गुरुवार, 13 जून को सोशलिस्ट इक्वालिटी पार्टी और वर्ल्ड सोशलिस्ट वेब साइट के अंतरराष्ट्रीय संपादकीय बोर्ड की ओर से यह चिट्ठी वॉशिंगटन डीसी में यूक्रेन के राजदूत ओक्साना मारकारोवा को सौंपी जाएगी।
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नेल्ली जनसंहार में भारत की मौजूदा सत्तारूढ़ हिंदू बर्चवस्ववादी बीजेपी ने बड़ी भूमिका निभाई थी. बांग्लादेश से आए बेहद ग़रीब विस्थापित शरणार्थियों के ख़िलाफ़ "अवैध विदेशी" के नाम पर बड़े पैमाने पर सामप्रदायिक भड़काऊ अभियान के कारण यह जनसंहार हुआ था.
Perspective
असली रंग दिखाते हुए
भारत की मोदी सरकार, ईरान पर अमेरिकी इसराइली जंग का चुपचाप समर्थन कर रही
नई दिल्ली की मुख्य चिंता है भारत-अमेरिकी रणनीतिक गठबंधन को और बढ़ाना जारी रखना, और इसीलिए उसने भारतीय पूंजीपति वर्ग की महाशक्ति बनने की महत्वाकांक्षा को पूरा करने की खातिर, वॉशिंगटन के समर्थन के बदले में, चीन के ख़िलाफ़ अमेरिकी साम्राज्यवाद की आक्रामकता में खुद को और अधिक शामिल कर लिया है।
बंदूक की नोक पर जिन लोगों को निष्कासित किया जा रहा है, उनमें रोहिंग्या शरणार्थी और बांग्लादेश से आए ग़रीब प्रवासी शामिल हैं, साथ ही गरीबी से त्रस्त कई मुसलमान भी शामिल हैं, जो पीढ़ियों से भारत में रहते आए हैं।
कुछ अनुमानों के अनुसार, पाकिस्तान की 90 प्रतिशत आबादी सिंधु के जल पर निर्भर है।
एयर इंडिया विमान के भीषण क्रैश के जो भी आधिकारिक कारण रहे हों, मोदी सरकार और बोइंग दोनों ही पैसेंजर सेफ़्टी की बजाय कार्पोरेट हितों को बचाने में जुटे हुए हैं।
इस समझौते को डीएमके की तमिलनाडु राज्य सरकार के दबाव में किया गया, जोकि ग़रीबी के स्तर की मज़दूरी और काम के क्रूर हालात को चुनौती देने वाले सैमसंग वर्करों का पूरे ज़ोर से विरोध किया क्योंकि उसे डर था कि उनके जुझारूपन का उदाहरण निवेशकों को डरा देगा।
आम हड़ताल को रद्द करने को सही ठहराते हुए यूनियनों ने, पाकिस्तान के साथ भारतीय बुर्जुआजी के प्रतिक्रियावादी रणनीतिक संघर्ष के प्रति अपना खुलेआम समर्थन ज़ाहिर किया और खुद को देश की ज़िम्मेदार देशभक्त जनता का अभिन्न हिस्सा बताया.
इस्लामाबाद ने चेतावनी दी है कि अगर भारत ने पाकिस्तान का पानी रोका, जिस पर कि इसके पॉवर ग्रिड और सिंचाई नेटवर्क निर्भर हैं, तो इसे 'एक्ट ऑफ़ वॉर' यानी जंग का एलान समझा जाएगा।

भारत पाकिस्तान संघर्ष से परमाणु विनाश का ख़तरा
भारत और पाकिस्तान, दक्षिण एशिया के दो प्रतिद्वंद्वी परमाणु हथियार संपन्न शक्ति हैं और एक दूसरे के ख़िलाफ़ पूर्ण युद्ध की कगार पर हैं। अगर ऐसा संघर्ष होता है तो यह बहुत ही विनाशकारी होने वाला है, केवल इस क्षेत्र के दो अरब लोगों के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए।
ट्रंप प्रशासन का एक महीनाः कुलीन तंत्र बनाम मज़दूर वर्ग
पिछले चार हफ़्तों की परिघटनाओं ने साबित किया है कि ट्रंप की वापसी, असल में अमेरिकी समाज के कुलीन तंत्र वाले चरित्र के साथ कदमताल करने के लिए राजनीतिक अधिरचना में जबरिया फेरबदल का प्रतिनिधित्व करती है।
युद्ध फ़ासीवाद और कुलीनतंत्र के ख़िलाफ़ समाजवाद
पूंजीवादी व्यवस्था के अंतरसंबंधित संकट के पीछे एक कुलीनतंत्र है, जो पूरे समाज को अपने लाभ और निजी दौलत इकट्ठा करने के लिए अपना ग़ुलाम बना लेता है। इस कुलीनतंत्र के ख़िलाफ़ संघर्ष, अपनी प्रकृति में ही एक क्रांतिकारी कार्यभार है।
डोनाल्ड ट्रंप की हत्या की कोशिश
हमले का कारण जो भी कुछ हो, एक बात निश्चित हैः यह पूरे राजनीतिक सत्तातंत्र को दक्षिणपंथ की ओर तेजी से मोड़ देगा।