यह हिंदी अनुवाद अंग्रेजी के मूल का जो मूलतः Sri Lankan parliament unanimously approves IMF austerity measures 11 दिसम्बर 2024 को प्रकाशित हुआ थाI
तीन-चार दिसम्बर को दो दिन तक चली बहस के बाद, श्रीलंकाई संसद ने बिना वोट डाले, एकमत से, 21 नवम्बर को राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके द्वारा पेश किए गए, जनथा विमुक्ति पेरुमुना/नेशनल पीपुल्स पॉवर (जेवीपी/एनपीपी) सरकार के नीतिगत फ़ैसले को मंज़ूरी दे दी।
नीतिगत फ़ैसले पर सत्तारूढ़ और विपक्षी सांसदों की एकजुटता, क्रूर खर्च कटौती के एजेंडे के प्रति पूरे राजनीतिक तंत्र के बुनियादी समझौते को दर्शाती है। इस नीतिगत बयान में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) के प्रोग्राम को पूरी तरह लागू करने का वादा किया गया था।
और इस तरह विपक्षी पार्टियों ने मज़दूरों और ग़रीबों के जीवन के हालात पर हमला करने के लिए जेवीपी/एनपीपी के हाथ को और मज़बूत किया है। इस समर्थन से पहले सरकार ने 23 नवम्बर को आईएमएफ़ के साथ एक समझौता किया था, जिसमें वादा किया गया कि अगले साल का बजट आईएमएफ़ की मांगों के अनुरूप लाया जाएगा।
पिछले हफ़्ते ही सरकार ने 2025 के अगले चार महीनों के लिए अंतरिम बजट पेश किया था, जबतक कि जनवरी में 2025 के लिए पूर्ण बजट नहीं आ जाता। छह दिसम्बर को इस अंतरिम बजट को सर्वसम्मति से मंज़ूरी दी गई।
पिछले महीने अपने नीतिगत बयान को पेश करते हुए राष्ट्रपति दिसानायके ने ज़ोर देकर कहा था: 'इस बात पर बहस करना कि क्या पुनर्गठन योजना अच्छी है या बुरी है, फ़ायदेमंद है या नुकसानदायक है, इससे कोई हल नहीं निकलता। देश की अर्थव्यवस्था एक पतले धागे के सहारे लटकी हुई है। संकट की व्यापकता के कारण, छोटी सी ग़लती के भी भयंकर नतीजे हो सकते हैं...ग़लती के लिए कोई जगह नहीं है।'
उनका बयान जेवीपी/एनपीपी के चुनावी घोषणापत्र से पूरी तरह उलट था, जिसमें 'आईएमएफ़ के साथ दोबारा बातचीत करने' और एक 'वैकल्पिक कर्ज़ टिकाउपन विश्लेषण तैयार' करने का वादा किया गया था ताकि 'ग़रीबों और वंचित लोगों को उनकी दर्दनाक हालात से उबारा जाए।'
अब दिसानायके, जोकि वित्त मंत्री भी हैं, आईएमएफ़ की सभी मांगों को थोपने के लिए क़सम खा रहे हैं। नई सरकार अगले साल प्राथमिक बजट अधिशेष को पिछले साल के जीडीपी के 0.6 प्रतिशत से चार गुना बढ़ाकर 2.3 प्रतिशत करने पर क़ायम रहेगी। इसका मतलब टैक्सों, सुविधा दरों और ईंधन क़ीमतों में फिर से बढ़ोत्तरी होगी और साथ ही ज़रूरी सार्वजनिक सेवाओं में कटौती और सरकारी कंपनियों की अंधाधुन बिकवाली होगी, जिससे लाखों नौकरियां जाएंगी।
दो दिसम्बर को राष्ट्रपति के वरिष्ठ आर्थिक सलाहकार डुमिंडा हुलांगामुवा ने कहा था कि देश को अपने सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों की संख्या को 13 लाख से घटाकर 7.5 लाख के स्तर पर लाना होगा। सार्वजनिक क्षेत्र में कम से कम 5.5 लाख नौकरियों की कटौती, दिसानायके सरकार द्वारा तैयार किए जा रहे क्रूर उपायों की एक चेतावनी है।
राष्ट्रपति और आम चुनावों के दौरान जेवीपी/एनपीपी, जो इससे पहले कभी सत्ता में नहीं रहे थे, उन्होंने पारंपरिक बुर्जुआ पार्टियों के प्रति व्यापक गुस्से का फ़ायदा उठाया। जैसे कि यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी), इसकी शाखा समागी जना बालावेगाया (एसजेबी), श्रीलंका फ़्रीडम पार्टी और श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी), जिन्होंने 1948 में मिली औपचारिक आज़ादी के बाद ही से देश पर शासन किया। अब 225 संसदीय सीटों में से विपक्ष के हिस्से सिर्फ 66 सीटें आई हैं।
दिसानायके की नीतियों पर संसदीय बहस के दौरान जेवीपी/एनपीपी के सांसदों ने अपनी जीत का दावा किया और एलान किया कि पिछली सरकार के उलट सरकार के पास 'भविष्य का विज़न' और जनता की समस्याएं हल करने की योजना थी। वे भ्रष्टाचार को जड़ से ख़त्म कर देंगे और 'एक नई राजनीतिक संस्कृति' ले आएंगे। लेकिन झूठ के इस पुलिंदे की पोल जल्द ही खुल जाएगी क्योंकि दिसानायके ने मेहतकश लोगों के लिए सामाजिक कष्टों को बड़ा करके उनके जीवन स्तर को बर्बाद कर दिया है।
विपक्षी नेता और एसजेपी प्रमुख सजिथ प्रेमदासा ने आईएमएफ़ के ढांचे का पालन करने के सरकार के फ़ैसले का समर्थन करने का वादा किया है। उन्होंने कहा कि 'आईएमएफ़ प्रोग्राम के कुछ पहलू लोगों को नुकसान पहुंचाने वाले हैं,' लेकिन ये भी कहा कि 'अगर सरकार इस मुद्दे पर आगे बढ़ना चाहती है तो उनकी पार्टी उसका समर्थन करने को तैयार है।'
प्रेमदासा ने आईएमएफ़ के एजेंडा का पूरा समर्थन किया है। 2021-22 के राजनीतिक और आर्थिक संकट के बीच, उन्होंने आईएमएफ़ की तत्काल मदद लेने में नाकाम रहने पर एसएलपीपी सरकार की आलोचना की थी। इस साल के राष्ट्रपति चुनावों के प्रचार के दौरान उन्होंने ये भी घोषणा की थी कि वह अगर जीतते हैं तो आईएमएफ़ कर्ज़ की शर्तों पर 'फिर से मोलभाव' करेंगे- यह एक ऐसा वादा था जिसे उन्होंने दिसानायके की तरह ही कूड़ेदान में फेंक दिया।
एसएलपीपी नेता नमल राजपक्षे ने सरकार को बधाई दी है, लेकिन तंज करते हुए पूछा कि क्या सरकार की नीतियां पहले की विक्रमसिंघे सरकार जैसी ही होंगी या 'वे नीतियां होंगी जिनका आपने राष्ट्रपति चुनावों को दौरान वादा किया था।' दिलचस्प है कि विक्रमसिंघे सरकार की नीतियों का एसएलपीपी ने समर्थन किया था।
पूर्व राष्ट्रपति विक्रमसिंघे ने मीडिया के सामने दुहराया कि 'आईएमएफ़ के ढांचे पर आगे बढ़ने की सहमति के दिसानायके के बयान का उन्होंने समर्थन किया है।' देश के कर्ज़ डिफ़ॉल्ट होने के कारण पैदा हुए भारी सामाजिक संकट के ख़िलाफ़ अप्रैल/मई 2022 में जनउभार के बाद, सत्ता में आने के बाद उन्होंने आईएमएफ़ के साथ वार्ता चलाया था।
विक्रमसिंघे अपनी यूएनपी पार्टी के एकमात्र सांसद हैं और उनके पास कोई समर्थन नहीं है। अमेरिकी परस्त और आईएमएफ़ की ओर झुकाव रखने के लिए मशहूर विक्रमसिंघे को ग़ैर लोकतांत्रित तरीक़े से कुर्सी पर बैठाया गया था न कि चुनाव के मार्फ़त। जेवीपी/एनीपीपी और एसजेपी ने ट्रेड यूनियनों और फ़्रंट लाइन सोशलिस्ट पार्टी जैसे फ़र्ज़ी लेफ़्ट के साथ मिलकर जन आंदोलन को पटरी से उतारने में अहम भूमिका निभाई थी। 'अंतरिम सरकार' के गठन की उनकी मांग ने बदनाम हो चुकी संसद को वैध ठहराने में मदद की और इस तरह राष्ट्रपति पद पर विक्रमसिंघे की ताज़पोशी का फ़ैसला हुआ।
जेवीपी/एनीपीपी, जिन्होंने कभी भी आईएमएफ़ प्रोग्राम का विरोध नहीं किया, ने इसकी वैधता और इस तरह, इसे लागू करने की विक्रमसिंघे की क्षमता पर बस सवाल खड़ा किया था। अब इसे आईएमएफ़ के आदेशों को पूरा करने और किसी भी विरोध को दबाने के साधन के रूप में, श्रीलंकाई शासक वर्ग का समर्थन भी मिल गया है और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय पूंजी का आशीर्वाद भी।
दिसानायके सरकार ने पहले ही दो दिसम्बर को स्कूल डेवलपमेंट ऑफ़िसर्स के शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर कार्रवाई करके पुलिस का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। इस प्रदर्शन में चार लोगों को हिरासत में लिया गया। उनका अपराध बस इतना था कि उन्होंने सरकारी टीचिंग सेवा में नियमित टीचिंग की नौकरी की मांग की थी। उनकी नियुक्ति चार साल पहले की गई थी और वे टीचर के रूप में काम भी कर रहे हैं लेकिन उनकी तनख्वाहें बहुत कम हैं और काम के हालात बहुत ख़राब हैं।
आईएमएफ़ के लिए एकमत से मिला संसदीय समर्थन स्पष्ट रूप से दिखाता है कि मज़दूर वर्ग को अपने सामाजिक और लोकतांत्रिक अधिकारों के संघर्ष के लिए स्वतंत्र रूप से लामबंद होने पर भरोसा करना होगा। एसईपी मज़दूरों और ग्रामीण मेहनतकश आबादी का आह्वान करती है कि वे हर कार्यस्थल, बागान, कस्बे और शहरों में स्वतंत्र एक्शन कमेटियां गठित करें। इन एक्शन कमेटियों में पूंजीवादी राजनेताओं और ट्रेड यूनियन नौकरशाहों को शामिल होने की इजाज़त नहीं देनी चाहिए।
एक्शन कमेटियों को इस धारणा को ख़ारिज़ करना चाहिए कि कामकाजी लोगों को चंद अति-अमीरों के मुनाफ़े को बढ़ाने के लिए कुर्बानी देनी चाहिए, और उसे सभी विदेशी कर्ज़ों और आईएमएफ़ के एजेंडा को अस्वीकार करने का आह्वान करना चाहिए। मेहनतश लोगों के सामने आने वाले ज्वलंत मुद्दों के समाधान के लिए, अति-अमीरों की संपत्ति ज़ब्त की जानी चाहिए और मज़दूरों के नियंत्रण में प्रमुख बैंकों और निगमों का राष्ट्रीयकरण किया जाना चाहिए।
एसईपी समाजवादी रणनीति पर विचार और संघर्ष करने के लिए एक्शन कमेटियों के प्रतिनिधियों के आधार पर मज़दूरों और ग्रामीण जनता की एक डेमोक्रेटिक और सोशलिस्ट कांग्रेस के निर्माण का आह्वान कर रही है। समाजवाद के लिए व्यापक अंतरराष्ट्रीय संघर्ष के हिस्से के रूप में, राजनीतिक सत्ता की लड़ाई और समाजवादी नीतियों को लागू करने के लिए मज़दूरों और किसानों की सरकार की स्थापना में मेहनतश लोगों के संघर्ष को एकजुट करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण तंत्र है।