22 जनवरी 2024 को अंग्रेजी में प्रकाशित 'Modi inaugurates a Hindu supremacist temple on the site of the razed Babri Masjid: One historic crime atop another' लेख का हिंदी अनुवाद है.
सोमवार, 22 जनवरी को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस विशाल हिंदू मंदिर के उद्घाटन के लिए एक पवित्र धार्मिक उत्सव की अगुवाई करेंगे, जिसे उनकी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार ने, हिंदू बर्चस्ववादी दक्षिणपंथ के दीर्घकालिक लक्ष्य को पूरा करते हुए, अयोध्या में ढहाई गई बाबरी मस्जिद की जगह बनवाया है.
16वीं शताब्दी के ऐतिहासिक मुस्लिम धार्मिक स्थल रही इस मस्जिद को, बीजेपी और फासीवादी आरएसएस के सहयोगियों और विश्व हिंदू परिषद (विहिप) द्वारा इकट्ठा किए गए हिंदू कट्टरपंथी कार्यकर्ताओं द्वारा छह दिसम्बर 1992 को ढहा दिया गया था. भारत के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को धता बताते हुए, बीजेपी के शीर्ष नेताओं और मस्जिद की सुरक्षा में लगे हज़ारों सुरक्षा कर्मियों की निगरानी में, पहले से ट्रेनिंग ले चुके हिंदू कार्यकर्ताओं ने कुल्हा़ड़ियों, हथौड़ों और रस्सियों-हुकों से महज कुछ घंटों में ही मस्जिद को ज़मींदोज़ कर डाला था.
मस्जिद गिराने के बाद हिंसा भड़क उठी, जो 1947 में उपमहाद्वीप के बंटवारे के समय हुई हिंसा, जिसमें मुस्लिम पाकिस्तान और हिंदू बहुल भारत बना, के बाद सबसे बड़ी साम्प्रदायिक हिंसा थी. 1993 में उत्तर और पश्चिमी भारत में जो दंगे और अन्य साम्प्रदायिक घटनाएं हुईं उसमें हजारों लोग, जिनमें अधिकांश ग़रीब मुस्लिम थे, मारे गए.
सोमवार को राम मंदिर के उद्घाटन को बीजेपी सरकार और उसके हिंदू दक्षिणपंथी सहयोगी राष्ट्रीय समारोह और उत्सव बनाना चाहते थे. केंद्र सरकार के कर्मचारियों को उस दिन दोपहर दो बजे तक छुट्टी दे दी गई और भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश समेत, जहां अयोध्या स्थित है, अधिकांश बीजेपी शासित राज्यों में स्कूलों को बंद करने का आदेश दिया गया और मांस और शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया.
इस तमाशे को कार्पोरेट मीडिया ने बेशर्मी से प्रचारित प्रसारित किया और ये उम्मीद की गई कि जब मोदी प्रतिमा का अनावरण करेंगे तो टीवी पर करोड़ों लोग इसे लाईव देखेंगे. राम लला की यह प्रतिमा 51 इंच यानी 1.3 मीटर लंबी है. यह हिंदू देवता भगवान राम के बाल्यकाल की मूर्ति है. इसका अनावरण मंदिर के गर्भ गृह में किया जाना है.
धार्मिक भावनाओं और पिछड़ेपन का दोहन करने के लिए हिंदू दक्षिणपंथ ने अपने बाबरी मस्जिद को अपने विरोध प्रदर्शन का केंद्र बना दिया था, जिसका मकसद भारतीय मुस्लिमों के ख़िलाफ़ नफ़रत को बढ़ाना और हिंदू बर्चस्व की दावेदारी प्रस्तुत करना था. हालांकि यह दावा अनर्गल है कि मस्जिद को मिथकीय भगवान राम के जन्मस्थल के ऊपर बनाया गया था.
सोमवार का उद्घाटन तमाशा सिर्फ धार्मिक जुमलेबाज़ी और सांप्रदायिक प्रतिक्रिया से कहीं अलग है.
यह एक ऐतिहासिक अपराध का जश्न है. ऐसा अपराध जो, पूर्व बाबरी मस्जिद की जगह भगवान राम का मंदिर निर्माण और भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा इसका आशीर्वाद दिया जाना, मौजूदा आक्रोश को और भड़काएगा.
ये अपराध, एक और भयानक अपराध की नींव है- भारत को हिंदू राष्ट्र या राज्य में बदलना, यानी ऐसा राष्ट्र जिसमें मुस्लिम, ईसाई और भारत को मूलतः 'हिंदू राष्ट्र' मानने से इनकार करने वाले दलितों समेत सभी अल्पसंख्यक, हिंदू बहुसंख्यकों की दया पर जीते हैं.
सोमवार के उद्घाटन के उद्देश्य आपस में बहुत जुड़े हुए हैं.
पहली बात तो ये कि, इस बसंत में जब भारत में आम चुनाव होंगे, यह मोदी और बीजेपी को अपने लगातार तीसरे पांच वर्षीय कार्यकाल के लिए अपना प्रचार अभियान शुरू करने का प्लेटफॉर्म बनेगा.
मोदी और उनकी आरएसएस गुरु मंडली भी राम मंदिर निर्माण अभियान को एक हिंदू राष्ट्रवादी बर्चस्ववादी धार्मिक स्थल बनाने की मंशा रखती है. इसे उस 'नए भारत' का प्रतीक बनना है, जिसका वे निर्माण कर रहे हैं और जिसका वजूद 'हिंदुओं' (वास्तविकता में धुर दक्षिणपंथी हिंदुओं) के लिए विधान है और जिसे वर्तमान भारत में राजनातिक सर्वोच्चता हासिल है.
रेंगने वाले कार्पोरेट मीडिया की मदद से बीजेपी और इसके सहयोगियों ने प्रतिक्रियावादी और एक दूसरे से गुंथी हुई अनगिनत कहानियों को खूब प्रचारित किया है.
बालक भगवान राम (राम लला) का मंदिर बनाकर वे दावा करते हैं कि यह एक सहस्राब्दी से अधिक समय बाद भारत के 'हिंदू राष्ट्र' के रूप में 'पुनर्जन्म' का प्रतीक है. और हिंदू दावों के विकृत इतिहासलेखन के अनुसार, यह मुस्लिम शासन के अधीन था और उसके बाद ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने कब्ज़ा किया.
मोदी और बीजेपी के नेतृत्व में भारत के एक हिंदू राष्ट्र के रूप में पुनर्जन्म को इसके पूंजीवादी 'उभार' और अमेरिका, जापान और यूरोपीय साम्राज्यवादी शक्तियों के दुलारे सहयोगी के रूप में अंतरराष्ट्रीय मामलों में लगातार बढ़ती मुखर भूमिका से, जुड़ा हुआ माना जाता है
भारत के आरबपतियों को राम मंदिर के उद्घाटन में सम्मान पूर्वक स्थान दिया जा रहा है. उनमें से कई को निमंत्रित किया गया है, जिसमें भारत के दो सबसे धनी अरबपति, और दोनों ही मोदी के कट्टर समर्थक, मुकेश अंबानी (18 जनवरी को फ़ोर्ब्स के रियल टाइम डेटा के अनुसार, उनकी कुल संपत्ति 105.4 अरब डॉलर है) और गौतम अडानी (74.9 अरब डॉलर) शामिल हैं.
मोदी द्वारा एक 'राष्ट्रीय' जश्न के रूप में राम मंदिर का उद्घाटन, भारत के 'सेक्युलर' राज्य के रूप में किसी भी धारणा को अस्वीकार करने के इरादे से बहुत स्पष्ट तौर पर किया गया है. संविधान में औपचारिक रूप से चाहे जो कुछ घोषित हो, मोदी सरकार भारत को, न्यायपालिका के सहयोग और समर्थन और अंबानी, अडानी और भारत के अन्य उद्योगपतियों की शह से, भले पूरी तरह से नहीं, लेकिन हकीक़त में एक हिंदू राज्य में तब्दील कर रहे हैं.
पूरी दुनिया की तरह, भारत के बड़े व्यवसाय, सामाजिक आक्रोश से भयभीत हैं और बाज़ार हिस्सेदारी और मुनाफ़े के जुनूनी संघर्ष में फंसे हुए हैं. वे धुर दक्षिणपंथ को, अपने हितों के कट्टर रक्षक और मज़दूर वर्ग और सामाजिक बराबरी के धुर विरोधी के तौर पर गले लगा रहे हैं.
राम मंदिर समारोह के माध्यम से बीजेपी नेत़ृत्व को उम्मीद है कि हिंदू दक्षिणपंथी ताक़तों में, जिनमें उसके काडर हैं, जान आ जाएगी, पार्टी को भारत पर अपनी विजयी छवि दिखाने का मौका मिलेगा और हिंदू सामप्रदायिकता को बढ़ाकर धार्मिक आधार पर मतदाताओं का ध्रुवीकरण किया जा सकेगा.
इसके साथ ही मोदी को एक सर्वसत्तावादी शख़्सियत बनाने की मंशा है, एक ऐसा हिंदू शासक जिसमें दैवीय गुण हैं. इसलिए सोमवार के प्राण प्रतिष्ठा समारोह (जिसका शब्दशः मतलब है 'प्रतिमा में प्राण डालना') से पहले मोदी ने अपनी 'साधना' की घोषणा कर परोक्ष रूप से बता दिया कि वो भगवान के आदेश का पालन कर रहे हैं. 12 जनवरी को उन्होंने ट्वीट किया, 'भगवान ने मुझे प्राण प्रतिष्ठा के दौरान भारत के सभी नागरिकों का प्रतिनिधित्व करने के लिए बनाया है. इसे ध्यान में रखते हुए, मैं आज से 11 दिनों का विशेष अनुष्ठान (शुद्धिकरण) शुरू करने जा रहा हूं.'
बीजेपी दशकों से भारतीय राजनीति में हाशिए की ताक़त रही है और 1980 के दशक तक बाबरी मस्जिद का जो विवाद अयोध्या और आसपास में केवल स्थानीय जिज्ञासा तक सीमित था, कुछ हिंदू कट्टरपंथियों और हिंदू महासभा फ़ासिस्टों द्वारा ज़िंदा बनाए रखा गया.
जिस तरह, जहां भी फ़ासीवादी ताक़तों का उभार हुआ, हिंदू दक्षिणपंथ का उदय भी बुर्जुआज़ी के दक्षिणपंथ की ओर तेज़ी से झुकाव के साथ जुड़ा हुआ है. दशकों तक ख़ामख्याली उदारवाद और 'वाम' पार्टियों ने कामकाज़ी लोगों के सामाजिक और लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमले में जो भूमिका निभाई, सेना और युद्ध में बड़े पैमाने पर संसाधन झोंके और समाज को पहले से और अधिक ग़ैर बराबरी की ओर धकेला, हिंदू दक्षिणपंथ का उभार उससे भी जुड़ा है.
बीजेपी के उभार को, कथित 'सेक्युलर' विपक्ष पार्टियों और हिंदू दक्षिणपंथ के साथ भारतीय राज्य की संस्थाओं से भी मदद मिली. 1947 में साम्प्रदायिक विभाजन के दौरान हुए जनसंहार से लेकर हिंदू दक्षिणपंथियों के साथ काम करने और तालमेल बिठाने के कांग्रेस के रिकॉर्ड की सूची इतनी लंबी है, जिसे यहां देना संभव नहीं. लेकिन ये नहीं भूलना चाहिए कि कांग्रेस सरकारों ने बाबरी मस्जिद को ढहाने में मिलिभगत की थी. इसमें 1986 का ज़िला अदालत द्वारा दिया गया वो फैसला भी शामिल है जिसमें मस्जिद के ताले को खोलने का आदेश दिया गया था ताकि हिंदू श्रद्धालु भगवान राम की पूजा कर सकें और छह दिसम्बर को मस्जिद ढहाने को रोकने के लिए अयोध्या में हज़ारों सुरक्षा कर्मियों को तैनात करने से नरसिम्हा राव सरकार का इनकार करना भी शामिल है.
इसके अलावा व्यापक सामप्रदायिक हिंसा के अन्य मामले भी हैं, जिनमें 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेसी नेताओं द्वारा सिख विरोधी दंगे भड़काना और गुजरात में 2002 में मुस्लिम विरोधी दंगे शामिल हैं. पुलिस और अदालतें उन लोगों को सज़ा देने में नाकाम रहीं जो बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के लिए ज़िम्मेदार थे, जबकि बीजेपी और शिव सेना ने अपने संलिप्तता की बात को गर्व से स्वीकार किया या उसके बाद हुई व्यापक हिंसा को उन्होंने खुले तौर पर भड़काया.
साल 2019 में भारत की सर्वोच्च अदालत ने बीजेपी सरकार को उसके सबसे अहम लक्ष्य को साकार करने और उस खाली जगह पर भगवान राम का मंदिर बनाने का आदेश देकर, बाबरी मस्जिद के ढहाए जाने के अपराधियों को ईनाम दिया. हिंदू गर्व और दावे के नाम पर अपराध को सही ठहराने की अपनी करतूत पर लीपापोती की प्रत्यक्ष कोशिश में सर्वोच्च अदालत ने कहा कि भारत के मुस्लिमों को इसकी भरपाई के लिए अलग जगह मस्जिद, एक अस्पताल और अन्य सामुदायिक परियोजनाएं बनाने देना चाहिए. ताज्जुब की बात नहीं है कि पांच साल बीत चुके हैं, लेकिन इसमें से अभी कुछ भी नहीं बन पाया है.
बहुत आगे पीछे करने के बाद भारत की मुख्य विपक्षी पार्टियों ने एक के बाद एक घोषणा की कि वे राम मंदिर उद्घाटन में हिस्सा नहीं लेंगी. लेकिन उन्होंने ये भी बहुत अफसोस के साथ किया. स्टालिनवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के प्रमुख सीताराम येचुरी समेत कई नेताओं ने कहा कि वे इसमें शामिल होना पसंद करते लेकिन मोदी और उनकी बीजेपी ने इस कार्यक्रम का 'राजनीतिकरण' कर दिया था, ऐसी हालत में वे नहीं जा
जैसे कि राम जन्मभूमि आंदोलन शुरू से ही राजनीतिक नहीं था! विपक्षी नेताओं के सभी बयानों में बाबरी मस्जिद के ढहाए जाने और उसके बाद हुई व्यापक साम्प्रदायिक हिंसा का ज़िक्र सिरे से ग़ायब था.
अपनी कायरता और हिंदू दक्षिणपंथ के साथ मिलीभगत के चलते कुछ विपक्षी पार्टियां और विपक्षी दलों की सरकारों ने राम मंदिर का उत्सव मनाने या अन्य हिंदू देवी देवताओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए सोमवार को अपने अपने कार्यक्रम आयोजित करने की घोषणाएं कीं. दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार राम मंदिर को लेकर कार्यक्रम आयोजित करेगी जबकि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हिंदू देवी काली की अराधना करेंगी.
साम्प्रदायिक प्रतिक्रिया और अराजकता का सोमवार का उत्सव और विपक्षी पार्टियों का बिछ जाना बताता है कि सामाजवादी अंतरराष्ट्रीयतावादी कार्यक्रम के आधार पर मज़दूर वर्ग को एक नया राजनीतिक रास्ता तलाशने का संकल्प लेना चाहिए.
स्टालिनवादियों द्वारा समर्थित कांग्रेस पार्टी की अगुवाई वाले विपक्षी दलों का चुनावी गठबंधन 'इंडिया' बुर्जुआज़ी के सेफ़्टी वॉल्व से अधिक नहीं है जो मोदी की तरह ही वैकल्पिक दक्षिणपंथी सरकार देने का वादा करता है, जो, मोदी सरकार के लड़खड़ाने की स्थिति में और निवेश समर्थक सुधार करेगी और चीन विरोधी भारत-अमेरिका की वैश्विक रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाएगी.
लोकतांत्रित अधिकारों की रक्षा करने और साम्प्रदायिक प्रतिक्रिया को हराने के लिए मज़दूर वर्ग को एक स्वतंत्र राजनीतिक ताक़त के रूप में गोलबंद होना होगा और सामाजिक आर्थिक जीवन के सामाजवादी पुनर्गठन और मज़दूरों की सत्ता के संघर्ष के लिए, बुर्जुआज़ी और इसके सभी राजनीतिक प्रतिनिधियों के ख़िलाफ़ ग्रामीण मेहनतकश आबादी को संगठित करना होगा.