरों और किसानों की सरकार स्थापित करने और कुछ अमीर लोगों के नहीं, बल्कि बहुसंख्यक लोगों के हितों में अर्थव्यवस्था को पुनर्गठित करने के लिए एक राजनीतिक संघर्ष की ज़रूरत है।