अंग्रेज़ी के मूल लेख Indian pharmaceutical factory explosion leaves 42 dead का यह हिंदी अनुवाद है, जो सात जुलाई 2025 को प्रकाशित हुआ था।
भारत का औद्योगिक क्षेत्र मज़दूरों के लिए ख़तरनाक रूप से असुरक्षित बना हुआ है, इसकी एक और दुखद पुष्टि दक्षिणी राज्य तेलंगाना में 30 जून को एक दवा कारखाने में हुए विनाशकारी धमाके से हुई, जिसमें कम से कम 42 वर्करों की जान चली गई और कई अन्य घायल हो गए।
धमाके के समय 143 वर्कर मौजूद थे और धमाके के तुरंत बाद आग से पूरा परिसर घिर गया। कई शव पहचान से परे बुरी तरह जल गए थे जिसकी वजह से प्रशासन को उनकी पहचान के लिए डीएनए टेस्टिंग करवानी पड़ी।
यह दुर्घटना, तेलंगाना के सांगारेड्डी ज़िले के पाशामिलारम औद्योगिक क्षेत्र में स्थित सिगाछी इंडस्ट्रीज़ में घटित हुई। यह फ़ैक्ट्री 1989 में स्थापित हुई थी और यह कंपनी फ़ार्मास्यूटिकल्स कैप्सूल के प्रमुख तत्व माइक्रोक्रिस्टलाइन सेल्यूलोज़ (एमसीसी), जिसे लकड़ी की लुगदी से निकाला जाता है, की एक बड़ी उत्पादक है। कंपनी अन्य निष्क्रिय दवा घटकों का भी उत्पादन करती है और भारत भर में स्थित अपनी इकाइयों से 65 से अधिक देशों को अपने उत्पादों का निर्यात करती है।
धमाका इतना तेज़ था कि इसकी आवाज कंपनी से दो किलोमीटर दूर स्थित इसनापुर के निवासियों को भी सुनाई दी। मीडिया से बात करते हुए स्थानीय लोगों ने घटनास्थल पर अफ़रातफ़री और असमंजस के माहौल के बारे में बताया। एक घरेलू महिला रजिता ने बताया कि उसे लगा कि कोई 'बम फटा' है और अपने रोते हुए बच्चे को लेकर दूर चली गई।
स्थानीय चाय विक्रेता रमा देवी ने बताया कि 'धमाके ने हमारी खिड़कियाँ हिला दीं' और शुरुआत में तो उन्हें समझ नहीं आया कि यह धमाका कहां हुआ, लेकिन फिर उन्होंने 'दूर से काला धुआँ' देखा। 24 साल के गोदाम कर्मचारी प्रवीण कुमार ने बताया कि 'धमाका कान सुन्न कर देने वाला था', फिर बाहर आकर उन्होंने देखा कि 'हवा धुएं और रसायनों की गंध से भरी हुई थी।'
धमाके के बाद, प्रशासन के शीर्ष अधिकारियों ने घटनास्थल का दौरा किया। तेलंगाना के स्वास्थ्य मंत्री सी. दामोदर राजा नरसिम्हा ने कई बार दौरा किया, जिसके बाद मुख्यमंत्री ए रेवंथ रेड्डी भी पहुंचे।
जनता के गुस्से को शांत करने के लिए रेड्डी ने मारे गए वर्करों के हर परिवार को क़रीब एक करोड़ रुपये और बुरी तरह घायल लोगों को दस लाख रुपये का मुआवज़ा देने का निर्देश दिया। लेकिन जनता को इस बात का भरोसा नहीं हो रहा था और बहुत से लोग असमंजस में थे कि क्या वादा की गई राशि वाक़ई उन्हें मिल पाएगी, क्योंकि इन हालात में किए गए वादों का भारतीय प्रशासन का रिकॉर्ड बहुत बदनुमा रहा है।
रेड्डी ने दावा किया कि राज्य सरकार इस तरह के औद्योगिक हादसों को रोकने के लिए क़दम उठाएगी और सिगाछी इंडस्ट्रीज़ में सुरक्षा उल्लंघन की जांच के लिए चार सदस्यों वाले एक एक्सपर्ट पैनल के गठन की घोषणा की।
द हिंदू के अनुसार, पैनल एक महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपेगा। पिछले अनुभव बताते हैं कि इसके निष्कर्षों के आधार पर आपराधिक आरोप लगने की संभावना कम है। मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि आपदा के इतने बड़े पैमाने पर होने के बावजूद, कंपनी के किसी भी वरिष्ठ अधिकारी ने घटनास्थल का दौरा नहीं किया, जिससे मज़दूरों के जीवन के प्रति कॉर्पोरेट उदासीनता उजागर होती है।
पीड़ित परिवार के एक सदस्य की शिकायत पर कार्रवाई करते हुए, संगारेड्डी पुलिस ने 30 जून को धमाके के सिलसिले में सिगाछी इंडस्ट्रीज प्रबंधन के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की। यह मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 105 (गैर इरादतन हत्या), 110 (गैर इरादतन हत्या का प्रयास) और 117 (जानबूझकर गंभीर चोट पहुँचाने) के तहत दर्ज़ किया गया।
यह शिकायत 21 साल के साई यशवंत ने दर्ज कराई, जो लंबे समय से कंपनी में कार्यरत राजनला वेंकट जगन मोहन के बेटे हैं और जिनकी इस दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। यशवंत ने आरोप लगाया कि उनके पिता और अन्य कर्मचारियों ने कंपनी प्रबंधन को पुरानी मशीनों और भयावह दुर्घटना के आशंका के बारे में बार-बार आगाह किया था। उनमें से अभी तक किसी की गिरफ़्तारी नहीं हुई है।
औद्योगिक विशेषज्ञों के हवाले से, द हिंदू ने बताया कि धमाका संभवतः स्प्रे-ड्राइंग प्रक्रिया के दौरान हुआ होगा, जिसका इस्तेमाल लकड़ी की गूदे के घोल को माइक्रोक्रिस्टलाइन सेलुलोज़ में बदलने के लिए किया जाता है। इस प्रक्रिया में गर्म हवा के ज़रिए गूदे से नमी को हटाकर उसे एक महीन पाउडर बनाया जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस अत्यधिक ज्वलनशील पदार्थ में आग लग गई होगी, जिससे यह भयानक धमाका हुआ।
बिज़नेस मामलों की प्रमुख समाचार वेबसाइट, मनीकंट्रोल डॉट कॉम ने बताया कि चल रही जांच में पता चला है कि कई गंभीर ग़लतियों के कारण ये धमाका हुआ। इनमें ख़राब तापमान सेंसर और अलार्म का सही समय पर न बजने जैसे कारण शामिल हैं। ये सेंसर एमसीसी की ओवरहीटिंग का पता नहीं लगा पाए, जोकि 399 डिग्री सेल्सियस तापमान पैदा करता है।
कहा जा रहा है कि फ़ैक्ट्री के पास कोई वैध फ़ायर सेफ़्टी सर्टिफ़िकेट नहीं था। इसके अलावा गर्म करने के सिस्टम को आटोमेटिक बंद करने या अलार्म बजाने के बनाए गए प्लांट के इंटरलॉकिंग सिस्टम में ख़राबी थी। जांचकर्ताओं ने स्प्रे ड्रायर के जाम होने, ख़राब मेंटेनेंस और असुरक्षित शिफ़्ट टाइमिंग को कारण बताया है।
भारतीय इंस्टीट्यूट ऑफ़ केमिकल टेक्नोलॉजी के प्रमुख वैज्ञानिक के. बाबू राव ने पल्प ड्रायर को 'टाइम बम' बताया। ख़तरनाक ड्रायर क्षेत्र में कामगारों की अधिक संख्या ने जोख़िम को और बढ़ा दिया।
धमाके के अन्य कारणों में उपकरणों और फ़िल्टर में ख़राबी हो सकती है, इसके अलावा साफ़ तौर पर नियमामक ख़ामियां दिखाई देती हैं। सरकारी अधिकारियों ने प्लांट में सुरक्षा जांच और नियमों के पालन को लेकर सार्वजनिक रूप से सवाल किए।
सिगाछी इंडस्ट्रीज में हुआ धमाका भारत के फ़ार्मास्युटिकल सेक्टर में हुई भयानक घटनाओं की श्रृंखला में सबसे ताज़ा दुर्घटना है। साल 2024 से अब तक कम से कम तीन बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाएँ हो चुकी हैं।
साल 2024 में संगारेड्डी स्थित एसबी ऑर्गेनिक्स में हुए धमाके में छह मज़दूर मारे गए थे। उसी साल अगस्त में पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश के अनकापल्ली में एक फ़ैक्ट्री में हुए धमाके में 17 मज़दूर मारे गए। जून 2025 में आंध्र प्रदेश के ही परवाड़ा में हुई एक और घटना में दो लोगों की जान चली गई।
एक वैश्विक यूनियन फ़ेडरेशन 'इंडस्ट्री-ऑल' के आंकड़ों के अनुसार, 2024 का साल भारत में कार्यस्थल सुरक्षा के लिए 'एक और भयावह साल' रहा, जिसमें औद्योगिक दुर्घटनाओं में 400 से ज़्यादा मज़दूर मारे गए और 850 गंभीर रूप से घायल हुए। व्यापक रूप से कम रिपोर्टिंग के कारण वास्तविक आँकड़े शायद कहीं ज़्यादा हैं।
फ़ेडरेशन ने ये भी कहा कि साल 2025 तक रासायनिक और दवा क्षेत्र में 60 औद्योगिक दुर्घटनाओं में 100 से अधिक मज़दूरों की मौत हो चुकी है और 170 से अधिक घायल हुए हैं।
द हिंदू ने बताया कि तेलंगाना देश की एक-तिहाई दवाइयों, निर्यात का पांचवां हिस्सा और वैश्विक वैक्सीन का एक-तिहाई उत्पादन करता है। पिछले चार वर्षों में राज्य में 1.49 अरब डॉलर से ज़्यादा का निवेश हुआ है।
किफ़ायती जेनेरिक दवाओं और टीकों के उत्पादन में अग्रणी भूमिका के कारण भारत को अक्सर 'दुनिया की फ़ार्मेसी' कहा जाता है। साल 2022 में भारत के दवा उद्योग का कारोबार, 50 अरब डॉलर का था, जो वैश्विक जेनेरिक दवाओं का 20 प्रतिशत से ज़्यादा है और दुनिया भर में लगभग 60 प्रतिशत वैक्सीन उपलब्ध कराता है। 3,000 से ज़्यादा दवा कंपनियों के साथ, भारत 200 से ज़्यादा देशों को निर्यात करता है।
हालांकि भारत के कम लागत वाले दवा उत्पादन से लाखों लोगों को लाभ हुआ है, विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों को, लेकिन लाभ की भावना और सरकारी उदासीनता से प्रेरित सुरक्षा और गुणवत्ता मानकों के घोर उल्लंघन से, घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घातक परिणाम भी सामने आए हैं।
साल 2020 में जम्मू में मिलावटी कफ़ सिरप पीने से 11 बच्चों की मौत हो गई। 2022 में पश्चिम अफ़्रीका में लगभग 70 बच्चों की भारत में बनी कफ़ सिरप पीने के कारण किडनी फेल होने से मौत गई। विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रयोगशाला में किए गए विश्लेषण में पाया गया कि सिरप में 'ज़रूरत से ज़्यादा मात्रा में डाइएथिलीन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल' रसायन थे, जो औद्योगिक इस्तेमाल के लिए थे।
अपनी 2022 की किताब, 'द ट्रुथ पिल: द मिथ ऑफ ड्रग रेगुलेशन्स इन इंडिया' में लेखक दिनेश एस. ठाकुर और प्रशांत रेड्डी टी. ने भारत की दवा लाइसेंसिंग प्रणाली में गंभीर ख़ामियों को उजागर किया है। उन्होंने खुलासा किया है कि भारतीय नियामकों ने ऐसी दवाओं को मंज़ूरी दे दी है जो विकसित बाजारों में कभी स्वीकृत नहीं हुईं।
यहाँ तक कि पुराने नियमों का भी ठीक से पालन नहीं किया जाता है, निरीक्षक और मजिस्ट्रेट अक्सर गंभीर उल्लंघनों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं, जिनमें नगण्य सक्रिय तत्व या ख़तरनाक जीवाणु आंतरिक ज़हर फैलाने वाली दवाएँ शामिल हैं। लेखकों का तर्क है कि भारत की नियामक प्रणाली, वैज्ञानिक मानदंडों की बजाय उद्योग के विकास को प्राथमिकता देती है, दूसरे शब्दों में, सुरक्षा की बजाय लाभ को ऊपर रखती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के शासनकाल में औद्योगिक दुर्घटनाओं में तेज़ी से वृद्धि हुई है, क्योंकि वैश्विक पूंजीवादी हितों के साथ उनके जुड़ाव ने सुरक्षा उपायों को और कमज़ोर कर दिया है। निजीकरण को बढ़ावा देने वाली, श्रम अधिकारों को कम करने वाली और ठेका मज़दूरी को बढ़ावा देने वाली नीतियों ने असुरक्षित कामकाजी परिस्थितियों को और बढ़ा दिया है।
29 कानूनों को चार लेबर कोड्स में समेटने वाले भारत के 2020-21 के लेबर कोड्स सुधार में व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा संहिता (सेफ़्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशन कोड) भी शामिल है जिसने बुनियादी सुरक्षा उपायों को काफ़ी कमज़ोर कर दिया है, जिससे बड़ी घरेलू और बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ मज़दूरों का भयंकर शोषण कर पा रही हैं। लगातार मज़दूरों की जान लेने वाले इस घातक चक्र को समाप्त करने के लिए, मज़दूर वर्ग की राजनीतिक और औद्योगिक लामबंदी ज़रूरी है, ताकि मानव जीवन पर मुनाफ़े को प्राथमिकता देने वाली पूँजीवादी व्यवस्था का सामना किया जा सके और उसे ख़त्म किया जा सके।