यह हिंदी अनुवाद अंग्रेजी के मूल लेख “SEP (Sri Lanka) denounces violent assault by ruling party thugs on its members” का है, जो मूलतः 4 December 2023 को प्रकाशित हुआ था I
मोरातुवा यूनिवर्सिटी में पोदुजाना प्रगतिशील सेवका संगमाया (पीपीएसएस) या पीपुल्स प्रोग्रेसिव एम्प्लाई यूनियन की शाखा के प्रेसिडेंट इंडिका परेरा और सेक्रेटरी सुरंगा पियावर्दना ने शोसलिस्ट पार्टी (एसईपी) के दो सदस्यों पर गुरुवार शाम को घातक हमला किया.
पीपीएसएस, श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे की दक्षिणपंथी सत्तारूढ़ पार्टी पोदुजना पेरुमुना (एसएलपीपी) द्वारा नियंत्रित ट्रेड यूनियन है. इसी पार्टी ने मौजूदा राष्ट्रपति रनिल विक्रमसिंघे को चुना है.
एसईपी के एक सदस्य देहिन वसंथा इस हमले में बुरी तरह घायल हो गए हैं. वो मोरातुवा यूनिवर्सिटी में पिछले 25 सालों से ग़ैर अकादमिक कर्मचारी हैं. वसंथा श्रीलंका टेक्निकल ऑफ़िसर्स यूनियन के सदस्य हैं और कर्मचारियों और छात्रों के बीच यूनिवर्सिटी के अंदर उनके अधिकारों के लिए लड़ने वाले और समाजवादी नीतियों का प्रचार करने वाले एक योद्धा के रूप में जाने जाते हैं. हमले में घायल एसईपी के दूसरे सदस्य लक्ष्मन फर्नांडो पार्टी के पूर्ण कालिक कार्यकर्ता हैं.
एसईपी इस नफ़रती हमले की निंदा करती है और अपनी स्वतंत्र राजनीतिक गतिविधियों को चलाने के लिए हमारी पार्टी के लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए श्रीलंका और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मज़दूरों, नौजवानों और छात्रों का आह्वान करती है.
हम मांग करते हैं कि अपराधियों पर क़ानून के तहत कड़ी कार्रवाई की जाए.
यह हमला तब हुआ जब एसईपी की टीम मोरातुवा कैंपस के पिछले गेट पर एक सार्वजनिक सभा के प्रचार के लिए पर्चे बांट रही थी, जिसमें एसईपी (अमेरिका) के नेशनल सेक्रेटरी जोसेफ़ किशोर भाषण देने वाले थे. इस पर्चे का शीर्षक था- 'ट्राटस्कीवाद के 100 साल के मौके पर बोलने के लिए एसईपी (अमेरिका) नेशनल सेक्रेटरी श्रीलंका आ रहे है.'
एसईपी के सदस्य मोरातुवा यूनिवर्सिटी के छात्रों के बीच प्रचार अभियान चला रहे थे.
शाम करीब छह बजे एसईपी के कॉमरेड अपने अभियान को ख़त्म करने जा रहे थे, क्योंकि छात्रों का आना कम हो गया था.
पुलिस को दी गई औपचारिक शिकायत में कहा गया है कि यूनियन के दो पदाधिकारी, परेरा और पियावर्दना लाठी से लैस एक ऑटोरिक्शा में वहां पहुंचे.
वे वसंथा पर चिल्लाते हुए टूट पड़े, 'आज हम तुम्हें ख़त्म कर देंगे. हम तुम्हें दोबारा यूनिवर्सिटी में आने नहीं देंगे.' परेरा ने वसंथा के सिर पर लाठी से मारने की कोशिश की, जो कि जानलेवा हो सकता था.
वसंथा ने इस वार से खुद को बचा लिया लेकिन दूसरे वार से उनका हाथ जख़्मी हो गया और उनकी दो उंगलियां टूट गईं. पियावर्दने ने वसंथा पर भी हमला किया और उनका चश्मा कुचल दिया.
इसईपी के सदस्य देहिन वसंथा हमले में घायल हो गए.
लक्ष्मन पर भी हमला किया गया जिससे उन्हें गर्दन पर चोट लगी और उनकी पीठ पर खरोंच और चोट के निशान पड़ गए.
जब एसईपी के अन्य सदस्य पहुंचे दोनों गुंडे भाग गए.
यह हमला योजना बना कर किया गया था. गुंडे जानते थे कि एसईपी सदस्य उस दिन प्रचार अभियान चला रहे थे. हमले के दौरान उनके साथ कुछ छात्र साथ आए थे जो उन्हें उकसा रहे थे और हमारे कॉमरेडों पर हुए हिंसक हमले को देख रहे थे.
हमलावर वसंथा के बारे में अच्छी तरह जानते थे कि वो एसईपी की अंतरारष्ट्रीय समाजवादी नीतियों की वकालत करते हैं. वो यूनिवर्सिटी के ग़ैर अकादमिक कर्मचारियों के अधिकारों के लिए लड़ने और यूनियन नौकरशाही की सरकार परस्त और पूंजीवाद परस्त नीतियों का पर्दाफ़ाश करने में सबसे आगे रहते हैं.
यूनियन मीटिंग में ये नौकरशाह हमेशा ही उन्हें बोलने से रोकते रहे हैं और कई बार उनपर हमला करने की कोशिश भी की है. एक स्वतंत्र वर्कर्स एक्शन कमेटी बनाने की वसंथा की कोशिशों को लेकर वे चिढ़े हुए थे.
हमारे कॉमरेड, पार्टी के वकील के साथ मोरातुवा पुलिस स्टेशन गए और शिकायत दर्ज कराई. चूंकि उनकी हालत गंभीर थी, इसलिए पुलिस उन्हें इलाज के लिए पास के लुनावा पब्लिक हॉस्पीटल ले गई. वहां एक्स रे की सुविधा नहीं है, इसलिए अगले दिन वसंथा को कोलंबो साउथ टेक्निकल हॉस्पीटल भेजा गया, जहां उनके बाएं हाथ में फ़्रैक्चर का पता चला.
रविवार को दोनों कॉमरेडों को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया लेकिन ध्यान रखने की सलाह दी गई. वसंथा के हाथ पर प्लास्टर लगा है और जबतक घाव भर नहीं जाता उससे वो कोई काम नहीं कर सकते. उन्हें आगे के इलाज के लिए क्लिनिक जाना है. लक्ष्मन के चेहरे, गर्दन और पीठ पर मरहम पट्टी की गई है.
एसईपी सदस्य लक्ष्मन फ़र्नांडो के चेहरे, पीठ और गर्दन पर चोट लगी है.
दोनों यूनियन पदाधिकारियों को हिरासत में लेकर शुक्रवार को रिमांड पर भेज दिया गया. हालांकि क़ानूनन ज़रूरी होने के बावजूद पुलिस ने टैक्सी को ज़ब्त नहीं किया जिस पर वे गुंडे आए थे, जबकि वकील ने पुलिस को उसका नंबर मुहैया कराया था.
शनिवार को परेरा और पियवर्दना को मोरातुवा में कार्यकारी मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया.
सुनवाई के दौरान एसईपी के वकील ने कहा कि दोनों ने देश के संविधान में प्रदत्त बोलने की आज़ादी के बुनियादी अधिकार का उल्लंघन किया है. उन्होंने कहा कि उन्होंने एसईपी सदस्यों के ख़िलाफ़ साज़िश रचने में सत्तारूढ़ पार्टी के अपने क़रीबी रिश्ते का इस्तेमाल किया और उन पर हमला किया जोकि जानलेवा हो सकता था.
कोर्ट में वकील ने उन पर्चों को पेश किया जो एसईपी की टीम बांट रही थी. उन्होंने कहा कि एसईपी देश के चुनाव आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय राजनीतिक दल ही नहीं है बल्कि इंटरनेशनल कमेटी ऑफ़ फ़ोर्थ इंटरनेशनल (आईसीएफ़आई) का हिस्सा भी है, जिसे पूरी दुनिया में अपनी सैद्धांतिक राजनीति के लिए जाना जाता है.
वकील ने दुहाराया कि इस पार्टी के सदस्यों पर हमले को राजनीति में सक्रिय किसी भी व्यक्ति और समाज के बुनियादी लोकतांत्रिक अधिकारों पर आपराधिक हमला माना जाना चाहिए.
वकील ने कहा कि सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा समर्थित ट्रेड यूनियन नेता कैसे गुंडों जैसा व्यवहार करते हैं. उन्होंने ये भी कहा कि यह कोई अचानक हुआ हमला नहीं है. यह पूरी योजना बनाकर किया गया क्योंकि इन गुंडों ने ऑटो रिक्शा किराए पर लिया और साथ में हथियार के रूप में लाठी भी लेकर आए थे. उन्होंने एसईपी सदस्यों का पीछा किया और सड़क के बीचोबीच उनपर हमला किया.
वकील ने दलील दी कि परेरा और पियावर्दने को रिहा करना एसईपी सदस्यों के लिए ख़तरनाक़ होगा क्योंकि ये दोनों सत्तारूढ़ पार्टी से अपने क़रीबी राजनीतिक रिश्ते का इस्तेमाल कर सकते हैं.
पुलिस ने घटना को मामूली दिखाने की कोशिश की और कार्यकारी मजिस्ट्रेट से कहा कि पीड़ितों को मामूली चोटें आई हैं और परेरा और पियावर्दने की ज़मानत का रास्ता साफ़ कर दिया. मजिस्ट्रेट ने पुलिस से पूछा कि उन्होंने ऑटो रिक्शा को ज़ब्त क्यों नहीं किया.
वकील ने डब्ल्यूएसडब्ल्यूएस को बताया कि पुलिस ने उन दोनों गुंडों के प्रति नरमी दिखाई.
कार्यकारी मजिस्ट्रेट ने दोनों आरोपियों को कड़ी शर्त पर ज़मानत दे दी, जिसमें 50,000 रुपये की दो निजी मुचलका और हर रविवार को पुलिस में हाज़िरी देना शामिल है.
आरोपियों को चेतावनी दी गई कि वे एसईपी की राजनीतिक गतिविधियों में बाधा न डालें.
एसईपी और इंटरनेशनल यूथ एंड स्टूडेंट्स फ़ॉर सोशल इक्वालिटी (आईवाईएसएसई) अपने कॉमरेडों और राजनीतिक गतिविधियां चलाने के पार्टी के लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए अभियान चलाएंगे.
मोरातुवा कैंपस में ये ट्रेड यूनियन नेता एसएलपीपी के गुंडा दस्ते का हिस्सा हैं, जो अधिकांश जगहों पर मज़दूरों के बीच विरोध की आवाज़ को दबाने का काम करता है.
सत्तारूढ़ दल हताश है क्योंकि जनता में उसकी छवि काफ़ी ख़राब हो चुकी है. पूर्व राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे की एसएलपीपी सरकार पिछले साल दसियों लाख मज़दूरों. ग्रामीण ग़रीबों और नौजवानों के जन उभार के चलते गिर गई थी. बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए थे और अभूतपूर्व पूंजीवादी आर्थिक संकट के भारी भरकम बोझ को अपने ऊपर थोपे जाने के ख़िलाफ़ सरकार की तीखी निंदा की.
जब लाखों की संख्या में जनता बीते साल 9 मई को कोलंबो में गाले फ़ेस ग्रीन पर कब्ज़ा करके प्रदर्शन कर रही थी, उनके ख़िलाफ़ हिंसा बरपाने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने ट्रेड यूनियन समेत अपने हज़ारों गुंडों को उनपर छोड़ दिया.
हालांकि इस जनउभार के चलते उनकी सरकार गिर गई. बदनाम गोटाबाया राजपक्षे देश से भाग गया और राष्ट्रपति पद से इस्तीफ़ा दे दिया. ट्रेड यूनियन नौकरशाही और छद्म वाम ग्रुपों द्वारा मज़दूरों के इस जनविद्रोह से धोखा किए जाने के मौके का फ़ायदा उठाकर एसएलपीपी ने शासक वर्ग के एक हिस्से के साथ मिलकर अमेरिकी परस्त विक्रमसिंघे को कार्यकारी राष्ट्रपति बनाने की साज़िश रची.
विक्रमसिंघे और एसएलपीपी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) की लगाई शर्तों पर सरकारी खर्चों में कटौती के कार्यक्रम को बर्बर तरीके से लागू कर रही है, नौकरियां, वेतन और पेंशन में कमी ला रही है. निजीकरण करने से लेकर सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था और शिक्षा जैसे सामाजिक कल्याण के कार्यक्रम में कटौती कर रही है और बर्दाश्त होने के बाहर ज़रूरी चीज़ों के दामों में बढ़ोत्तरी कर रही है.
इसकी वजह से मज़दूरों, छात्रों और ग्रामीण ग़रीबों की ओर से विक्रमसिंघे सरकार के ख़िलाफ़ विरोध लगातार बढ़ रहा है. इस व्यापक जन विरोध को सरकार ट्रेड यूनियन नौकरशाही के मार्फत दबाने की कोशिश कर रही है और बढ़ते विरोध को कुचलने के लिए वह दमनकारी पुलिस-सेना की मशीनरी और गुंडों के दस्तों का इस्तेमाल कर रही है.
सरकार द्वारा जनता के हालात पर हमला बोलने और उनके लोकतांत्रिक अधिकारों को कुचलने के विरोध में, मज़दूरों और छात्रों के बीच एसईपी के समाजवादी कार्यक्रम के बढ़ते प्रभाव को लेकर सरकार और यूनियन नौकरशाहियों समेत इसके समर्थक डरे हुए हैं.
जो पर्चा बांटा जा रहा था, उसमें एसईपी ने विस्तार से बताया है कि:
फ़लस्तीनियों पर यहूदीवादियों की हत्यारी नाकेबंदी समेत, साम्राज्यवादी युद्ध के फूटने से 20वीं शताब्दी की सभी अनसुलझी समस्याओं का सामना अंतरराष्ट्रीय मज़दूर वर्ग और नौजवानों से हो रहा है. मज़दूरों और उत्पीड़ित जनता जिन ज्वलंत मुद्दों का सामना कर रही है, मसलन, सामाजिक ग़ैरबराबरी, कोविड-19 महामारी, जलवायु परिवर्तन, राज्य का दमन और अधिनायकवाद एवं फासीवाद का उभार, ये सभी अंतरराष्ट्रीय समस्याएं हैं और मज़दूर वर्ग द्वारा इसका अंतरराष्ट्रीय और क्रांतिकारी हल निकालने की ज़रूरत है.
श्रीलंका समेत पूरा दक्षिण एशिया का इलाका, भूराजनैतिक तनावों के वैश्विक टकराव में खींचा जा रहा है क्योंकि अमेरिकी साम्राज्यवाद ने चीन के ख़िलाफ़ युद्ध की तैयारियां तेज़ कर दी हैं. जिस चीज़ की ज़रूरत है, वो है मज़दूर वर्ग का एक सशक्त समाजवादी और वैश्विक युद्ध विरोधी आंदोलन.
यही वो प्रोग्राम है जिस पर एसईपी आधारित है. हम मज़दूरों, नौजवानों और छात्रों से अपील करते हैं कि वो इस हमले की निंदा करते हुए और अपराधियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग करते हुए श्रीलंका के संबंधित प्रशासन को चिट्ठी लिखें.
इन चिट्ठियों को निम्नलिखित पते पर भेजें और ईमेल की एक कॉपी एसईपी के ईमेल-wswscmb@sltnet.lk पर भी भेजें.
- सीनियर प्रोफ़ेसर एन.डी. गुवाएदेना, वाइस चांसलर, यूनिवर्सिटी ऑफ़ मोरातुवा: ईमेल-vc@uom.lk or ndg@uom.lk
- अटॉर्नी जनरल, श्री संजय राजरत्नम: ईमेल-agdurgentmotions@gmail.com
हम मज़दूरों और नौजवानों से ये भी अपील करते हैं कि सात दिसम्बर को सायं तीन बजे पेरादेनिया यूनिवर्सिटी के राजनीतिक विभाग के हॉल नंबर 86 में और कोलंबो के न्यू टाउन हॉल में 10 दिसम्बर को शाम तीन बजे, एसईपी (अमेरिका) के नेशनल सेक्रेटरी कॉमरेड जोसेफ़ किशोर की सार्वजनिक सभा में शामिल हों.