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तमिलनाडु में महिला फ़ैक्ट्री वर्कर की दर्दनाक मौत ने पूरे भारत में असुरक्षित काम के हालात से एक बार फिर पर्दा उठाया

यह आलेख 26 अगस्त 2024को अंग्रेजी में छपे लेख Horrific death of female factory worker in Tamil Nadu highlights unsafe working conditions across India का हिंदी अनुवाद है।

तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई के बाहरी इलाके तिरुवल्लूर में स्थित राज्य सरकार द्वारा संचालित कक्कलुर आविन दूध फैक्ट्री में ठेका मज़दूरी करने वाली एक युवती की 20 अगस्त को कन्वेयर बेल्ट में बाल और दुपट्टा फंस जाने से दर्दनाक मौत हो गई। उमारानी की मौत ये बताने के लिए काफ़ी है कि मज़दूर किस तरह पूरे भारत में सिर्फ़ निजी ही नहीं बल्कि सरकार संचालित प्रतिष्ठानों में भी बहुत ही असुरक्षित और घातक स्थिति में काम करने को मज़बूर हैं।

तीन बच्चों की मां 30 वर्षीय उमारानी तमिलनाडु के सलेम ज़िले के बमियमपट्टी की रहने वाली थीं और लगभग छह महीने पहले इस फैक्ट्री में काम करना शुरू किया था। उमारानी के पति कार्थी, चेन्नई के एक अन्य औद्योगिक उपनगर इरुंगाट्टुकोट्टई में एक निजी फैक्ट्री में काम करते हैं।

उमारानी (फ़ोटोः फ़ेसबुक/ परिवार द्वारा उपलब्ध कराया गया) [Photo: Facebook/provided by family]

उमारानी दूध के पैकेट को कन्वेयर बेल्ट से उठा रही थीं और उन्हें ट्रे में डाल रही थीं। तभी उनका दुपट्टा और फिर उनके बाल दूध की वेंडिंग मोटर के कन्वेयर बेल्ट में फंस गए। उमारानी का सिर मोटर में कुचल गया, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई। यह हादसा टल सकता था अगर उन्होंने हेडबैंड पहना होता, लेकिन फैक्ट्री में इसके पहने जाने की अनिवार्यता पर ध्यान नहीं दिया जाता था और न ही कोई निरीक्षण किया जाता था। इसके अलावा कोई स्विच पास में नहीं था जिससे धीमी गति से चल रहे कन्वेयर बेल्ट को रोका जा सके। हालांकि चीख सुनकर साथी वर्कर स्विच की ओर भागे लेकिन रास्ते में पड़े हुए टब के कारण वो जल्द नहीं पहुंच पाए। 

घटना के बाद फैक्ट्री पहुंची पुलिस ने शव को बरामद कर तिरुवल्लूर ज़िला सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। घटना के वक़्त वहां लगभग 15 ठेका मजदूर काम कर रहे थे, जिनमें से 10 ऑफिस में प्रबंधन सम्बन्धी कार्यों में लगे थे। घटना के बाद से कक्कलुर डेयरी के कर्मचारियों और मज़दूरों में डर और सदमे का माहौल बना हुआ है। फिलहाल फैक्ट्री से दूध की आपूर्ति अस्थायी रूप से बंद कर दी गई है। यहां तक कि इस दुखद घटना के दो दिन बाद भी, कुछ ठेका वर्कर काम पर नहीं आए और आफ़िस वर्करों से उनकी जगह काम कराया गया।

आविन तमिलनाडु सहकारी दुग्ध उत्पादक महासंघ लिमिटेड (टीसीएमपीएफ़), दुग्ध और डेयरी विकास मंत्रालय और तमिलनाडु सरकार के स्वामित्व वाली एक सहकारी संस्था है। “आविन” ट्रेडमार्क के तहत काम कर रहे इस प्रतिष्ठान द्वारा दूध और दुग्ध उत्पादों जैसे पाउडर दूध, घी और आइसक्रीम, प्रसंस्करण, पैकेजिंग और उपभोक्ता बिक्री शामिल है। 

इस औद्योगिक दुर्घटना के अगले दिन स्थानीय तिरुवल्लूर पुलिस ने कक्कलुर डेयरी इकाई के सुपरवाइज़र वरुण कुमार को कार्यस्थल पर लापरवाही बरतने के कारण गिरफ्तार कर लिया और उन पर 'लापरवाही' के कारण मौत का कारण बनने का मामला दर्ज किया। लेकिन मिल्क फैक्ट्री में ठेका वर्करों की आपूर्ति करने वाले ठेकेदार जेयासीलन से फैक्ट्री में मज़दूरों की असुरक्षित काम की परिस्थितियों को लेकर किसी तरह की कोई पूछताछ नहीं की गई है। जेयासीलन तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) के स्थानीय निकाय में पार्षद हैं। 

ठेका वर्करों की ये हालत इसलिए बनी हुई है क्योंकि ठेकादार को, उमारानी जैसे मज़दूरों की ज़िंदगी की क़ीमत पर आविन के लाभ का एक बड़ा हिस्सा मिलता है। 

तमिलनाडु मिल्क डीलर्स वेलफ़ेयर एसोसिएशन के एस.ए. पन्नुसामी ने कहा कि, उमारानी के परिजनों को 'मुआवज़े' के रूप में कम से कम 10 लाख रुपये तुरंत जारी किए जाने चाहिए। लेकिन राज्य सरकार की तरफ से इस मामूली सी रकम को लेकर भी अभी तक कोई बयान नहीं आया है कि वो परिवार वालों को 'मुआवज़ा' दे रहे हैं या नहीं।

कक्कलुर आविन दूध फैक्ट्री के मज़दूरों ने वर्ल्ड सोशलिस्ट वेब साइट के रिपोर्टरों को काम के असुरक्षित हालात के बारे में बताया जिसकी वजह से उमारानी की दर्दनाक मौत हुई। उनके अनुसार, 'फैक्ट्री में तीन शिफ्ट में काम होता है, जिनमें प्रत्येक शिफ्ट में लगभग पंद्रह ठेका मजदूर काम करते हैं। उन्हें बहुत मामूली मज़दूरी यानी 10,000 रुपये से 15000 रुपये हर महीने तनख्वाह मिलती है।' 

ताज्जुब की बात है कि घटना के बाद मीडिया के सवालों पर डीएमके राज्य सरकार के दूध और डेयरी विकास मंत्री मनो थंगराज ने मौत का दोष सीधे महिला मज़दूर उमारानी पर ही मढ़ दिया। जब एक रिपोर्टर ने पूछा कि, 'क्या यह कर्मचारी की गलती थी या मशीन में कोई समस्या थी?' उन्होंने जवाब दिया कि- ”यह निश्चित रूप से मज़दूर की लापरवाही है। लेकिन ये लापरवाही है या दुर्घटना है, स्पष्ट नहीं है।” साथ ही सरकार की आपराधिक भूमिका पर लीपापोती करते हुए उन्होंने कहा, ”ऐसा आम तौर पर नहीं होता है और ना ही पहले हुआ है। .....ऐसा लग रहा है कि यह उसकी लापरवाही के कारण हुआ।”

यह पहली बार नहीं है जब पीड़ितों को उनकी खुद की मौतों के लिए दोषी ठहराया गया है। उदाहरण के लिए इससे पहले 31 अक्टूबर, 2010 को एक महिला कर्मचारी जिसकी उम्र सिर्फ 22 साल थी, को दक्षिण भारत के ही एक नोकिया फैक्ट्री की असेंबली लाइन पर उस वक़्त मरने के लिए छोड़ दिया गया था जब उसका सिर और गर्दन एक रोबोटिक लोडिंग मशीन में फंस कर कुचल गया था। उस वक़्त डीएमके से संबद्ध ट्रेड यूनियन, लेबर प्रोग्रेसिव फ्रंट (एलपीएफ़) के नेताओं ने 'लापरवाह' कहकर पीड़िता को ही दोषी ठहराया था। उस समय डीएमके पार्टी तत्कालीन कांग्रेस-नेतृत्व वाली यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस (यूपीए) केंद्र सरकार का भागीदार थी। उन्होंने कहा कि, ”उसकी मौत इसलिए हुई क्योंकि वह कर्मचारी काम के दौरान अपने सहकर्मी के साथ बातें कर रही थी।”

डीएमके मंत्री मीडिया से बात करते हुए अपना पल्ला छुड़ाते दिखे। उन्होंने कहा, ”हर चीज के लिए एसओपी (स्टैंडर्ड ऑपरेशन प्रोसीजर) लागू है। मशीनें 25 साल से चल रही हैं, और हमने कभी ऐसा हादसा नहीं देखा है। हम जांच कर रहे हैं कि यह दुर्घटना कैसे हुई।” इस दौरान वो इस बात पर चुप रहे कि फैक्ट्री में मज़दूरों के लिए बाल कवर कैप या यूनिफॉर्म अनिवार्य क्यों नहीं हैं। अतीत में हुई ऐसी घटनाओं की जांच का जो पैटर्न दिखता है वो यही है कि ऐसे मामलों में जाँच को जल्द से जल्द बंद कर दिया जायेगा या फिर मज़दूर पर ही पूरी घटना का दोष डाल दिया जायेगा, जैसा कि मंत्री ने पहले ही कर दिया है।

अभी तक मंत्री के बयान साफतौर पर मुनाफ़े की प्यासी दूध कंपनी को बचाने वाले ही रहे हैं। द हिन्दू से बात करते हुए दूध और डेयरी उत्पाद मंत्री थंगराज ने 27 नवंबर 2023 को कहा था कि, ”दूध उत्पादों की बिक्री से होने वाली आय डेढ़ करोड़ रुपये से बढ़कर प्रतिदिन ढाई करोड़ रुपये के आंकड़े छूने वाली है। मंत्री की बात में सच्चाई भी दिखती है क्योंकि मई, 2023 में आविन ने केवल चेन्नई में दूध की बिक्री को प्रतिदिन 14.30 लाख लीटर से बढ़ाकर 15 लाख लीटर से अधिक कर दिया था।

औद्योगिक दुर्घटनाएँ पूरे भारत में रोजाना होती हैं, क्योंकि केंद्रीय और राज्य सरकारें लालची निवेशकों को बिना किसी रोक-टोक के मज़दूरों का शोषण करने देती हैं। कारखानों और अन्य कार्यस्थलों में बुनियादी सुरक्षा उपायों की अनदेखी की जाती हैं। इसी मक़सद से 2020 में प्रधैनमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी नीत सरकार ने संसद में कार्पोरेट समर्थक आधा दर्जन श्रम 'सुधारों' को धड़ल्ले से पारित कराया था।

महाराष्ट्र में औद्योगिक दुर्घटनाओं की निगरानी करने वाले डायरेक्टोरेट जनरल फ़ैक्ट्री एवाइस सर्विस एंड लेबर इंस्टीट्यूट के अनुसार, महाराष्ट्र में प्रतिदिन औसतन तीन मज़दूरों की मौत होती है और 11 मज़दूर घायल होते हैं। हालाँकि, भारत में उद्योगों के बीच इन दुर्घटनाओं पर कोई सार्वभौमिक डेटा संग्रह प्रणाली नहीं है, और नियोक्ता ज़ुर्माने या सख़्त निरीक्षण के डर से घायलों को छिपाते रहते हैं। इसलिए किसी के पास ये सटीक आंकड़ा नहीं है कि पूरे भारत में किसी ख़ास समयांतराल- सप्ताह, महीने या साल में कितने मज़दूर मारे गए या घायल हुए। 

इस साल हुई भयानक दुर्घटनाओं में से एक छोटे से हिस्से को मीडिया ने कवर किया है, जो निम्नलिखित हैंः-

* मई में, महाराष्ट्र के डोंबिवली एमआईडीसी में एक रासायनिक कारखाने में बॉयलर विस्फोट में कम से कम 13 मज़दूरों की मौत हो गई जबकि 60 से अधिक मज़दूर आसपास के निवासी घायल हो गए। दुर्घटना के बाद यह पता चला कि कारखाना मालिक सुरक्षा उपायों का लम्बे समय से उल्लंघन कर रहा था।

* बीते 2 मई को न्यूज़क्लिक ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि बीते सप्ताह भर में राज्यों में कार्यस्थल पर दुर्घटनाओं में 22 ठेका मज़दूरों की मृत्यु हो गई। यहाँ तक कि मौत के बाद मज़दूरों के परिवार वालों को सामाजिक सुरक्षा और अन्य लाभ भी नहीं मिले। इन मौतों में मेनहोल साफ़ करने वाले 3 सफ़ाई कर्मचारी, एक कारखाने में विस्फोट में मारे गए 8 मज़दूर और एक खनन दुर्घटना में मारे गए 4 मज़दूर शामिल थे।

* 21 अगस्त को, यानी उमारानी के मारे जाने के अगले दिन, आंध्र प्रदेश के अच्युतापुरम में एसिएंटिया एडवांस्ड साइंसेज फ़ार्मास्युटिकल इंग्रेडिएंट्स फैक्ट्री में विस्फोट में 17 मज़दूरों की मृत्यु हो गई और 40 से अधिक घायल हो गए। समाचार रिपोर्टों के अनुसार, मज़दूरों ने बार-बार रासायनिक रिसाव की शिकायत की थी, जिसके कारण विस्फोट हुआ, लेकिन प्रबंधन ने उनकी चिंताओं को नज़रअंदाज कर दिया था।

चेन्नई में बड़े पैमाने पर सदस्यता वाली यूनियनें, जैसे कि सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) और ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक) ने उमारानी की भयानक मौत पर एक शब्द नहीं बोला है। ये यूनियन फ़ेडरेशनें मुख्य स्टालिनवादी संसदीय पार्टियों- कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी) या सीपीएम और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (सीपीआई) से संबद्ध हैं। पूंजीवादी सत्ताधारी अभिजात वर्ग अगर मज़दूरों की ज़िंदगी की क़ीमत पर मुनाफ़े की अंधी दौड़ को जारी रख पाया है तो इसलिए कि इन पार्टियों और इनसे जुड़ी ट्रेड यूनियनों ने व्यवस्थित रूप से वर्ग संघर्ध को दबा दिया है। 

राष्ट्रीय स्तर पर बड़े व्यवसायों को शह देने वाली कांग्रेस और तमिलनाडु में डीएमके जैसी पार्टियों के साथ स्टालिनवादी पार्टियां खुले तौर पर गलबहियां कर ली है और दक्षिणंपथी चुनावी गठबंधन कर लिया है। विश्व बाज़ार में प्रतिस्पर्धा करने और भारत को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय पूंजी के लिए एक सस्ते श्रम के केंद्र के रूप में पेश करने के लिए, शासक वर्ग यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि लाखों-करोड़ों मज़दूर शोषण के सबसे क्रूर रूपों के लिए एक साधन मात्र बने रहें।

मज़दूरों को इन मज़दूर वर्ग विरोधी ट्रेड यूनियन फ़ेडरेशनों से अलग हो जाना चाहिए और हर कार्यस्थल पर अपनी स्वतंत्र एक्शन कमेटियां बनानी चाहिए। केवल ऐसी कमेटियां ही वास्तव में बेहतर वेतन, कार्यस्थलों में सुरक्षा और कारखानों और कार्यस्थलों में अन्य अनुकूल कामकाजी परिस्थितियों के लिए लड़ सकती हैं। इन एक्शन कमेटियों में संगठित भारतीय मज़दूरों को अपने बुनियादी सामाजिक अधिकारों के लिए एक साझे संघर्ष में दुनिया भर में अपने वर्ग भाइयों और बहनों के साथ एकता स्थापित करने और पूंजीवादी मालिकों और सरकारों और राजनीतिक दलों के ख़िलाफ़ अपने बुनियादी सामाजिक और लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए चौथे इंटरनेशनल की इंटरनेशनल कमेटी द्वारा शुरू की गई रैंक-एंड-फ़ाइल कमेटियों के अंतर्राष्ट्रीय वर्कर्स अलायंस के साथ जुड़ना चाहिए। 

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