यह हिंदी अनुवाद अंग्रेजी के मूल का Indian Samsung workers strike against multinational giant’s campaign of arbitrary suspensions जो 25 फ़रवरी 2025 को प्रकाशित हुआ थाI
तमिलनाडु में सैमसंग इंडिया के घरेलू उपकरण बनाने वाले प्लांट में क़रीब 500 वर्कर बीते पांच फ़रवरी से ही धरने पर बैठकर प्रदर्शन कर रहे हैं, उनकी मांग है कि जिन तीन वर्करों को मैनेजमेंट ने मनमाने तरीक़े से निलंबित किया था, उन्हें बहाल किया जाए। नई बनी सैमसंग इंडिया वर्कर्स यूनियन (एसआईडब्ल्यूयू) के ये तीनों वर्कर पदाधिकारी हैं, यह यूनियन स्टालिनवादी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी) या सीपीएम की यूनियन फ़ेडरेशन से संबद्ध है।
यह निलंबन, 27 जनवरी को श्रम विभाग की ओर से यूनियन को आधिकारिक मान्यता दिए जाने के कुछ ही दिन बाद हुआ। सैमसंग ने तमिलनाडु की डीएमके सरकार और धुर दक्षिणपंथी बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार की मिलीभगत से इस यूनियन को मान्यता दिए जाने का कड़ा विरोध किया था।
20 फ़रवरी को सैमसंग मैनेजमेंट ने 14 और मज़दूरों को निलंबित कर दिया। भड़काऊ तरीक़े से इसने एलान किया कि वह विवाद ख़त्म करने के लिए श्रम विभाग के तत्वावधान में आयोजित वार्ता में ऐसा कर रही है।
इन नए निलंबनों के बाद, फ़ैक्ट्री में तनाव बढ़ गया और हड़ताली वर्कर, उन कुछ कांट्रैक्ट वर्करों को भी अपने साथ लाने में क़ामयाब हो गए, जिन्होंने हड़ताल के दौरान काम करना जारी रखा था।
फ़ैक्ट्री में लगभग 1800 वर्कर हैं, जो विभिन्न श्रेणियों में बंटे हुए हैं। एसआईडब्ल्यूयू केवल परमानेंट वर्करों का प्रतिनिधित्व करती है और इस बंटवारे का इस्तेमाल करके सैमसंग ने तीन सप्ताह लंबे चले हड़ताल में भी फ़ैक्ट्री में उत्पादन जारी रखा था।
21 फ़रवरी की शाम को, चेन्नई के ठीक बाहर स्थित ओरागाडाम-कांचीपुरम औद्योगिक क्षेत्र के विभिन्न उद्योगों के वर्करों ने हड़ताली सैमसंग वर्करों के समर्थन में एक प्रदर्शन किया। हड़ताली वर्करों की ओर से दबाव के चलते, सीटू के नेतृत्व ने आठ मार्च 2023 को कांचीपुरम में समर्थन में एक हड़ताल आयोजित करने की धमकी दी है।
इससे पहले 17 फ़रवरी को क़रीब 200 वर्करों और उनके परिजन सैमसंग प्लांट के पास इकट्ठा हुए थे।
एसआईडब्ल्यूयू को श्रम विभाग की ओर आधिकारिक मान्यता, सैमसंग मैनेजमेंट और डीएमके की तमिलनाडु सरकार के ख़िलाफ़ वर्करों के लंबे संघर्ष के बाद ही मिल पाई है। पिछले साल सितम्बर और अक्टूबर में एसआईडब्ल्यूयू को मान्यता देने के लिए वर्करों ने 37 दिनों की हड़ताल की थी।
हालांकि भारतीय श्रम क़ानूनों के तहत यूनियन की मान्यता को संवैधानिक अधिकार माना जाता है, लेकिन इस एसआईडब्ल्यूयू को पंजीकृत करवाने के लिए मज़दूरों के प्रदर्शनों और क़ानूनी कार्रवाईयों में 200 दिन से अधिक समय लग गया।
जैसा कि सैमसंग का निलंबन करने का ताबड़तोड़ अभियान साफ़ करता है कि दक्षिण कोरियाई कंपनी बेहतर वेतन और काम के हालात को लेकर वर्करों की कोई भी और किसी भी प्रकार के दबाव को कुचलने को लेकर दृढ़ संकल्प लिए हुए है। इसने इन मुद्दों पर यूनियन से वाजिब वार्ता करने से इनकार करना जारी रखा है और कंपनी द्वारा बनाई गई फर्ज़ी ”वर्कर्स कमेटी” की आड़ में एसआईडब्ल्यूयू को मान्यता न देते हुए वर्करों को डराने धमकाने की कोशिश कर रही है।
कंपनी के हठ के सामने, सीपीएम की अगुवाई वाली सीटू ने हर मोड़ पर वर्करों को सीमित सामूहिक वार्ता के खांचे में रखने की कोशिश की ताकि दक्षिणपंथी डीएमके सरकार के साथ स्टालिनवादियों की गलबहियां खटाई में न पड़ जाए। सीपीएम का राज्य और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर डीएमके के साथ गठबंधन है।
डीएमके सरकार के दबाव के चलते, सीटू के नेताओं ने 15 अक्टूबर को सैमसंग वर्करों की हड़ताल को अचानक ख़त्म कर दिया था और यूनियन के पंजीकरण पर समझौता होने का दावा किया था। लेकिन यह समझौता, जल्द ही फ़र्जी निकला, जैसा कि यह था भी।
मैनेजमेंट, यूनियन के साथ वार्ता करने से लगातार इनकार करता रहा और अपनी जेबी “वर्कर्स कमेटी“ में शामिल होने के लिए, वर्करों को डराने के लिए “ट्रेनिंग सेशन“ का इस्तेमाल किया। चूंकि इस धमकाने वाले अभियान के बावजूद मुठ्ठी भर वर्करों को ही वे ऐसा करने में करने के लिए मनाने में सफल रहे, इसलिए मैनेजमेंट ने वर्करों को लालच देने की कोशिश की कि अगर वे फ़र्ज़ी कमेटी में शामिल होते हैं तो उन्हें 3 लाख रुपये तक ब्याज़ मुक्त कर्ज़ दिया जाएगा।
पिछले नवंबर में डब्ल्यूएसडब्ल्यूएस ने लिखा थाः
सीटू ने अपने घटिया विश्वासघात को सैमसंग मैनेजमेंट और तमिलनाडु की डीएमके सरकार पर एक ऐतिहासिक “जीत“ बताया था। सीटू के लंबे समय से पदाधिकारी रहे और एसआईडब्ल्यूयू के नेता मुथुकुमार के अनुसार, यह एक ऐसी जीत है जिसे “दुनिया अचरज से देख रही है“ और कथित तौर पर “इसने वर्करों में खुशी“ पैदा की है।
लेकिन मुथुकुमार ने जीत की जो नकली तस्वीर बनाई, उसके उलट सैमसंग वर्करों ने डब्ल्यूएसडब्ल्यूएस रिपोर्टरों के साथ बातचीत में सीटू के विश्वास्घात पर अपना ग़ुस्सा और कड़वापन ज़ाहिर किया।
31 जनवरी को, लंच ब्रेक के दौरान एसआईडब्ल्यूयू के तीन पदाधिकारी- मोहनराज, गुनासेकरन और देवानेसान ने वर्करों के साथ दुर्भव्यवहार के मुद्दे पर सैमसंग मैनेजिंग डायरेक्टर से मिलने के लिए एचआर डिपार्टमेंट से अनुमति मांगी थी। एचआर ने उनकी अपील को मानने से इनकार कर दिया, नतीजतन एक घंटे तक हंगामा चलता रहा। बाद में चार और पांच फ़रवरी को सैमसंग ने उन तीनों वर्करों के निलंबन का आदेश जारी कर दिया और आरोप लगाया कि 31 जनवरी को इन्होंने मैनेजिंग डायरेक्टर से मिलने की कोशिश में क़रीब आधे घंटे तक उत्पादन को ठप किए रखा था। इसके जवाब में निलंबित वर्करों ने वहीं धरना शुरू कर दिया, जल्द ही बाकी परमानेंट वर्कर भी उनके समर्थन में आ गए।
जवाबी कार्रवाई करते हुए सैमसंग मैनेजमेंट ने शौचालय बंद कर दिए और बिजली काट दी। इसके बावजूद वर्करों ने अपने अधिकार की मांग के समर्थन में प्रदर्शन जारी रखा और दबाव के चलते मैनेजमेंट को शौचालय खोलने पड़े। इसके बाद, प्रदर्शन जारी रहा और यूनियन के समर्थक वर्कर अपने नियमित शिफ़्टों के दौरान धरने पर बैठते रहे, लेकिन उन्होंने मैनेजमेंट द्वारा ग़ैर परमानेंट वर्करों का इस्तेमाल करते हुए उत्पादन जारी रखने को रोका नहीं।
उधर, सैमसंग सप्लायर कंपनी एसएच इलेक्ट्रॉनिक्स में निलंबित किये गए 93 वर्करों का धरना जारी है। महीनों पहले उन्हें निलंबित किया गया था क्योंकि उन्होंने सीटू से संबद्ध यूनियन बनाने की मांग की थी।
17 फ़रवरी को सैमसंग वर्करों के प्रदर्शन के दौरान बोलते हुए सीटू के नेता मुथुकुमार ने राष्ट्रवादी लहजा अख़्तियार करते हुए भारतीय श्रम क़ानूनों को न मानने के लिए सैमसंग और एसएच इलेक्ट्रॉनिक्स की आलोचना की और दावा किया कि ये विदेशी कारपोरेशन मज़दूरों के अधिकार पर मुनाफ़े को तरजीह देते हैं। मुथुकुमार ने तमिल पूंजीवादी अभिजात वर्ग सहित भारतीय पूंजीपति वर्ग की लालची भूमिका के बारे में कुछ नहीं कहा। ना ही उन्होंने इस बात का ज़िक्र किया कि बीजेपी सरकार अब नए लेबर कोड लागू करने जा रही है जो सभी उद्योगों में कंपनियों को कांट्रैक्ट लेबर रखने की अनुमति देगा और मालिकों को बिना सरकारी अनुमति के अपनी मर्जी से कर्मचारियों को निकालने का अधिकार देगा।
वर्करों को सीटू और स्टालिनवादी सीपीएम की असली भूमिका को समझने की ज़रूरत है, जिसने दशकों तक राजनीतिक सत्तातंत्र के हिस्से के रूप में काम किया है, वर्ग संघर्ष को दबाया है और वर्करों को डीएमके और कांग्रेस जैसी दक्षिणपंथी पूंजीवादी पार्टियों के पीछे लामबंद किया है। जहां सीपीएम की सरकारें थीं, जैसे कि पश्चिम बंगाल और केरल में, उन राज्यों में इसने ”निवेश परस्त” नीतियों को लागू किया।
सीटू सैमसंग मैनेजमेंट से इस बात को मान जाने की बार बार अपील कर चुकी है कि यूनियन, मुनाफ़ाखोर मल्टीनेशनल का ”पार्टनर” बन सकती है और मज़दूरों की शिकायतों को हल करने के बदले वह उत्पादन बढ़ाने में मदद कर सकती है।
सीटू ने कांचीपुरम के सभी औद्योगिक कारखानों में एक दिन के हड़ताल का आह्वान किया है और मज़दूरों, मालिकों और सरकार के बीच दांवपेंच का उसका पुराना तरीका है ताकि मज़दूरों का गुस्सा उबल न पड़े, इसे सुनिश्चित किया जा सके।
सीटू लगातार मज़दूरों को सलाह देती है कि वे अपनी ओर से हस्तक्षेप करने के लिए डीएमके सरकार के श्रम मंत्रालय और पूंजीवादी अदालतों से अपील करें। दूसरी तरफ़ सीटू के नेताओं ने वर्करों से कह रखा कि वे डब्ल्यूएसडब्ल्यूएस रिपोर्टरों जैसे ”बाहरी” लोगों से बात न करें और वादा किया है कि 'सीटू नेतृत्व मज़दूरों की सारी समस्याओं को हल करेगा।'
सीटू की निष्क्रियता से उत्साहित होकर सैमसंग प्रबंधन ने कर्मचारियों के ख़िलाफ़ अपनी धमकियों को और बढ़ा दिया है। जिस दिन इसने अतिरिक्त 14 मज़दूरों को निलंबित किया, उसी दिन उसने धमकी भरा बयान जारी कर कहा, 'मज़दूरों द्वारा उस तरह की किसी भी ग़ैरक़ानूनी गतिविधि को लेकर हमारी ज़ीरो टॉलेरेंस पॉलिसी है जिससे कार्यस्थल पर औद्योगिक स्थिरता और शांति भंग होती हो।' दूसरे शबदों में अगर कोई भी मज़दूर इसके बर्बर निमय क़ानून और वेतन के ढांचे को चुनौती देगा, वह बेरहमी से उनका दमन करेगी।
सैमसंग और एसएच इलेक्ट्रॉनिक्स द्वारा उठाए गए क़दम एक बार फिर साबित करते हैं कि सभी के लिए अच्छे वेतन वाली नौकरियां सुरक्षित करने के लिए एक संयुक्त संघर्ष में परमानेंट और कांट्रैक्ट वर्करों को एकजुट करने का संघर्ष बहुत ज़रूरी है। भारत की यूनियनें ठेका मज़दूरी के प्रसार को किसी प्रकार की गंभीर चुनौती देने में विफल रही हैं, जोकि अब पूरे निजी और सार्वजनिक क्षेत्र में एक आम बात हो गई है क्योंकि इसके लिए मज़दूर विरोधी क़ानूनों और अदालती आदेशों की व्यवस्थित नाफरमानी और मज़दूर वर्ग के एक स्वतंत्र राजनीतिक आंदोलन की ज़रूरत होगी।
सैमसंग वर्करों को, सीटू तंत्र से अलग होकर एक रैंक एंड फ़ाइल कमेटी बनाकर अपने संघर्ष को खुद अपने हाथ में लेना होगा। इस कमेटी को एक साझे संघर्ष के लिए परमानेंट, ठेका और टेंपरेरी वर्करों को एकजुट करना चाहिए। उन्हें सैमसंग के नोएडा, उत्तरी भारत, दक्षिण कोरिया के प्लांटों और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मज़दूरों से समर्थन मांगना चाहिए और अपने अधिकारों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वतंत्र रैंक एंड फ़ाइल कमेटियों का एक नेटवर्क बनाना चाहिए।
वर्ग संघर्ष के सिद्धातों और समाजवादी अंतरराष्ट्रीयतावाद के आधार पर तैयार इस तरह का एक आंदोलन ही, सैमसंग जैसे वैश्विक कारपोरेशनों द्वारा मज़दूरों के बर्बर शोषण को प्रभावी चुनौती दे सकता है।
यह, पूंजीवादी व्यवस्था और सामाजिक आवश्यकताओं की तुलना में लाभ को प्राथमिकता देने के निवेशकों की नीति के ख़िलाफ़ मज़दूरों को एकजुट करने के व्यापक संघर्ष का हिस्सा होगा।