यह हिंदी अनुवाद अंग्रेजी के मूल लेख Canada-India relations crash, as Ottawa accuses New Delhi of orchestrating campaign of intimidation and murder का जो मूलतः15 अक्टूबर 2024 को प्रकाशित हुआ थाI
ओटावा ने नई दिल्ली आरोप लगाए हैं कि भारत सरकार के अधिकारियों और ख़ुफ़िया एजेंटों ने कनाडा की धरती पर धमकी और मर्डर का अभियान चलाने के लिए आपराधिक गिरोहों के साथ मिलकर साज़िश रची। उसने इसके बारे में 'बहुत स्पष्ट और विश्वसनीय' जानकारी होने की बात कही। इसके बाद से कनाडा और भारत के बीच राजनयिक रिश्ते पूरी तरह खटाई में पड़ गए हैं।
पिछले शनिवार को सिंगापुर में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल और उनके कनाडाई समकक्ष के बीच मीटिंग हुई जिसमें ओटावा ने जो आरोप लगाए उसे भारत ने बहुत ग़ुस्से के साथ ख़ारिज़ कर दिया।
सोमवार को ओटावा ने कनाडा में भारत के राजदूत और अन्य पांच भारतीय राजनयिकों को निष्कासित कर दिया, जिनपर उसने आरोप लगाया था कि उनका ग़रैक़ानूनी गतिविधियों में सीधा हाथ था।
कुछ घंटे बाद एक अलग प्रेस कांफ़्रेंस में रॉयल कनाडियन माउंटेड पुलिस कमिश्नर माइक डुहेमी और कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कनाडा के अधिकारियों के सामने नई दिल्ली के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोपों के बारे में बताया। ट्रूडो ने कहा, 'भारत के एजेंट ऐसी गतिविधियों में शामिल रहे हैं और अभी भी हैं जो सार्वजनिक सुरक्षा के लिए बड़ा ख़तरा हैं। इसमें गोपनीय तरीक़े से जानकारियां इकट्ठा करना, दक्षिण एशियाई मूल के कनाडाई लोगों को निशाना बनाने के लिए दबंगई का व्यवहार करने और हत्या, धमकी और हिंसात्मक कृत्यों के दर्जनों मामले में शामिल होने का मामला है।'
मौजूदा आपराधिक जांच और न्यायिक प्राक्रिया का हवाला देते हुए, न तो ट्रूडो और ना ही डुहेमी ने अपने विस्फ़ोटक आरोपों के पक्ष में कोई सबूत मुहैया कराए। लेकिन इस बात की अहमियत को देखते हुए कि चीन के ख़िलाफ़ साम्राज्यवादी शक्तियों के सैन्य रणनीतिक आक्रामकता के खेल में भारत शामिल है और भारत-कनाडा के रिश्तों को पंगु करने और भारत के धुर दक्षिणपंथी नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार के उठाईगीरों वाले चरित्र के प्रति ओटावा की उदासीनता के बावजूद, उनके पास बहुत ठोस सबूत हैं।
नई दिल्ली ने भी जवाबी कार्रवाई करते हुए भारत में कनाडा के राजदूत और पांच अन्य कनाडाई राजनयिकों को निष्कासित कर दिया।
इसके विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में ज़ोर देकर कहा है, 'भारत सरकार इन बेतुके आरोपों को दृढ़ता से खारिज करती है और इन्हें वोट बैंक की राजनीति पर केंद्रित ट्रूडो सरकार के राजनीतिक एजेंडे के लिए ज़िम्मेदार ठहराती है।'
13 महीने पहले ट्रूडो ने सार्वजनिक रूप से एलान किया था कि जून 2023 में वैंकुवर में एक गुरुद्वारे के बाहर हरदीप सिंह निज्जर की हुई हत्या में भारत के हाथ होने का उसके पास 'विश्वसनीय ख़ुफ़िया जानकारी' थी। भारत में जन्मे कनाडा के नागरिक निज्जर 'वैश्विक खालिस्तानी आंदोलन' के एक प्रमुख नेता थे, जोकि भारत के उत्तर पश्चमी हिस्से में एक अलग सिख राष्ट्र बनाने का लक्ष्य लेकर चलने वाला एक प्रतिक्रियावादी साम्प्रादायिक अभियान है।
इसके बाद अमेरिका ने चेक गणराज्य से एक भारतीय नागरिक, निखिल गुप्ता, को अपने यहां प्रत्यर्पित कराया, जिस पर उसने आरोप लगाया कि वह भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक गुरपतवंत सिंह पन्नू की अमेरिकी धरती पर हत्या की साज़िश रचने में शामिल था। पन्नू एक ख़ालिस्तान समर्थक ग्रुप सिख फ़ॉर जस्टिस के प्रमुख हैं। गुप्ता पर लगाए गए अभियोग में कहा गया है कि पन्नू की हत्या की साज़िश में भारतीय अधिकारी सीधे तौर पर शामिल हैं। वॉशिंगटन पोस्ट ने इस भारतीय अधिकारी की पहचान भारत की प्रमुख ख़ुफ़िया एजेंसी रिसर्च एंड एनॉलिसिस विंग (रॉ) के कर्मचारी विक्रम यादव के रूप में की।
भारतीय गृह मंत्री अमित शाह और बिश्नोई गैंग की कथित संलिप्तता
कनाडा के अधिकारियों ने हाल के महीनों में ख़ालिस्तान समर्थक कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ हिंसा में शामिल रहने वाले क़रीब 20 लोगों को गिरफ़्तार किया है, जिसमें तीन भारतीय नागरिक भी शामिल हैं, जिन पर निज्जर की हत्या के आरोप लगाए गए हैं।
आरसीएमपी के अनुसार, गिरफ़्तार किए गए लोगों में सभी नहीं तो कुछ लोगों के संबंध, लॉरेंस बिश्नोई की रहनुमाई वाले भारतीय आपराधिक गैंग के साथ ज़रूर हैं। कहा जाता है कि कनाडा में रहने वाले खालिस्तानी समर्थकों को निशाना बनाने के अपने अभियान का ठेका, भारत सरकार ने बिश्नोई गैंग को दे दिया है।
बिश्नोई वर्तमान में भारत की जेल में बंद है, लेकिन भारतीय समाचार सूत्रों का कहना है कि वह वहां से बेख़ौफ़ और बिना सज़ा के डर के अपनी आपराधिक गतिविधियां चलाना जारी रखे हुए है।
सोमवार की प्रेस कांसफ़्रेंस में मौजूद रहीं विदेश मंत्री मेलानी जोली ने कहा कि जबसे ओटावा ने भारत पर, निज्जर की हत्या में शामिल होने के आरोप लगाए हैं, तबसे कनाडा में नई दिल्ली की गुपचुप गतिविधियां और बढ़ गई हैं।
वॉशिंगटन पोस्ट ने एक ख़बर प्रकाशित की थी कि उसे पता चलता है कि ओटावा ने नई दिल्ली से कहा है कि कनाडा में 'भारतीय राजनयिकों की बातचीत और टेक्स्ट मैसेज में' अवैध गतिविधियों की जानकारी मिली है और जिन लोगों को निष्कासित किया गया है उनकी बातचीत में भी भारतीय गृहमंत्री अमित शाह और एक वरिष्ठ रॉ अधिकारी का 'ज़िक्र' मिला है और यह भी कि उन्होंने कनाडा में 'ख़ुफ़िया जानकारी इकट्ठा करने के मिशन और सिख अलगाववादियों पर हमलों की मंज़ूरी दी थी.'
शाह मोदी का दाहिना हाथ हैं। अपने बॉस की तरह ही, जिनके साथ उनके दशकों पुराने संबंध हैं, उनका भी साम्प्रदायिकता भड़काने वाला कुख्यात इतिहास रहा है और फर्जी एनकाउंटर में तीन अपराधियों की हत्या की साज़िश रचने के लिए भारत की सीबीआई ने उनपर अभियोग भी चलाया था। हालांकि 2014 में जब मोदी प्रधानमंत्री बने तो ये आरोप हटा लिए गए।
भारतीय न्यूज़ वेबसाइट द वायर ने लिखा है कि महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में चल रहे मुकदमे में पेश होने के मामले में गैंगस्टर बिश्नोई को गुजरात की जेल से ट्रांसफ़र किए जाने को रोकने के लिए, शाह ने गृहमंत्री के अपने पॉवर का इस्तेमाल किया। यह वही राज्य है जहां से मोदी और शाह दोनों आते हैं। यहां तक कि मार्च 2023 में जेल में बंद बिश्नोई के टीवी इंटरव्यू की भी इजाज़त दी गई ताकि उसकी 'देशभक्ति' का दम भरा जा सके, जिसमें उसने कहा था, 'मैं राष्ट्रवादी हूं। मैं खालिस्तान के ख़िलाफ़ हूं। मैं पाकिस्तान के ख़िलाफ़ हूं।'
ख़ालिस्तानी कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ हत्या, हिंसा और धमकी के भारत के अंतरराष्ट्रीय अभियान को लेकर एक साल से अधिक समय से चल रहे राजनयिक विवाद के इस पूरे दौर में, ओटावा की तुलना में अमेरिका द्वारा लगाए गए आरोपों पर भारत की प्रतिक्रिया में ख़ासा अंतर रहा है।
एक तरफ़ मोदी सरकार ने कनाडा के आरोपों का खुल्लम खुल्ला खंडन किया, तो दूसरी तरफ़ अमेरिकी प्रशासन की ओर से लगाए गए आरोपों को गंभीरता से लेते हुए दिखा। अपनी ओर से बाइडन प्रशासन ने शुरू से ही स्पष्ट किया है कि चीन के ख़िलाफ़ अपने युद्दउन्मांद से ऊपर, अमेरिकी साम्राज्यवादी वैश्विक रणनीति में भारत को पहले से भी अधिक नाभिनालबद्ध करने की वॉशिंगटन की पुरज़ोर कोशिशों में, जिसमें भारी पैमाने पर हथियारों की बिक्री और अत्याधुनिक हथियार तकनीकी का ट्रांसफ़र भी शामिल है, बाधा डालने वाले हत्यारे कृत्यों की वह इजाज़त नहीं देगा।
हालांकि जो कुछ दिख रहा है वो बताता है कि भारत के ख़िलाफ़ कनाडा का जो ताज़ा राजनयिक हमला है, वो वॉशिंगटन के साथ बहुत क़रीबी तालमेल के साथ किया गया है।
अमेरिकी-कनाडाई 'घात'
इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के अनुसार, 'पिछले एक हफ़्ते या उससे अधिक समय से, ये पता चला है कि वॉशिंगटन और ओटावा अपने भारतीय समकक्षों के साथ कई दौर की बातचीत कर चुके थे, जिसमें वो सारी जानकारियां साझा की गईं, जिनके बारे में उन्होंने दावा किया कि अमेरिका और कनाडा में ख़ालिस्तानी समर्थक अलगाववादी व्यक्तियों की हत्या की साज़िश और दूसरे देश में हत्या करने में भारत के सरकारी अधिकारियों की संलिप्तता की उनके पास 'विश्वनीय जानकारी' है।'
इन मीटिगों की जो प्रकृति थी, उसके बारे में एक शीर्ष आधिकारिक स्रोत ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि, “यह अमेरिकियों और कनाडाइयों दोनों की ओर से एक 'एम्बुश यानी घात' था.“
पिछले सप्ताह, अमेरिकी विदेश विभाग ने भारत सरकार की 'जांच कमेटी' के प्रतिनिधियों को समन किया, जिसे पन्नू की हत्या की साज़िश को लेकर लगाए गए अभियोग के बाद अमेरिका की मांग पर मोदी और शाह ने बनाया था, कि वे वॉशिंगटन आएं और जांच में जो कुछ पता चला उसे साझा करें।
अमेरिकी विदेश विभाग के बयान के अनुसार, जिसका एक बड़ा हिस्सा इसकी वेबसाइट से हटा दिया गया है, जांच कमेटी के सदस्यों को मंगलवार को वॉशिंगटन में पहुंचना था। यानी, उन्हें सिंगापुर में भारत और कनाडा के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की गुप्त असाधारण बैठक के तुरंत बाद अमेरिकी अधिकारियों का सामना करना था। सिंगापुर की बैठक तब हुई थी जब ट्रूडो ने सार्वजनिक रूप से दावा किया था कि उत्तरी अमेरिका में हत्या की साज़िशों में भारत सरकार के हाथ होने के ठोस सबूत कनाडा के पास हैं। इसके बाद ट्रूडो ने छह भारतीय राजनयिकों को निकाल दिया था।
वॉशिंगटन विदेशी धरती पर हत्याएं करवाने में अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों को ठेंगे पर रखता है और कनाडा का इसमें भरपूर समर्थन होता है। उदाहरण के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा का 'टेरर ट्यूज़डे' भी शामिल है और ट्रंप का वो आदेश भी जिसमें 2020 में इरानियन इस्लामिक गॉर्ड्स कोर के प्रमुख क़ासेम सुलेमानी की हत्या का निर्देश दिया गया था। दो उत्तरी अमेरिकी साम्राज्यवादी शक्तियों ने ग़ज़ा पर शुरू हुए जनसंहारक युद्ध और पूरे मध्यपूर्व में जहां तहां बमबारी करने के लिए इसराइल का खुल कर समर्थन किया था, जबकि वहां एक के बाद एक युद्ध अपराध और अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का उल्लंघन किया जा रहा है।
राष्ट्रीय संप्रभुता, राष्ट्रीय प्रतिष्ठा और आंतरिक राजनीतिक एकजुटता के लिए वॉशिंगटन और ओटावा, अपने यहां के क़ानूनों को तोड़ने और नागरिकों की हत्याएं करने के लिए, नई दिल्ली को यूं ही इजाज़त देने को तैयार नहीं हैं। अगर भारत पाकिस्तान के साथ ऐसा करता है, कथित रूप से जहां उसने हाल के सालों में ऐसी ही 20 हत्याएं कराई हैं, तो यह एक बात है, लेकिन वेंकुवर या न्यूयॉर्क की सड़कों पर ऐसा करना दूसरी बात है।
कुछ लोगों को कहना है कि वॉशिंगटन ने इस वक़्त इस मुद्दे को खींचने और अपने क़रीबी सहयोगी कनाडा को इसके लिए उकसाने का जो फैसला किया है, इसके पीछे स्पष्ट कारण हैं।
अमेरिकी साम्राज्यवादी रणनीतिकार इस बात को लेकर ख़फ़ा और ग़ुस्से में है कि नई दिल्ली ने, यूक्रेन को लेकर रूस के साथ नेटो ने जो युद्ध भड़काया है, उसका समर्थन करने से इनकार कर दिया और जैसे जैसे मोर्चे पर यूक्रेन की सैन्य हालत बद से बदतर होती गई है, यह खीझ और बढ़ती गई है।
भारत, वॉशिंगटन और एशिया प्रशांत के इसके सहयोगियों, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर चीन के ख़िलाफ़ द्विपक्षीय, त्रिपक्षीय और चतुष्कोणीय सैन्य रणनीतिक गठबंधनों और 'संवादों' के जाल से, भारत खुद को और एकाकार करना जारी रखे हुए है। हालांकि साथ ही यह, रूस के साथ अपने संबंधों को कम करने या ख़त्म करने के अमेरिकी दबाव का प्रतिरोध करना जारी रखा है, क्योंकि अपने अधिकांश हथियारों और परमाणु कार्यक्रमों के लिए रूस पर उसकी निर्भरता काफ़ी है। इसके अलावा, अमेरिकी अगुवाई में लगाए गए प्रतिबंधों के चलते बहुत रियायती दरों पर रूसी तेल के आयात का मौका भारत के लिए वरदान साबित हुआ है। रूस अब भारत का सबसे बड़ा कच्चे तेल का सप्लायर बन गया है, जोकि 2021 में 2 प्रतिशत बाज़ार हिस्सेदारी से काफ़ी अधिक हो चुका है और इसमें बहुत बड़ा हिस्सा बाद में रिफ़ाइंड प्रोडक्ट्स के निर्यात के कारण है।
भारत की गोपनीय ग़ैरक़ानूनी गतिविधियों ने, वॉशिंगटन को बहाना दे दिया है कि वह रूस के ख़िलाफ़ अपनी आक्रामकता में शामिल करने के लिए नई दिल्ली पर दबाव बनाए। दूसरी तरफ़, इस मामले में कनाडा की अगुवाई ने, बाइडन प्रशासन को इस बात का मौका दे दिया है कि वह भारत-अमेरिकी सैन्य रणनीतिक गठबंधन को बिना कोई नुकसान पहुंचाए या अमेरिकी जनता की नज़रों में संभावित बदनामी से बचते हुए अपना संदेश पहुंचा दे।
आने वाले महीनों और हफ़्तों में यह क्या रूप लेता है, यह देखना बाकी है। कनाडा में, भारतीय सरकार के हिंसा से जुड़े ताज़ा खुलासे का कार्पोरेट मीडिया और राजनीतिक तंत्र लगातार हवाला दे रहा है, जिससे यह बहस और आगे बढ़ रही है कि इस 'शत्रुतापूर्ण दुनिया' में कनाडा को आक्रामक नीति अख़्तियार करनी चाहिए और मिलिटरी खर्च में भारी बढ़ोत्तरी करते हुए अमेरिका, नेटो और फ़ाइव आईज़ के साथ अपनी साझेदारी को और मजबूत करनी चाहिए और घरेलू स्तर पर सरकारी निगरानी को बढ़ा देना चाहिए।
पिछले जून में, 'विदेशी हस्तक्षेप', ख़ासकर चीनी हस्तक्षेप से लड़ने के नाम पर, संसद ने सर्वसम्मति से एक क़ानून पास किया जिसमें राजनीतिक अपराधों की एक पूरी नई श्रेणी बनाई गई है और ख़ुफ़िया एजेंसियों को और अधिक अधिकार दे दिए गए हैं।
भारतीय मीडिया में ऐसे लेख छपना शुरू भी हो गए हैं जिसमें उत्तरी अमेरिका में रहने वाले ख़ालिस्तानी कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ मोदी सरकार की बदले की कार्यवाही को “मूर्खतापूर्ण“ बताया जा रहा है और तर्क दिया जा रहा है कि इसने वॉशिंगटन को नई दिल्ली को आंख दिखाने; और जैसे जैसे जांच और क़ानूनी प्रक्रिया आगे बढ़ रही है, इसे लेकर पैदा हुए तनावों को अमेरिकी हितों के अनुरूप तोड़ने मरोड़ने का मौका दे दिया है।
सामान्य भाषा में कहें तो, अमेरिका और इसके साम्राज्यवादी सहयोगियों की अगुवाई में, पूंजीवाद जैसे जैसे एक वैश्विक जंग की ओर जा रहा है, ऐसे में यह पूरा मामला, अंतरराष्ट्रीय क़ानून के पतन और अंतरराष्ट्रीय रिश्तों के विस्फोटक चरित्र को दिखाता है।