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"यह हड़ताल हमारे वजूद के लिए है"—3 महीने से हड़ताल पर महाराष्ट्र के रोडवेज़ कर्मचारी

“We are striking for our very existence”—Maharashtra state transit worker tells WSWS in 12th week of militant job action -26 जनवरी 2022 को छापा गया इस लेख का हिंदी अनुवाद नीचे

लेबर कोर्ट की ओर से हड़ताल को 'गैरक़ानूनी' क़रार दिए जाने के बावजूद, महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (एमएसआरटीसी) के 77,000 कर्मचारी बीते 90 दिनों से जुझारू हड़ताल जारी रखे हुए हैं। कर्मचारियों की यह संख्या असल में राज्य सरकार के स्वामित्व वाली अंतर-शहरी बस सेवा के कुल कर्मचारियों का 80 प्रतिशत है।

अदालती आदेश के साथ साथ सरकारी धमकियों, मैनेजमेंट की ओर से की जाने वाली बदले की कार्वाईयों और अपने ही स्वघोषित यूनियन प्रतिनिधियों के खुले विरोध का सामना करते हुए कर्मचारी ये हड़ताल कर रहे हैं। क़रीब तीन महीने से काम बंद कर हड़ताल पर बैठे एमएसआरटीसी कर्मचारी अपनी मांग पूरी होने तक इसे जारी रखने के लिए अड़े हुए हैं।

समय से वेतन के भुगतान की मांग के अलावा कर्मचारियों की प्रमुख मांग है- महाराष्ट्र राज्य सरकार के साथ एमएसआरटीसी का पूरी तरह विलय, ताकि इसके कर्मचारियों को राज्य सरकार के कर्मचारी होने का दर्जा हासिल हो सके। इससे राज्य परिवहन निगम के कर्मचारियों को भी वैसी ही नौकरी की गारंटी, समान वेतनमान और अन्य सुविधाएं मिलेंगी जैसी राज्य सरकार के कर्मचारियों को मिलती हैं।

महाराष्ट्र के दूसरे सबसे बड़े शहर पुणे में रहने वाले एमएसआरटीसी के युवा बस मकैनिक राजीव (बदला हुआ नाम) ने वर्ल्ड सोशलिस्ट वेब साइट से जोर देते हुए कहा कि, कर्मचारी इस हड़ताल को जारी रखने पर अड़े हुए हैं। राजीव कहते हैं, 'यह हड़ताल सरकार के खिलाफ है, अपने वजूद के लिए हमने काम बंद किया है।'

महाराष्ट्र, पुणे में हड़ताल कर रहे एमएसआरटीसी के कर्मचारी। (फ़ोटोः एमएसआरटीसी के हड़ताली कर्मचारी)

फ़ासीवादी शिव सेना नीत महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार के निर्देश पर काम करने वाली एमएसआरटीसी मैनेजमेंट ने क़रीब 3,000 कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है, 11,000 कर्मचारियों को निलंबित कर दिया है और बहुत सारे कर्मचारियों को उनके घर से दूर दराज़ के इलाकों में ट्रांसफ़र कर दिया है।

इसके अलावा महाराष्ट्र के परिवहन मंत्री कई बार एस्मा (महाराष्ट्र एसेंशियल सर्विसेज़ मेंटेनेंस एक्ट) लगाने की धमकी दे चुके हैं। यह क़ानून हड़ताल को ग़ैरकानूनी घोषित कर देता है और हड़ताली कर्मचारियों को बड़ी संख्या में हिरासत में लेने और गिरफ़्तार करने के लिए पुलिस को असीमित अधिकार देता है।

एमएसआरटीसी हड़ताल के बारे में डब्ल्यूएसडब्ल्यूएस पर प्रकाशित लेखों को लेकर राजीव बहुत उत्साहित दिखे। उन्होंने पुणे और मुंबई में हड़ताल पर बैठे कर्मचारियों की कई तस्वीरें डब्ल्यूएसडब्ल्यूएस से साझा कीं। हड़ताली कर्मचारियों ने अपने संघर्ष को फैलाने के लिए महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई के प्रसिद्ध आज़ाद मैदान में एक कैंप भी स्थापित कर रखा है।

बड़ी ट्रेड यूनियन फ़ेडरेशनों ने एमएसआरटीसी कर्मचारियों के संघर्ष को पूरी तरह अलग थलग कर रखा है। पूरे भारत के अलावा, महाराष्ट्र में बड़ी संख्या में सदस्यता रखने वाली इन यूनियनों ने इस हड़ताल का समर्थन करने और भारतीय सत्ताधारियों के निजीकरण अभियान और खतरनाक ठेका मज़दूरी को बढ़ावा देने वाली नीतियों के ख़िलाफ़, इसे मज़दूर वर्ग के बढ़ते गुस्से की धुरी में तब्दील करने से साफ़ मना कर दिया। ख़ास तौर पर यह बात सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियन्स (सीटू) और ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी) पर सच बैठती है। ये दोनों ट्रेड यूनियनें, स्टालिनवादी कम्युनिस्ट पार्टियों क्रमशः कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी) या सीपीएम और कम्युनिस्ट पार्टी आफ़ इंडिया (सीपीआई) से संबद्ध हैं।

राजीव अपनी बात को साफ़ करते हुए कहते हैं, 'हम बिना किसी यूनियन के हड़ताल कर रहे हैं। हमारी यूनियनें हमारे साथ नहीं हैं। मैनेजमेंट के साथ समझौता करके वो पहले ही धोखा दे चुकी हैं।'

मुंबई के आज़ाद मैदान में हड़ताली एमएसआरटीसी कर्मचारियों का कैंप। (फ़ोटोः एमएसआरटीसी के हड़ताली कर्मचारी)

कई दिनों तक आंशिक हड़ताल की कार्यवाहियों के बाद तीन नवंबर 2021 की रात को एमएसआरटीसी के सभी कर्मचारी हड़ताल पर चले गए। इसकी वजह से सरकारी परिवहन कंपनी की कुल 18000 बसों का पहिया यकायक रुक गया। दिलचस्प बात ये है कि यह संपूर्ण हड़ताल उन दो दर्जन ट्रेड यूनियनों के सीधे विरोध में हुई, जिन्होंने सरकारी अधिकारियों से वार्ता के दौरान राज्य सरकार के साथ एमएसआरटीसी के विलय की कर्मचारियों की मांग को नहीं रखा और नवंबर की शुरुआत में हड़ताल को गैरकानूनी बताने वाले लेबर कोर्ट के आदेश के सामने तुरंत झुक गईं।

राजीव कहते हैं, 'उकसावों के बावजूद यह बहुत शांतिपूर्ण हड़ताल है, हम किसी भी किस्म की हिंसा में शामिल नहीं हैं।'

कोरोना महामारी के डेढ़ साल बाद कर्मचारियों का गुस्सा फूटा और ये हड़ताल हुई। इसकी बड़ी वजह ये थी कि इस दौरान कर्मचारियों को बिना पर्याप्त कोविड-19 सुरक्षा उपकरणों के ज़बरदस्ती काम पर बुलाया गया और लगातार हफ़्तों-हफ्तों और महीनों-महीनों वेतन भी नहीं दिया गया। इसके अलावा बीते अगस्त तक एमएसआरटीसी के 300 कर्मचारियों की कोविड-19 से जान चली गई, लेकिन राज्य सरकार ने एमएसआरटीसी के कर्मचारियों को 'फ्रंटलाइन वर्कर्स' घोषित करने और उनके टीकाकरण को वरीयता देने से भी मना कर दिया।

हड़ताल में शामिल अधिकांश कर्मचारी अपने परिवार के एकमात्र आजीविका कमाने वाले सदस्य हैं। अपने परिवार की ठीक से देखभाल कर पाने में अक्षमता का तनाव गंभीर हताशा का कारण साबित हो रहा है। राजीव के अनुसार, 'बीते तीन महीने में 40-50 वर्कर दिल के दौरे के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं और कई तो आत्महत्या की कगार पर पहुंच चुके हैं।'

राजीव खुद अपने परिवार के अकेले कमाने वाले सदस्य हैं और आर्थिक तंगी में घर हालात के बारे में कहते हैं, 'मेरे घर में मेरे पिता (75 साल), मां (58 साल), मेरी पत्नी और तीन साल का बेटा है। साल 2009 में जब मैंने एमएसआरटीसी ज्वाइन किया, तो मेरा शुरुआती वेतन 3,000 रुपये (करीब 63 डॉलर) था। साल 2010 में जब महाराष्ट्र सरकार ने न्यूनतम वेतन का कानून लागू किया तो एमएसआरटीसी को हमारा वेतन बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ा और हमारा वेतन 6,600 रुपये (करीब 143 डॉलर) बढ़ गया।'

वो कहते हैं, 'इस समय मेरा कुल वेतन 29,000 रुपये (करीब 387 डॉलर) है लेकिन कटौती आदि के बाद हर महीने हाथ में केवल 7,500 रुपये (करीब 100 डॉलर) आते हैं। इन कटौतियों में 4000 रुपये तो एमएसआरटीसी के क्वार्टर में आवास के एवज में ही चला जाता है और बाकी कटौतियों में प्राविडेंट फ़ंड और स्टेट ट्रांसपोर्ट कोआपरेटिव बैंक से 13 प्रतिशत ब्याज़ पर लिए गए लोन के किश्त की अदायगी शामिल है।'

महामारी के दौरान कर्मचारियों की सुरक्षा और स्वास्थ्य का सवाल उठाने वाले ब्रिटेन के बस ड्राईवर डेविड ओ'सुलीवन को नौकरी से निकालने की घटना सुनने के बाद राजीव का कहना था, 'इस तरह की घोर नाइंसाफ़ी हर जगह हो रही है।'

एमएसआरटीसी के कर्मचारी अपने हड़ताल के लिए समर्थन का आह्वान करते। (फ़ोटोः एमएसआरटीसी के हड़ताली कर्मचारी)

पूंजीवाद समर्थक ट्रेड यूनियनों के ख़िलाफ़ वर्ग संघर्ष छेड़ने के लिए, चौथे इंटरनेशनल की अंतरराष्ट्रीय कमेटी की ओर से इंटरनेशनल वर्कर्स अलायंस ऑफ़ रैंक एंड फ़ाइल कमेटी (आईडब्ल्यूए-आरएफ़सी) बनाने का आह्वान किया गया है। ये जानकारी मिलने के बाद इस युवा कर्मचारी ने कहा, 'सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण है कि पूरे देश में हर वर्कर को जीवन यापन लायक एक न्यूनतम मजदूरी मिलनी चाहिए और आंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे जीवन जीने लायक खर्च से जोड़ा जाना चाहिए। उदाहरण के लिए अमेरिकी वर्करों के लिए जीवन यापन का खर्च अलग होगा और इस आधार पर न्यूनतम वेतन तय किया जाना चाहिए।'

कर्मचारियों को यह भली भांति पता है कि अगर महाराष्ट्र राज्य सरकार एमएसआरटीसी को स्वायत्त कार्पोरेट कंपनी बनाए रखना चाहती है तो इसकी वजह ये है कि दूसरी तरफ़ वो सरकारी बस सेवा के निजीकरण के लिए हरचंद कोशिश कर रही है। हाल ही में मैनेजमेंट ने खुलासा किया कि उसने एक कंसल्टेंसी फर्म केएमपीजी को नियुक्त किया है जो निजीकरण के तरीके सुझाएगी, जिसमें कांट्रैक्ट पर देने या बस रूट और डिपो को पूरी तरह बेचना शामिल है।

सार्वजनिक सेवाओं और बुनियादी ढांचे के निजीकरण को बढ़ावा देने में, कांग्रेस समर्थित शिवसेना नीत महाराष्ट्र सरकार, केंद्र की धुर दक्षिणपंथी नरेंद्र मोदी सरकार के साथ पूरी तरह खड़ी नज़र आती है। मोदी सरकार ने महामारी के दौरान अपने कथित आर्थिक सुधार कार्यक्रम में व्यापक और तेज निजीकरण मुहिम को केंद्र में रखा है। इसके तहत कोयला उद्योग, बैंक, एयर इंडिया के निजीकरण पर काम चल रहा है। इस पूरे कार्यक्रम को 'नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन स्कीम' नाम दिया गया है जिसके तहत 6 ट्रिलयन रुपये (80 अरब डॉलर) इकट्ठा किया जाना है। यानी इस स्कीम के तहत अधिकांश सार्वजनिक ढांचे स्वतः निजीकरण की प्रक्रिया में आ जाएंगे, जिनमें बंदरगाह, रेल लाइनें, हाईवे और बिजलीघर और ट्रांसमिशन ग्रिड शामिल हैं।

अपने से संबद्ध ट्रेड यूनियनों की तरह ही दो बड़ी स्टालिनवादी पार्टियां- सीपीएम और सीपीआई ने भी एमएसआरटीसी कर्मचारियों को उनके हाल पर छोड़ दिया है और उनके तीन महीने के बहादुराना संघर्ष को प्रचारित करने से भी मना कर दिया है। कर्मचारियों के जुझारू संघर्ष के उदाहरणों से स्टालिनवादी डरे हुए हैं और वे पूंजीवाद समर्थक यूनियन उपकरणों को बनाए रखने के लिए अडिग हैं। वे महाराष्ट्र राज्य सरकार को राजनीतिक रूप से बचाना चाहते हैं, जिसे वे मोदी और बीजेपी के ख़िलाफ़ लड़ाई में सहयोगी मानते हैं, इसके बावजूद कि इसकी अगुवाई फासीवादी और मराठा पहचान की उग्र राजनीति करने वाली शिव सेना कर रही है।

इसका एक और कारण यह है कि केरल में सीपीएम-सीपीआई नीत लेफ़्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट की सरकार खुद अपने यहां केरल राज्य सड़क परिवहन निगम (केएसआरटीसी) के कर्मचारियों के साथ युद्ध छेड़े हुए है। एमएसआरटीसी कर्मचारियों की तरह ही केएसआरटीसी के कर्मचारियों की भी वेतन, काम के खराब हालात और नौकरी की गारंटी से संबंधित शिकायतें हैं।

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