14 फ़रवरी, 2024 को अंग्रेजी में प्रकाशित Modi government unleashes massive police-military crackdown against farmers’ protest लेख का हिंदी अनुवाद है.
भारत की नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली धुर दक्षिणपंथी सरकार ने किसानों के प्रदर्शन को कुचलने के लिए सरकारी सुरक्षा बलों की भारी तैनाती की है. इस प्रदर्शन में एक लाख से अधिक किसान और खेतिहर मज़दूर शामिल हैं. इस दमन की कार्रवाई में दसियों हज़ार पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों को तैनात किया गया है और इसके अलावा राज्यों की सीमाओं पर कई स्तर की भारी नाकेबंदी खड़ी की गई है और ड्रोन से आंसू गैस के गोले बरसाए जा रहे हैं.
किसान मोदी सरकार से बुनियादी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) लागू करने के अपने वायदे को पूरा करने की मांग कर रहे हैं.
2020-21 में एक साल तक चले किसानों के 'दिल्ली चलो' आंदोलन के समाप्त होने पर सरकार ने यह आश्वासन दिया था. 13 महीनों तक लाखों किसान दिल्ली की राष्ट्रीय राजधानी की सीमा पर धरना लगाकर बैठे रहे. उनकी मांग थी कि हाल ही में पास किए तीन कार्पोरेट क़ानूनों को रद्द किया जाए. आखिरकार सरकार को पीछे हटने को मजबूर होना पड़ा और आपत्तिजनक क़ानूनों को रद्द करने का वादा करना पड़ा लेकिन उसके बाद से ही सरकार इनसे मुकर गई.
बीजेपी की राज्य सरकार से साथ मिलकर काम करते हुए मोदी 2020-21 जैसे प्रदर्शन को रोकने के लिए कमर कसे हुए हैं, जोकि इसी बसंत में होने वाले भारत के आम चुनावों में तीसरा कार्यकाल पाने के उनके मंसूबे को कहीं पटरी से उतार न दे.
प्रदर्शन शुरू होने के एक दिन पहले, सोमवार को, बीजेपी की हरियाणा सरकार ने एक साथ कई दमनकारी कदम उठाए. हरियाणा दिल्ली और पंजाब के बीच पड़ने वाला राज्य है. पंजाब ही इस किसान प्रदर्शन का केंद्र है. हरियाणा सरकार ने पंजाब से सटे ज़िलों की सीमाओं पर अर्द्धसैनिक बलों की 114 कंपनियां और भारी पुलिस बल तैनात कर दिया. मुख्य सड़कों पर बैरिकेडिंग कर दी गई और राज्य अधिकांश हिस्सों में धारा 144 लागू कर दी गई, जो चार या इससे अधिक लोगों की जुटान को ग़ैरक़ानूनी करार देता है. सरकार ने 15 फ़रवरी तक पूरे राज्य में मोबाइल और इंटरनेट सेवाओं को बंद कर दिया.
लेकिन कल जैसे ही किसान पंजाब से हरियाणा की सीमा पर पहुंचे, उनका सामना बड़े बड़े बैरिकेडों से हुआ जिन्हें कंक्रीट के बड़े बड़े स्लैब से बनाया गया था. किसानों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए बड़े बड़े कंटेनर रखे गए थे और सड़क पर कंटीले तार बिछाए गए थे. प्रदर्शनकारियों के ट्रैक्टरों और अन्य वाहनों को पंक्चर करने के लिए सड़कों पर कीलें गाड़ दी गई थीं. इसी तरह के उपाय हरियाणा और दिल्ली बॉर्डर पर भी किए गए थे, जहां प्रदर्शनकारियों को राजधानी क्षेत्र में प्रवेश करने से रोकने के लिए 50,000 पुलिस बल तैनात किए गए थे. दिल्ली क्षेत्र में विपक्षी आम आदमी पार्टी का शासन है फिर भी दिल्ली पुलिस बीजेपी की केंद्र सरकार के मातहत आती है.
सुरक्षा बलों और किसानों में हिंसक झड़प भड़क उठी. प्रदर्शनकारी जैसे ही पंजाब और हरियाणा के बीच शंभू बॉर्डर पर पहुंचे हरियाणा राज्य पुलिस ने उन पर आंसू गैस के गोले दागे. मीडिया में ख़बरें आईं कि विशेष पुलिस आयुक्त रवींद्र यादव ने लाउड स्पीकर से पुलिस वालों को उकसाया, 'हमें आंसू गैस के गोले दागने हैं, लाठी इस्तेमाल करनी है और खुद को बचाना है.'
दिन ख़त्म होने के बाद किसान प्रतनिधियों ने पत्रकारों को बताया, 'हमारे 60 लोग घायल हुए हैं. सरकार आंसू गैस के गोले दाग कर और रबर की गोलियां चलाकर हमें उकसा रही है.' किसान नेता सरवन सिंह पंढेर ने मंगलवार को 'भारत के इतिहास का काला दिन बताया.' उन्होंने कहा, 'जिस तरह मोदी सरकार ने किसानों और किसान नेताओं पर हमला किया, वो शर्मनाक है.'
बीबीसी सरकार की मंशा थी कि अगर किसान राजधानी में प्रवेश करने में कामयाब हो जाते हैं तो उन्हें दिल्ली में एक स्टेडियम में सामूहिक रूप से बंद कर दिया जाए. हालांकि स्थानीय आप सरकार ने इसकी उपलब्धता से इनकार कर दिया और घोषणा की कि जिन मुद्दों पर किसान प्रदर्शन कर रहे हैं वो जायज मांगें हैं.
मंगलवार के प्रदर्शन से पहले ही पुलिस ने विभिन्न जगहों से सैकड़ों किसानों को गिरफ़्तार कर लिया था. मध्य प्रदेश पुलिस ने रविवार की रात दिल्ली जाते हुए किसानों को भोपाल रेलवे स्टेशन और अन्य जगहों से हिरासत में ले लिया. मध्य प्रदेश के किसान नेता अनिल यादव और अन्य नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया. इससे कुछ दिन पहले, पुलिस ने उत्तर प्रदेश के नोएडा और ग्रेटर नोएडा से संसद मार्च कर रहे किसानों पर बर्बरता से हमला किया था.
उधर, दिल्ली पुलिस ने एक महीने तक ट्रैक्टरों, ट्रकों और अन्य वाहनों के प्रदर्शन के प्रवेश पर निषेधाज्ञा लागू कर दी है. 'द हिंदू' में पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा की ओर से जारी किए एक आदेश को छापा है जिसमें ऐलान किया गया है कि, 'लोगों के इकट्ठा होने, रैलियों और लोगों से भरे ट्रैक्टर ट्रालियों का प्रवेश पूरी तरह वर्जित है.'
मोदी सरकार, किसानों के विरोध आंदोलन के हर कीमत पर ख़त्म करने के लिए अड़ी हुई है क्योंकि उसे डर है कि यह यह व्यापक विपक्ष का एक केंद्रीय मुद्दा बन जाएगा, वह भी ऐसे समय में जब फिर से सत्ता में आने का उसका चुनावी अभियान औपचारिक रूप से अभी शुरू ही होने वाला है.
भारतीय पूंजीपति वर्ग और कार्पोरेट मीडिया के सबसे ताक़तवर हिस्से द्वारा समर्थित और राजनीतिक सत्तातंत्र के अंदर ही अपने विरोधियों के रीढ़विहीन और दक्षिणपंथी चरित्रों का फायदा उठाकर मोदी सरकार ने अपने कथित जन समर्थन के बूते राजनीतिक अपराजेयता की छवि पेश करने की कोशिश की है.
भारत की राजधानी में किसानों का मौजूदा सामूहिक प्रदर्शन इस झूठी छवि के साथ ही इस धारणा को भी तार तार कर देगा कि मोदी के शासन में भारत तेज़ आर्थिक विकास कर रहा है और जल्द ही 'मध्यम आय' वाला देश बन जाएगा. सच्चाई यह है कि भारत के पूंजीवादी विकास दर की मलाई पर भारतीय समाज के कुछ चंद अधिकार संपन्न खिलाड़ियों ने एकाधिकार कर रखा है. आज भारत के सबसे अमीर एक प्रतिशत लोग देश की 40 प्रतिशत दौलत पर बैठे हुए हैं जबकि सबसे नीचे की 50 प्रतिशत आबादी के पास देश की सिर्फ 3 प्रतिशत संपत्ति है.
मोदी सरकार ने 2020-21 के किसान प्रदर्शन के दौरान बर्बर दमन का सहारा लिया था, हालांकि आखिररकार इसने तय किया कि किसानों के साथ खुला संघर्ष राजनीतिक रूप से बहुत जोख़िम भरा था क्योंकि पूरे भारत में मज़दूर वर्ग और ग्रामीण मेहनतकश आबादी में ही उसका एक बड़ा आधार है.
बीजेपी सरकार ने किसानों और किसान यूनियन के नेताओं के ख़िलाफ़ कई क़ानूनी मुकदमे दर्ज कराए जबकि उन एक्टिविस्टों को परेशान किया गया और गिरफ़्तारियां हुईं जिन्होंने किसान आंदोलन का समर्थन किया. धरना स्थल पर 200 से अधिक किसानों की मौत दिल का दौरा पड़ने, कोविड-19 और अन्य बीमारियों से हुई. आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों में वो चार किसान भी शामिल थे जिनकी मौत केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के बेटे की गाड़ी से कुचले जाने से हुई.
साल 2024 में मोदी और बीजेपी की राज्य सरकारें किसान प्रदर्शन को इसके शुरू होने से पहले ही कुचल देने को संकल्पित हैं. दूसरी तरफ़, जैसा इसने 2021 में किया था, यह झूठे वादे करके उन विभिन्न किसान संगठनों में फूट डालने की कोशिश कर रही है, जिनके तार विपक्षी पार्टियों से जुड़े हैं और आम तौर पर जिनका नेतृत्व खाते पीते किसानों के हाथों में है.
मंगलवार को देर शाम मोदी सरकार ने इस बात की पुष्टि की कि यह किसान यूनियनों से तीसरे दौर की बात के लिए सहमत हो गई है. यह वार्ता बुधवार को होनी है. हालांकि, विवाद के मुद्दे पर सरकार ने एमएसपी लागू करने की 'मुश्किलों' का बार बार हवाला देकर स्पष्ट किया है कि वो पीछे नहीं हटेगी.
संयुक्त किसान मोर्चा (ग़ैर-राजनीतिक) के वरिष्ठ नेता केवी बीजू ने कहा, 'हम वार्ता के ख़िलाफ़ नहीं हैं. हम नतीजे का इंतज़ार करेंगे और अगर यह असफल रहती है तो किसान बैरिकेड तोड़ देंगे और दिल्ली की ओर मार्च करना शुरू कर देंगे.' 2020-21 के किसान आंदोलन के दौरान बने संयुक्त किसान मोर्चा से अलग हुआ एसकेएम-ग़ैर राजनीतिक दो मुख्य संगठनों में से एक है जो मौजूदा आंदोलन चला रहे हैं. दूसरा है किसान मज़दूर मोर्चा या केएमएम.
कुछ सेंट्रल ट्रेड यूनियन फ़ेडरेशनों के साथ एक संयुक्त कार्यवाही के तहत प्रदर्शनकारी किसान संगठनों ने 16 फ़रवरी को ग्रामीण भारत बंद का आह्वान किया है, इस दौरान वे सब्जियों और अन्य फसलों की आपूर्ति और खरीद को बंद कर देंगे और सरकारी दफ़्तरों और सरकारी और निजी उद्योगों को बंद कराएंगे.
जैसी की उम्मीद होगी ही, विपक्षी पार्टियां अपने कमज़ोर चुनावी संभावनाओं को बचाने के लिए किसानों के विरोध प्रदर्शन का फ़ायदा उठाने की कोशिश करेंगे. मगंलवार को कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी ने दावा किया, 'अगर इंडिया गठबंधन की सरकार बनती है तो हम एमएसएपी की क़ानूनी गारंटी देंगे.'
हाल फिलहाल तक राष्ट्रीय सरकार में भारतीय पूंजीपति वर्ग की चहेती पार्टी कांग्रेस रही थी, अब उसकी अगुवाई में बना नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस (इंडिया) एक दक्षिणपंथी चुनावी गठबंधन है जिसमें दो दर्जन पार्टियां शामिल हैं, जिसमें स्टालिनवादी सीपीएम और सीपीआई भी है. एक तरफ़ 'धर्मनिरपेक्षतावाद' से अलग होने के लिए हिंदू बर्चस्ववादी बीजेपी की इंडिया गठबंधन निंदा करता है लेकिन वह खुद हिंदू दक्षिण पंथ के साथ साठगांठ करता है और बीजेपी समर्थकों की तरह ही 'निवेश सर्थक सुधारों' और चीन विरोधी भारत अमेरिकी सैन्य रणनीतिक गठबंधन को आगे ले जाता है.
महत्वपूर्ण है कि, किसान प्रवक्ता सरवन सिंह पंढेर ने कांग्रेस के इस दावे का खंडन किया कि वो एमएसपी के आंदोलन का समर्थन करती है. उन्होंने मंगलवार को कहा कि 'कांग्रेस पार्टी हमारा समर्थन नहीं करती.' इसमें कोई शक नहीं कि अधिकांश किसानों की भावनाओं को व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी जब सत्ता में इतने साल रही तो उसने कभी भी एमएसपी को लागू नहीं किया. उन्होंने कहा, 'हम कांग्रेस को बीजेपी जितना ही ज़िम्मेदार मानते हैं. इन क़ानूनों को कांग्रेस खुद लेकर आई थी. हम किसी के पक्ष में नहीं हैं, हम किसानों की आवाज़ उठाते हैं.'