16 फरवरी 2024, को अंग्रेजी में प्रकाशित Sri Lanka and Maldives: Battle grounds for geo-political rivalry in the Indian Ocean लेख का हिंदी अनुवाद.
हिंद महासागर में रणनीतिक पूर्व-पश्चिम के शिपिंग रास्ते में स्थित दो छोटे द्विपीय देश श्रीलंका और मालदीव, एक तरफ़ अमेरिका और भारत और दूसरी तरफ़ चीन के बीच तेजी से बढ़ते भूराजनैतिक तनावों के केंद्र बिंदु बन गए हैं.
बीते तीन फ़रवरी को भारतीय नेवी की पनडुब्बी आईएनएस करंज ने श्रीलंका के प्रमुख कोलंबो बंदरगाह पर दो दिन के दौरे पर लंगर डाला था. श्रीलंका की नेवी ने एक समारोह आयोजित कर इसका स्वागत किया. इस दौरान पनडुब्बी के कमांडिग अफ़सर कमांडर अरुणाभ ने रियर एडमिरल समन परेरा, जोकि श्रीलंकाई नेवी के पश्चिमी समुद्री क्षेत्र के कमांडर हैं, से मुलाक़ात भी की.
हाल ही में चीन के रिसर्च पोत झियांग यांग होंग 3 द्वारा श्रीलंकाई सरकार से दौरे की अनुमति मांगे जाने के बरक्स यह रवैया बिल्कुल उटल था. जनवरी में विक्रमसिंघे सरकार ने सभी रिसर्च पोतों पर 12 महीने तक के लिए प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी. यह प्रतिबंध स्पष्ट रूप से चीनी पोतों को रोकने के लिए लगाया गया था, जिसके दौरे का भारत ने सार्वजनिक रूप से विरोध किया था.
चीन का कहना है उसका पोत हाइड्रोग्राफ़िक सर्वे में शामिल है और अपनी पनडुब्बियों के लिए पानी के अंदर रास्ते की योजना बना रहा है. नई दिल्ली का दावा है कि यह आस पास की जगहों से मिसाइल या उपग्रह की टेस्ट उड़ानों पर निगरानी कर सकता है और साथ ही पड़ोसी देशों में स्थित सैन्य ठिकानों पर नज़र रख सकता है.
नई दिल्ली में ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन में मैरिटाइम पॉलिसी इनिशिएटिव के प्रमुख अभिजीत सिंह ने 29 जनवरी को वॉइस ऑफ़ अमेरिका को बताया था कि, “हमारा संदेह है कि हालांकि यह समुद्री रिसर्च पोत है लेकिन यह ऐसी सूचनाएं इकट्ठी कर रहा है जिसका इस्तेमाल चीन समंदर के अंदर अपने सैन्य अभियानों के लिए कर सकता है और पनडुब्बी-रोधी युद्ध क्षमताओं में सुधार कर सकता है, क्योंकि यह हिंद महासागर के पर्यावरण, समुद्र तल, तापमान प्रोफ़ाइल, भंवर, धाराओं का अध्ययन कर रहा है. इसका मतलब है कि आने वाले समय में हिंद महासागर में चीन सैन्य रूप से बढ़त हासिल कर लेगा.”
कुछ भी हो, चीन के जहाज को इस क्षेत्र में कहीं और ठिकाना पाने का बहुत इंतज़ार नहीं करना पड़ा. भारत के चेहरे पर एक ज़ोरदार तमाचा तब लगा जब मालदीव की सरकार ने चीनी पोत को अपने बंदरगाह पर रुकने की इजाज़त देने का एलान किया.
इस फैसले से पहले, हाल ही में चुने गए मालदीव के नए राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज़्ज़ू ने चेतावनी दी थी कि भारत को देश से अपने सभी सैनिकों को 15 मार्च तक हटा लेना होगा. पारम्परिक रूप से भारत मालदीव को अपना रणनीतिक पड़ोसी समझता रहा है और वहां छोटी सी संख्या में अपनी सैन्य मौजूदगी भी बनाए रखा था. चीन समर्थक माने जाने वाले मोइज़्ज़ू बीजिंग के सरकारी दौरे से अभी लौटे ही थे. उनकी घोषणा मालदीव के भारत से दूर जाने के रणनीतिक बदलाव को रेखांकित करती है.
कोलंबो में भारतीय पुनडुब्बी के रुकने का संकेत है कि किस तरह नई दिल्ली हिंद महासागर में अपने भू राजनीतिक दबदबे को बनाए रखने के लिए आक्रामक रूप से काम कर रही है.
पांच फ़रवरी को भारत के डेक्कन हेराल्ड ने बताया था कि “कोलंबो में भारतीय पनडुब्बी के लंगर डालने का मुख्य मकसद ये दिखाना है कि हिंद महासागर के इलाके में वो प्रमुख शक्ति है. यह चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की नेवी (पीएलए नेवी) को संदेश देना भी है, जिसने हाल के दिनों में भारत के पड़ोसी समुद्री क्षेत्रों में अपनी गतिविधियों को बढ़ा दिया है.”
द हिंदू ने यही बात कही और उसी दिन टिप्पणी की कि यह “हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की समुद्री गतिविधि पर विवाद के बीच भारत की राजनीतिक जीत है.”
आईएनएस करांज 2000 टन भारी पारम्परिक ईंधन संचालित पनडुब्बी है लेकिन ये कई कामों को अंजाम दे सकती है, जैसे सतह पर जहाजों के साथ युद्ध, पनडुब्बी रोधी लड़ाई, लंबी दूरी के हमले, विशेष अभियान और ख़ुफ़िया जानकारी जुटाना.
श्रीलंका द्वारा भारतीय नेवी की पनडुब्बियों और पोतों का तथाकथित शिष्टाचार स्वागत अब नियमित बात हो गई है. एक और पनडुब्बी आईएनएस वगीर ने पिछले साल जून में अंतरराष्ट्रीय योगा दिवस पर कोलंबो में लंगर डाला था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत, चीन के ख़िलाफ़ अमेरिकी सैन्य रणनीतिक आक्रामकता में एक अग्रिम चौकी वाले देश में बदल चुका है. पिछले अगस्त में मोदी सरकार ने घोषणा की थी कि भारत की सेना के हाई कमान के साथ सरकार काम कर रही है ताकि यह पता लगाया जा सके कि अगर वॉशिंगटन बीजिंग के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ता है तो भारतीय सेना उसकी क्या और कैसे मदद कर सकती है.
हालांकि नई दिल्ली दक्षिण एशिया के देशों पर अपना पारम्परिक प्रभाव मानती है, लेकिन उसका भू राजनीतिक मकसद सिर्फ इस इलाक़े तक सीमित नहीं है. 2015 के इंडियन मैरीटाइम डॉक्ट्रिन के संशोधित और पुनर्निर्मित संस्करण में, हिंद महासागर में नई दिल्ली की स्थिति को अपडेट किया गया है. हालांकि लाल सागर में हूती विद्रोहियों पर हमले के लिए बनाई गई अमेरिका की अगुवाई वाले टास्क फ़ोर्स में शमिल होने से दिल्ली ने मना कर दिया था लेकिन उसने वर्तमान समय में अदन की खाड़ी में दो अग्रिम मोर्चे वाले युद्ध पोत और अरब सागर के उत्तरी और पश्चिमी क्षेत्र में निगरानी हवाई जहाज के साथ कम से कम एक 10 युद्धपोत तैनात कर रखे हैं. इस क्षेत्र में यह सबसे बड़ी तैनाती है.
श्रीलंका में भारत के पोतों का दौरा कोलंबो को अपने आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य प्रभाव में लाने की कोशिशों का हिस्सा है.
भारत अब श्रीलंका का सबसे बड़ा निवेशक, आर्थिक साझीदार और नए पर्यटकों का स्रोत बन चुका है. दक्षिणी भारत से श्रीलंका तक एक पाइपलाइन बनाने, एक सौर ऊर्जा परियोजना, एक तरल प्राकृतिक गैस की आधारभूत संरचना और एक उच्च क्षमता वाले पॉवर ग्रिड लिंक को बनाने पर भारत सहमत हो गया है.
पूर्वी श्रीलंका में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बंदरगाह त्रिंकोमाली को एक औद्योगिक केंद्र और लॉजिस्टिक्स सुविधाओं वाले बंदरगाह के रूप में विकसित किया जाएगा और उत्तर में कांकेसंथुराई में भी इसी तरह का विकास किया जाएगा. भारत ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के 3 अरब डॉलर के बेलआउट पैकेज हासिल करने की श्रीलंका की कोशिशों को भी समर्थन किया है और इस द्वीपीय देश के अभूतपूर्व और मौजूदा आर्थिक संकट के दौरान उसने 4 अरब डॉलर का लंबी अवधि वाला कर्ज भी दिया है.
वस्तुओं और सेवाओं के लिए व्यापार की बाधाओं को दूर करने के लिए अगले मार्च तक श्रीलंका और भारत के बीच एक आर्थिक और तकनीकी सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर की भी योजना चल रही है.
परिवहन संपर्क को और बढ़ाने के लिए, भारत के नागपट्टिनम और जाफ़ना में कांकेसंथुराई के बीच एक यात्री फ़ेरी (नौका सेवा) के भी इसी महीने के अंत में शुरू होने की उम्मीद है, जो 40 साल के अंतराल के बाद दोनों देशों के बीच समुद्री लिंक को फिर से शुरू करेगी.
श्रीलंका में भारतीय पर्यटन पहले से ही पर्याप्त है. साफ़ तौर पर दिखता है कि पर्यटन आधारित अर्थव्यवस्था वाले मालदीव में भारतीय पर्यटकों की संख्या को कम करने की कोशिश है. भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारतीयों से अपील की है कि वो श्रीलंका में अपनी छुट्टियां मनाएं.
भारत श्रीलंका की विपक्षी पार्टियों से भी संपर्क कर रहा है, जैसे कि जनाथा विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) और इसके संसदीय मोर्चे नेशनल पीपुल्स पॉवर (एनपीपी) से, ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि अगले चुनाव में जो भी सत्ता में आए वो नई दिल्ली के भू राजनीतिक हितों के मातहत रहे. इस महीने की शुरुआत में मोदी सरकार ने जेवीपी/एनपीपी के एक प्रतिनिधिमंडल को पांच दिन के आधिकारिक दौरे पर आमंत्रित किया जिसकी अगुवाई इसके नेता अनुरा कुमारा दिसानायके करेंगे.
चीनी पोत के दौरे पर प्रतिबंध लगाने के कुछ दिन बाद ही श्रीलंकाई सरकार ने एलान किया कि वो यमन में हूती लड़ाकों के ख़िलाफ़ लाल सागर में वॉशिंगटन के ऑपरेशन प्रास्पेरिटी गॉर्डियन के समर्थन में अपने युद्धपोत भेजेगी.
चीन के प्रभाव को कम करने की भारत और अमेरिका की अगुवाई में हो रही कोशिशों और श्रीलंका को इस घेरे में लाने की कोशिशों के जवाब में बीजिंग ने मालदीव के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को मजबूत करने की पहल की. जब राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज़्ज़ू चीन के दौरे पर थे, उनका शानदार स्वागत किया गया.
पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के कार्यकाल में मालदीव में माजुनुधू पर एक महासगर वेधशाला (ओशियन ऑब्ज़र्वेटरी) के निर्माण पर समझौता हुआ था, जिसे चीन के स्टेट ओशियानिक एडमिनिस्ट्रेशन और मलदीव के पर्यावरण एवं ऊर्जा मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से संचालित किया जाएगा.
हालांकि जब सितम्बर 2018 यामीन हार गए तो इस प्रोजेक्ट को दरकिनार कर दिया गया. अब भारत को चिंता है कि मोइज़्ज़ु के कार्यकाल में इस समझौते को फिर से अमल में लाया जाएगा. इसके बावजूद कि बीजिंग कहता रहा है कि इस वेधशाला का प्राथमिक लक्ष्य महासागर का निरीक्षण और रिसर्च होगा, लेकिन नई दिल्ली का दावा है कि यह हिंद महासागर के इस महत्वपूर्ण इलाक़े में वाणिज्यिक शिपिंग और रणनीतिक उद्देश्यों के लिए चीन को बढ़त प्रदान करेगा.
जैसे जैसे भारतीय सैनिकों की मालदीव से वापसी की तारीख़ क़रीब आ रही है, तनाव बढ़ रहा है. 25 जनवरी को भारतीय नेवी प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार ने सीएनएन-न्यूज़ 18 से कहा कि भारत सरकार ने माली की अपील के जवाब में अभी तक अपने रक्षा कर्मियों को मालदीव छोड़ने का आदेश नहीं दिया है. उन्होंने कहा, 'जो भी फैसला हो, हम निर्देश का इंतज़ार कर रहे हैं.'
भारत और अमेरिका, माली में चीनी प्रभाव को हर क़ीमत पर कम करना चाहते हैं. जब श्रीलंका, राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे सरकार के कार्यकाल में चीन के क़रीब गया, तो 2015 के राष्ट्रपति चुनाव में उन्हें हटाने के वॉशिंगटन के ऑपरेशन के दौरान, नई दिल्ली ने सिरिसेना-विक्रमसिंघे प्रशासन को सत्ता में लाने का समर्थन किया था. नई दिल्ली और वॉशिंगटन को अगर ज़रूरी लगा तो वे उसी तरह का अभियान मोइज़्ज़ू सरकार के ख़िलाफ़ भी चला सकते हैं.