चेन्नई के बाहरी इलाके में स्थित दुनिया की अग्रणी कार कंपनी के असेम्बली प्लांट के ऑटो वर्करों द्वारा नई बनाई गई रेनॉल्ट-निसान वर्कर्स रैंक एंड फ़ाइल कमेटी ने ये बयान जारी किया है. चेन्नई दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु की राजधानी है और भारत का चौथा बड़ा शहर है.
चेन्नई में दुनिया की दो सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनियों रेनॉल्ट-निसान में क़रीब 6,000 वर्कर काम करते हैं. इनमें कम से कम आधे वर्कर ठेका मज़दूर या ट्रेनी हैं. ट्रेनी का मतलब है कि उन्हें स्थाई वर्कर का दर्ज़ा हासिल नहीं है और उन्हें बहुत ही मामूली वेतन दिया जाता है.
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तमिलनाडु में श्रीपेरम्बदूर-ओरागाडाम औद्योगिक इलाक़े में स्थित रेनॉल्ट-निसान ऑटो असेम्बली में काम करने वाले वर्करों का हमारा एक समूह है. हम ये मानते हैं कि प्रबंधन के लगातार हमलों का मुकाबला करने के लिए हमें मज़दूर वर्ग के नए संगठन बनाने होंगे. ये काम इसलिए भी करना होगा क्योंकि मौजूदा ट्रेड यूनियनें हमारा प्रतिनिधि होने का दावा करने के बावजूद हमें लगतार धोखा देती रही हैं. हमारे अनुभव ने भी हमें यही मानने को मजबूर किया है कि ट्रेड यूनियन फ़ेडरेशनें अलग थलग पड़ रही हैं और मज़दूरों के संघर्षों को बेचने का काम कर रही हैं और मैनेजमेंट के साथ मिलकर अभूतपूर्व रूप से लगातार घटते वेतन और काम के गिरते हालात को हम पर थोपने का काम कर रही हैं.
इसीलिए हम रेनॉल्ट-निसान वर्कर्स रैंक एंड फ़ाइल कमेटी (आएएनआरएफ़सी-चेन्नई) बनाने के लिए एकजुट हुए हैं. इस कमेटी के मार्फ़त रैंक एंड फ़ाइल संघर्ष को अपने हाथ में ले सकता हैं, लोकतांत्रिक तरीके से हमारी मांगों को रख सकता है और रणनीति बनाने के साथ इसे जीतने के लिए ज़रूरी संघर्ष को संगठित कर सकता है. इस नए संगठन को बनाकर हम इस औद्योगिक इलाके के अपने मज़दूर भाई बहनों को दिखा देंगे कि राज्य और केंद्र सरकारों के साथ मिलीभगत कर मज़दूरों पर हमला बोलने वाले कार्पोरेशनों के ख़िलाफ़ प्रत्याक्रमण करने और वर्करों को एकजुट करने में हम सबके सामने एक प्रगतिशील रास्ता मौजूद है.
केवल परमानेंट वर्करों वाली यूनियनों से उलट, आरएनआरएफ़सी-चेन्नई का मक़सद परमानेंट, कांट्रैक्ट और ट्रेनी वर्करों के बीच अटूट एकता क़ायम करना है. निजी और सार्वजनिक कंपनियां, मज़दूरों में बनाई गई इन मनमाना श्रेणियों का इस्तेमाल पूरे भारत में मज़दूरों के शोषण को बढ़ाने, हड़ताल को तोड़ने और मज़दूरों में फूट डालने के लिए करती हैं. आरएनआरएफ़सी-चेन्नई 'समान काम के समान वेतन' और 'ठेका और अस्थाई वर्करों की श्रेणी को हमेशा के लिए ख़त्म करने' के लिए संघर्ष करती है.
भाईयों और बहनों, जैसा कि आप जानते हैं, हम अप्रैल 2018 से ही बिना कांट्रैक्ट के काम करते रहे हैं यानी साढ़े चार साल हो चुके हैं. इस तथ्य के बावजूद कि हमारे कांट्रैक्ट को लेकर सामूहिक समझौता आम तौर पर तीन साल के लिए होता है.
रेनॉल्ट-निसान इंडिया थोझीलालार संघम (आरएनआईटीएस) और यूनाइटेड लेबर फ़ेडरेशन (यूएलएफ़), दोनों ने ही बिना रैंक एंड फ़ाइल से सलाह मशविरा किए अपनी मर्ज़ी से समझौता करके अपना अव्वल दिवालियापन दिखा दिया है और मार्च 2021 में हमारा कांट्रैक्ट ख़त्म होने के बाद भी धोखाधड़ी वाली प्रक्रिया में भाग लेना जारी रखा. ये मनमानी प्रक्रिया 2020 की पहली तिमाही में ही शुरू हो गई थी. यानी क़रीब क़रीब तीन साल पहले! इसके अलावा, अप्रैल 2021 से मार्च 2024 तक के नए कांट्रैक्ट के लिए यूनियन नेताओं की ओर से संघर्ष खड़ा करने के कोई कदम नहीं उठाए गए.
कोर्ट की मदद से रेनॉल्ट-निसान को अंतहीन मनमाना समझौता प्रक्रिया चलाने दिया गया जिसने पहले से मुश्किल में जी रहे मज़दूरों को और ग़रीबी में धकेल दिया. इसके बावजूद यूनियनें अभी भी हड़ताल या जुझारू कार्रवाई करने की राह में रोड़ा अटका रही हैं.
जब 2018 में कांट्रैक्ट ख़त्म हुआ तो यूनियन ने रेनॉल्ट-निसान मैनेजमेंट को मांग पत्र (चार्टर ऑफ़ डिमांड) दिया था. तब मैनेजमेंट ने तीन साल के लिए 5000 रुपये प्रति माह की वेतन बढ़ोत्तरी की अपमानजनक पेशकश की थी. लेकिन आसमान छूती महंगाई को देखते हुए ये वेतन में भारी कमी का ही द्योतक था. यह समझौता वार्ता भी 2019 के अंत तक घिसटती रही. कंपनी के इस अड़ियल रवैये से आक्रोषित सभी परमानेंट मज़दूरों ने 2019 के अंत में सामूहिक रूप से हड़ताल पर जाने का मन बना लिया था. यहां तक कि हर सदस्य ने हड़ताल फ़ंड के लिए 1000 रुपये चंदा देने की पेशकश भी की थी.
लेकिन जब यूनियन ने प्रबंधन को हड़ताल का नोटिस दिया तो कंपनी 2020 की शुरुआत में मध्यस्थता के लिए चली गई. तब आरएनआईटीएस और यूएलएफ़ ने मैनेजमेंट की ओर से शुरू की गई इस मध्यस्थता में हिस्सा लेने का एकतरफ़ा फैसला कर लिया. उन्होंने तर्क में दावा किया कि हड़ताल की स्थिति में, कंपनी रैंक एंड फ़ाइल वर्करों को निशाना बनाती, उन्हें डिसमिस करती या हममें से कुछ को ट्रांसफ़र करती. ये तर्क तब दिया गया जब 3000 परमानेंट वर्करों ने सामूहिक रूप से हड़ताल में जाने का फ़ैसला कर लिया था.
रेनॉल्ट-निसान की धमकियों को फेल करने के लिए अपनी रणनीति को और आगे ले जाने की बजाय यूनियन अपनी करतूतों और मैनेजमेंट के साथ अपनी मिलीभगत को ही सही ठहराती रही.
बाकी पूंजीपति कंपनियों की तरह ही रेनॉल्ट-निसान अपने मुनाफ़े को बढ़ाने और उसे सुरक्षित करने के लिए बर्बर तरीक़े अख़्तियार करेगी, पुलिस, कोर्ट और दक्षिणपंथी डीएमके सरकार के साथ गठजोड़ करेगी. लेकिन हम वर्कर श्रीपेरम्बदूर-ओरागाडाम औद्योगिक इलाक़े में एक सशक्त एकुजट ताक़त हैं और पूरे भारत और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मज़दूर वर्ग ही वो संभावित सबसे बड़ी ताक़त है, जो समाज़ की समस्त दौलत पैदा करता है.
हम जिन मुद्दों के लिए संघर्ष कर रहे हैं- जैसे ग़रीबी स्तर के वेतन के ख़ात्मे के लिए, ठेकेदारी प्रथा ख़त्म करने के लिए- ये बातें सभी वर्करों के लिए मूल रूप से महत्वपूर्ण हैं. इसीलिए मैनेजमेंट के हमलों के ख़िलाफ़ मज़दूर वर्ग का व्यापक संघर्ष खड़ा करने के लिए हमें अपील करना ही चाहिए और हम कर सकते हैं.
यूनियनों की दिवालिया रणनीति और कायराना हरक़त से केवल रेनॉल्ट-निसान वर्कर ही मुश्किल नहीं झेल रहे हैं. फ़ोर्ड वर्करों ने चेन्नई फ़ोर्ड एम्प्लाईज़ यूनियन (सीएफ़ईयू) के द्वारा सबसे नंगे तौर पर विश्वासघात का शिकार हुए. प्लांट बंद होने से 2,600 से अधिक वर्कर अपनी नौकरी से हाथ धो बैठे हैं. इनमें अधिकांश अपने परिवार को चलाने वाले एकमात्र कमाऊ व्यक्ति थे.
फ़ोर्ड मैनेजमेंट और तमिलनाडु की डीएमेक सरकार के साथ अंदरखाने मिलीभत करने वाली सीएफ़ईयू, ने पिछले साल 2 जुलाई को पांच हफ़्ते से चल रही जुझारू हड़ताल को अचानक वापस ले लिया. हड़ताल की अगुवाई नौजवान वर्कर कर रहे थे और जो फ़ोर्ड को अपना प्लांट मनमाने तरीक़े से बंद करने और मज़दूरों को निकाल फेंकने के 'अधिकार' को चुनौती दे रहे थे. सीएफ़ईयू ने ये सब बिना हड़ताली वर्करों से पूछे, सिर्फ़ यूनियन सदस्यों के वोट की आड़ लेकर किया.
खुद को 'वामपंथी' बताने वाली सीआईटीयू, एलटीयूसी और एआईटीयूसी समेत कोई भी ट्रेड यूनियन फ़ेडेरशन ने फ़ोर्ड वर्करों के लिए कोई वास्तविक सपोर्ट इकट्ठा करने की कोशिश नहीं की, बावजूद इसके कि श्रीपेरम्बदूर-औरागाडाम औद्योगिक इलाक़े में इनकी अच्छी ख़ासी मौजूदगी है. सीटू और एटक क्रमशः सीपीएम और सीपीआई से जुड़ी फ़ेडरेशन हैं, उन्होंने कारपोरेट परस्त डीएमके की तमिलनाडु सरकार का खुल कर समर्थन ही करती हैं.
पिछले दशक में, पूरे भारत और इस औद्योगिक इलाक़े के कई उद्योगों में बहुत सारे संघर्ष फूट पड़े थे. लेकिन वर्करों की बहादुरी और जुझारू रवैये के बावजूद यूनियनों ने इन संघर्षों को अलग थलग करने का ही काम किया जिससे इन संघर्षों को हार का मुंह देखना पड़ा. इन संघर्षों में यामाहा, रॉयल एनफ़ील्ड, मदर्सन ग्रुप (इंडस्ट्रीज़) और जेबीएम के वर्कर शामिल थे.
पूरी दुनिया में मज़दूरों के संघर्षों को राष्ट्रीय स्तर की पूंजीपरस्त ट्रेड यूनियनें नष्ट भ्रष्ट कर रही हैं. वर्ल्ड सोशलिस्ट वेब साइट (डब्ल्यूएसडब्ल्यूएस) के रूप में रैंक और फ़ाइल कमेटियों के गठन ने साफ़ कर दिया है कि, 'ये वर्ग संघर्ष के नए रास्ते खोलेंगे, जिसमें मज़दूर वर्ग के भरोसेमंद प्रतिनिधि, हर संघर्ष को तोड़ने के लिए ट्रेड यूनियन अफ़सरशाही की हर कोशिशों को मात देने के संघर्ष की अगुवाई करेंगे.'
रेनॉल्ट-निसान जैसे बड़े कार्पोरेशनों, जो वैश्विक स्तर पर काम करते हैं और वैश्विक स्तर पर रणनीति बनाते हैं, के ख़िलाफ़ सफल लड़ाई के लिए वर्करों को अपनी वैश्विक रणनीति विकसित करनी होगी ताकि सिर्फ़ तमिलनाडु में ही नहीं बल्कि पूरे भारत और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऑटो वर्करों और अन्य वर्करों की एकजुटता क़ामय की जा सके. ख़ासकर ये बहुत महत्वपूर्ण है कि दुनिया भर के रेनॉल्ट-निसान के वर्करों के साथ संपर्क स्थापित किए जाएं. इंटरनेशनल वर्कर्स अलायंस ऑफ़ रैंक एंड फ़ाइल कमेटीज़ (आईडब्ल्यूए-आरएफ़सी) के निर्माण में आईसीएफ़आई की मौजूदा कोशिशों का आरएनआरएफ़सी-चेन्नई समर्थन करता है ताकि सभी मज़दूरों के लिए एक बेहतर भविष्य की लड़ाई में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वर्कर जुड़ सकें और आपसी तालमेल बिठा सकें.
आरएनआरएफ़सी निम्नलिखित शुरुआती मांगों को जारी करता हैः
- आरएनआईटीएस और यूएलएफ़ जिस तरह रेनॉल्ट-निसान मैनेजमेंट और कोर्ट के साथ क़रीब चार साल तक बेनतीजा समझौता वार्ता करता रहा, उसे तुरंत बंद किया जाए. इसकी जगह, हमें 'नो कांट्रैक्ट नो वर्क' का सिद्धांत अपनाना चाहिए. हमें एक अनिश्चितकालीन हड़ताल का दबाव बनाने और उसकी तैयारी करनी चाहिए जबतक हमारी मांगें पूरी नहीं हो जातीं.
- रैंक एंड फ़ाइल वर्करों के द्वारा लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई एक नई समझौता वार्ता कमेटी बनानी चाहिए, ताकि भयंकर महंगाई से बेजार हो चुके वेतन को बेहतर बनाने और काम के हालात सुधारने के संघर्ष की अगुवाई सबसे भरोसेमंद वर्कर कर सकें.
- वर्करों के पीठ पीछे कोई भी गुपचुप समझौता नहीं होना चाहिए. अबसे मैनेजमेंट और नई चुनी हुई मज़दूर प्रतिनिधियों के बीच जो भी बातचीत होगी, उसे वार्ता करने वाली कमेटी को तुरंत रैंक एंड फ़ाइल वर्करों को सूचित करना होगा.
- सभी वर्करों को समान वेतन दो चाहे वो किसी भी श्रेणी के हों. जातीय और साम्प्रदायिकता से ऊपर उठकर सभी मज़दूर एकजुट हों.
भाईयों और बहनों, हमें उम्मीद है कि इस दस्तावेज में दिए गए नज़रिये से आप भी सहमत होंगे. हम बहुत बड़ी ताक़त के मालिक हैं. और ये ताक़त उस समय भी दिखी थी जब कोविड-19 महामारी के दौरान असुरक्षित काम के हालात के कारण 2020 के मध्य हम हड़ताल शुरू करने वाले थे. और जिसके कारण मैनेजमेंट को दो सप्ताह तक प्लांट को बंद करने पर मज़बूर होना पड़ा और मज़दूरों को सवैतनिक छुट्टी देनी पड़ी. हम आपसे अपील करते हैं कि हमारे खुद के अनुभवों से सबक सीखें और संघर्ष के इस नए संगठन को खड़ा करने में मदद करें. कृपया हमसे संपर्क करें. मेल हैः rnrfc_chennai@yahoo.com आप हमारे Rnrfc-chennai के फ़ेसबुक पेज से भी जुड़ सकते हैं.