यह हिंदी अनुवाद अंग्रेजी के मूल लेख का है, Delhi Chief Minister jailed on politically manipulated charges as India’s election campaign kicks into high gear जो मूलतः 11 अप्रैल 2024 को प्रकाशित हुआ था I
दिल्ली के मुख्यमंत्री और विपक्षी चुनावी गठबंधन इंडिया के प्रमुख नेता अरविंद केजरीवाल को, राजनीतिक रूप से तीन तिकड़म कर लगाए गए भ्रष्टाचार के मामले में 21 मार्च से ही जेल में बंद कर दिया गया है.
मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने, अरविंद केजरीवाल के वकील की दलीलों को सिरे से ख़ारिज़ कर दिया. वो वित्त मंत्रालय के प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), जोकि नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाले भारतीय जनता पार्टी सरकार के नियंत्रण में है, उसके द्वारा केजरीवाल की गिरफ़्तारी का विरोध कर रहे थे. जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने आदेश दिया कि केजरीवाल जोकि आम आदमी पार्टी के संयोजक हैं और 2015 से ही भारत की राजधानी में चल रही सरकार की अगुवाई कर रहे हैं, वो कम से कम 15 अप्रैल तक तिहाड़ जेल में रहेंगे.
केजरीवाल के वकील ने दलील दी थी कि भारत के राष्ट्रीय चुनावों के बीच उनकी गिरफ़्तारी राजनीतिक रूप से प्रेरित थी जिसका दोहरा मकसद था आम आदमी पार्टी और इसके नेताओं को बदनाम किया करना और इसके चुनाव प्रचार में रोड़े अटकाना. यह आम चुनाव 19 अप्रैल से एक जून के बीच सात चरणों में होना है. उन्होंने ये भी तर्क दिया कि दिल्ली में शराब बिक्री का निजीकरण करने में कथित रिश्वत लेने की योजना में केजरीवाल के शामिल होने का सबूत झूठा है और मुख्य रूप से “अप्रूवरों“ के बयान पर आधारित है, यानी, वे लोग जो सरकारी गवाह बन गए.
ईडी का आरोप है कि आप सरकार ने ”दक्षिण भारतीय शराब लॉबी” के साथ मिलकर शराब की क़ीमतें बढ़ाने की साज़िश रची और इस अतिरिक्त मुनाफ़े का कम से कम 100 करोड़ रुपये आम आदामी पार्टी को रिश्वत के रूप में वापस किया गया और केजरीवाल इस स्कीम के ”किंगपिन” थे.
दिल्ली के मुख्यमंत्री के अलावा, इस कथित शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आम आदमी पार्टी के दो अन्य वरिष्ठ नेता भी जेल में हैं. मनीष सिसोदिया फ़रवरी 2023 से ही जेल में बंद हैं, वो अपनी गिरफ़्तारी तक केजरीवाल के दाएं हाथ हुआ करते थे. दिल्ली कैबिनेट के पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन मई 2022 से ही जेल में हैं. इस महीने की शुरुआत में ही भारत के सुप्रीम कोर्ट ने आप सांसद और राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय सिंह को छह महीने जेल में रहने के बाद ज़मानत पर रिहा कर दिया. ज़मानत की सुनवाई के दौरान सर्वोच्च अदालत ने इस मामले में जो तौर तरीक़ा अपनाया गया उसके लिए ईडी को फटकार लगाई, जिसमें आप को कथित तौर पर मिले अरबों रुपयों में से किसी ज़ब्ती या यहां तक कि एक रुपये का भी पता लगाने में विफलता भी शामिल है.
क़रीब एक दशक पुरानी मोदी सरकार, सीबीआई, अन्य क़ानून प्रवर्तन एजेंसियों को इस्तेमाल करने और अपने राजनीतिक विरोधियों के ख़िलाफ़ तिकड़मी और फ़र्ज़ी आरोप जड़ने के लिए कुख्यात है. और 2024 का चुनाव क़रीब आते ही, अपने बुर्जुआ विरोधियों पर हमले करने, सामाजिक विरोधों का दमन और सांप्रदायिकता भड़काने के लिए अपने हाथ में मौजूद सभी संस्थाओं का हर तरह से इस्तेमाल करने में मोदी सरकार और भी बेहयाई पर उतर गई है.
ये इसलिए भी है क्योंकि मोदी और बीजेपी- भारत के “विश्व विजयी“ आर्थिक विकास दर और “वैश्विक ताक़त“ के रूप में भारत के उभार की अपनी तमाम लफ्फाजियों के बावजूद- अच्छी तरह जानते हैं कि बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी, भयंकर भुखमरी और भारत की आम जनता और अपने पिछलग्गू उच्च मध्य वर्ग के साथ देश पर राज करने वाले चंद मुठ्ठी भर अरबपति और ख़रबपति पूंजीपतियों के बीच बढ़ती अभूतपूर्व खाई से भयंकर गुस्सा उबल रहा है.
भाजपा में अब यह मांग तेज हो रही है कि केंद्र सरकार को केजरीवाल और आप के अन्य वरिष्ठ नेताओं पर लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों के बहाने का इस्तेमाल कर, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को राष्ट्रपति शासन के मातहत ला देना चाहिए और आम आदमी पार्टी को बर्ख़ास्त कर देना चाहिए और दिल्ली के प्रशासन का पूर्ण नियंत्रण बीजेपी की केंद्र सरकार को सौंप देना चाहिए.
बुधवार को दिल्ली के श्रम मंत्री राज कुमार आनंद ने ये कहते हुए इस्तीफ़ा दे दिया कि वो एक ऐसी पार्टी का हिस्सा नहीं बने रहना चाहते जो “भ्रष्टाचार में शामिल है.“ आम आदमी पार्टी के एक प्रतिनिधि ने इसका जवाब देते हुए आरोप लगाया कि यह एक और सबूत है कि बीजेपी गिरफ़्तारियों और धमकियों के माध्यम से पार्टी को तोड़ने का ठोस अभियान चला रही थी. आम आदमी पार्टी के नेता सौरभ भारद्वाज ने कहा, 'हर कोई जानता है कि उनके (आनंद) घर ईडी ने छापा डाला था. वो दबाव में थे और डर गए. उन्हें एक पटकथा दी गई और उसे पढ़ने के अलावा उनके पास कोई और चारा नहीं था.'
आम आदमी पार्टी दक्षिणपंथी और पूंजीवादी पार्टी है जिसे “भ्रष्टाचार से लड़ने“ के नाम पर 2012 में बनाया गया था. दिल्ली और उत्तर पश्चिमी राज्य पंजाब, जहां वो 2022 में सत्ता में आई, के अलावा उसका चुनावी समर्थन बहुत मामूली है. फिर भी भारत की राजधानी और सबसे बड़ी शहरी आबादी पर उसका नियंत्रण, उसे भारतीय राष्ट्रीय राजनीति में अहम स्थान दिलाता है और राष्ट्रीय मीडिया में अच्छा ख़ासा ध्यान आकर्षित कराता है. आम आदमी पार्टी पर बीजेपी का क़ानूनी हमला स्पष्ट रूप से, सिर्फ़ पंजाब और दिल्ली में बीजेपी की चुनावी क़िस्मत को बढ़ाने के लिए ही नहीं है, बल्कि पूरे इंडिया (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस) गठबंधन के चुनावी विपक्ष को बदनाम करना भी है.
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र ने अपने तीसरे कार्यकाल के लिए चुनाव प्रचार की शुरुआत करते हुए बड़े बेतुके ढंग से एलान किया कि, “मोदी का मंत्र भ्रष्टाचार को ख़त्म करना है जबकि विपक्षी पार्टियों का मूल मंत्र भ्रष्चाचारियों को बचाना है.“
सच्चाई ये है कि भ्रष्टाचार भारतीय पूंजीवादी राजनीति की लाइलाज बीमारी है और बीजेपी ख़ासतौर पर भ्रष्टाचार का बदबूदार परनाला है. मोदी खुद, भारत और एशिया के सबसे बड़े दो अमीर अरबपतियों मुकेश अंबानी और गौतम अडानी के साथ क्रोनी कैपिटलिस्ट (याराना पूंजीपति) सौदों में फंसे हुए हैं.
केजरीवाल की गिरफ़्तारी की निंदा करने के लिए 31 मार्च को इंडिया गठबंधन ने दिल्ली में एक बड़ी “लोकतंत्र बचाओ“ रैली की थी. इसे इंडिया गठबंधन के कई शीर्ष नेताओं ने संबोधित किया, जिसमें कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी, समाजवादी पार्टी के नेता और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, पूर्व में बीजेपी की सहयोगी रही धुर दक्षिणपंथी पार्टी शिवसेना (यूबीटी) के उद्धव ठाकरे और स्टालिनवादी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी) के महासचिव सीताराम येचुरी शामिल थे.
राहुल गांधी ने संबोधित करते हुए कहा, “विपक्षी नेताओं को धमकी दी जा रही है और गिरफ़्तार किया जा रहा है. यह मैच फ़िक्सिंग है. यह कोई सामान्य चुनाव नहीं है...यह चुनाव देश को बचाने और हमारे संविधान की रक्षा करने के लिए है.“
बेशक राहुल गांधी- जिनकी पार्टी ने आज़ादी के बाद से साल 2014 के बीच के दो तिहाई समय तक भारत में शासन किया है- मोदी और हिंदू बर्चस्ववादी बीजेपी से नफ़रत प्रदर्शित करने के अलावा, इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं दे सके कि भारत का लोकतंत्र क्यों ध्वस्त हो रहा है.
राजनीति से प्रेरित “भ्रष्टाचार“ तमाम मामलों की पूरी कड़ी के बाद केजरीवाल की गिरफ़्तारी हुई
टैक्स अनियमितताओं के दावे को लेकर टैक्स डिपार्टमेंट के आदेश पर फ़रवरी में कांग्रेस पार्टी का बैंक खाता फ़्रीज़ कर दिया गया. 21 मार्च को एक प्रेस कांफ़्रेंस में राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस पार्टी के ख़िलाफ़ यह एक आपराधिक कार्रवाई है जिसे प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने खुद अंजाम दिया है. इसके बाद टैक्स डिपार्टमेंट ने कांग्रेस पार्टी को एक के बाद एक नोटिस जारी कर टैक्स अदायगी और ज़ुर्माने के कुल 36 अरब रुपये देने के आदेश दे दिए. कांग्रेस ने बीजेपी सरकार पर ”टैक्स टेररिज़्म” का आरोप लगाते हुए चुनाव प्रचार के बीच पार्टी को ”वित्तीय रूप से पंगु” करने की कोशिश का आरोप मढ़ा.
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी) या सीपीएम और पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी पार्टियों पर भी टैक्स डिपार्मटमेंट ने भारी भरकम ज़ुर्माना लगाया.
अवैध तरीके से ज़मीन हथियाने के आरोप पर फ़रवरी में ईडी द्वारा गिरफ़्तार किए जाने के बाद, झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के नेता और इंडिया गठबंधन के सहयोगी हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया था. सोरेन और विपक्षी दलों का दावा है कि यह बीजेपी सरकार द्वारा तीन तिकड़कम का एक और फ़र्ज़ी मामला है.
पिछले महीने विपक्षी नेताओं को भ्रष्टाचार के आरोप में निशाना बनाए जाने के ढेरों मामले आने के बीच इंडियन एक्सप्रेस ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें बीजेपी सरकार के ”भ्रष्टाचार विरोधी” अभियान के राजनीति से प्रेरित और चालाकीपूर्ण चरित्र को उजागर किया गया था. इसमें दिखाया गया कि भ्रष्टाचार के मामलों में जांच का सामना कर रहे 25 विपक्षी नेताओं में, 23 को बीजेपी में शामिल होने के बाद राहत मिल गई. ये नेता कांग्रेस पार्टी समेत तमाम विपक्षी दलों से थे.
सरकार वामपंथी विपक्षी मीडिया आवाज़ों को भी निशाना बना रही है. पिछले अक्टूबर से ही न्यूज़ क्लिक वेबसाइट के संस्थापक और संपादक प्रबीर पुरकायस्थ को बिना किसी आरोप के भारत के क्रूर आतंकवाद विरोधी क़ानूनों के तहत जेल के अंदर बंद करके रखा गया है. रिपोर्टों के अनुसार, दिल्ली पुलिस ने प्रबीर पुरकायस्थ के ख़िलाफ़ मार्च के अंत में 8000 पन्नों की फ़र्स्ट इनफ़ॉर्मेशन रिपोर्ट दायर की जिसमें उन पर चीन का फ़ंड लेने और चीनी प्रोपेगैंडा प्रकाशित करने के आरोप लगाए गए.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय और जर्मनी के विदेश विभाग ने केजरीवाल की गिरफ़्तारी पर एक नपा तुला बयान जारी किया और चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री के मामले में “निष्पक्ष, पारदर्शी और समयबद्ध क़ानूनी प्रक्रिया“ अपनाई जाए. साम्राज्यवादी शक्तियों ने हर बार की तरह इस बार भी दिखाया है कि जबतक बीजेपी सरकार, चीन के ख़िलाफ अमेरिकी अगुवाई वाले अंधाधुन सैन्य रणनीतिक आक्रामकता में भारत को पूरी तरह नत्थी करना जारी रखती है, मोदी द्वारा मौलिक लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला और हिंदू साम्प्रदायिकता को हवा दिए जाने को वे नज़रअंदाज़ करते रहेंगे लेकिन वो दूसरे विकल्प के लिए भी तैयार बैठे हैं.
मोदी सरकार ने, अमेरिका और जर्मनी के उनके 'पीड़ाहारी' चरित्र के बावजूद उनके बयानों पर नाराज़गी ज़ाहिर की. उसने अमेरिका और जर्मनी के दूतावास के अधिकारियों को तलब किया और “भारत के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप“ पर विरोध जताया.
लंदन के 'फ़ाइनेंशियल टाइम्स' ने अपनी ओर से पिछले हफ़्ते एक संपादकीय प्रकाशित किया जिसका शीर्षक थाः ”'मदर ऑफ़ डेमोक्रेसी' की हालत अच्छी नहीं है', और इसमें चिंता ज़ाहिर की गई कि 'जैसे जैसे चुनाव क़रीब आ रहे हैं, विपक्षी दलों और नेताओं की आवाज़ दबाने के लिए सरकारी जांच एजेंसियों का इस्तेमाल तेज़ी से बढ़ रहा है.' भारत के पूंजीपति वर्ग के एक छोटे से धड़े की तरह 'फ़ाइनेंशियल टाइम्स' चिंतित है कि मोदी की अभूतपूर्व तानाशाही वाला शासन एक बड़े विरोध प्रदर्शन को जन्म दे सकता है, जोकि 'निवेश के लिए भारत की एक आकर्षक छवि' को ख़तरा पैदा कर सकता है.
जिस निर्ममता से मोदी सरकार अपने बुर्जुआ विरोधियों पर हमले कर रही है, वो मज़दूर वर्ग के लिए भी एक चेतावनी है कि वो कैसे ज़मीनी स्तर पर इस चुनौती का मुकाबला करेगा.
फ़रवरी और मार्च में जब किसानों ने दिल्ली तक मार्च करने की कोशिश की, उनका सामना बड़े पैमाने पर तैनात किए गए सरकारी सशस्त्र बलों से हुआ. दसियों हज़ार पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों को तैनात किया गया था; कंक्रीट की बड़ी बड़ी चट्टानों और कंटीले तारों वाले बहुस्तरीय बैरिकेड लगाए गए थे; इंटरनेट और सोशल मीडिया को बंद कर दिया गया था और प्रदर्शनकारी किसानों पर ड्रोन से आंसू गैस के गोले गिराकर बर्बर तरीके से हमला किया गया.
अपने लोकतांत्रिक और सामाजिक अधिकारों की रक्षा करने के लिए और मोदी और भारतीय पूंजीपति वर्ग को हराने के लिए, जोकि उनकी धुर दक्षिणपंथी सरकार के पीछे सहारा बना खड़ा है, भारत के मज़दूरों को अपनी वर्गीय ताक़त को संगठित करना होगा, अपने संघर्षों को एकजुट करना होगा और भारतीय पूंजीवाद और उसके सभी राजनीतिक प्रतिनिधियों के विरोध में ग्रामीण मेहनतकशों को अपने पीछे लामबंद करना होगा.
इसका मतलब है स्टालिनवादी सीपीएम और उसके वाम मोर्चे को मज़दूरों को, एक बार फिर से कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन के बैनर तले लामबंद, शासक वर्ग में भाजपा के विरोधियों के अधीन करने के प्रयासों से इनकार किया जाए. भारत के 'लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष' चरित्र की रक्षा के नाम पर यह विपक्षी गठबंधन मोदी के नेतृत्व वाले शासन जैसी ही विनाशकारी सामाजिक-आर्थिक और विदेशी नीतियों यानी ”निवेश समर्थक सुधार” और ”चीन विरोधी भारत-अमेरिकी वैश्विक साझेदारी” की नीतियों को ही जारी रखने का इरादा रखता है, जबकि दूसरी तरफ़ वो हिंदू दक्षिणपंथ को साधने और उसके साथ साठगांठ बनाए रखना चाहता है.