यह हिंदी अनुवाद अंग्रेजी के India and Pakistan cascading toward war after New Delhi blames Islamabad for terrorist attack मूल लेख का है, जो 24 अप्रैल को प्रकाशित हुआ थाI
परमाणु हथियारों से लैस दक्षिण एशिया के दो प्रतिद्वंद्वी देश, भारत और पाकिस्तान के बीच तेज़ी से युद्ध के हालात बनते जा रहे हैं क्योंकि भारत ने भारत प्रशासित कश्मीर में एक बर्बर चरमपंथी हमले के लिए पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराया है। सारे 26 पर्यटक मंगलवार उस समय मारे गए जब पहलगाम के ख़ूबसूरत बैसरन घाटी में एक कमांडो अटैक में उन्हें निशाना बनाया गया।
24 घंटे बाद ही हिंदू बर्चस्ववादी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नीत भारत सरकार ने पाकिस्तान को निशाना बनाते हुए कई सारे 'जवाबी' क़दम उठाने की घोषणा की। इसके अलावा इसने संकेत दिया है कि ये सिर्फ़ शुरुआती क़दम हैं और पाकिस्तान पर 2016 और 2019 से भी बड़े सैन्य हमले किए जाने पर विचार किया जा रहा है। पहले के दो सैन्य हमलों ने इस महाद्वीप में युद्ध भड़कने के आसार पैदा कर दिए थे।
21वीं सदी की शुरुआत से ही और ख़ास तौर पर कथित हिंदू हृदय सम्राट नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने खुद को चीन के ख़िलाफ़ अमेरिका की बढ़ती सैन्य रणनीतिक आक्रामकता के साथ एकाकार किया है। इसमें कोई शक नहीं कि नई दिल्ली मानकर चल रही है कि 2019 में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कार्रवाई में ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान जिस तरह का समर्थन दिया था, इस बार भी कम से उसी तरह का वह समर्थन देंगे। उस समय उन्होंने पाकिस्तान के अंदर ग़ैरक़ानूनी भारतीय हमले की प्रशंसा की थी।
बुधवार को, स्पष्ट रूप से पाकिस्तान को निशाना बनाते हुए की गई टिप्पणी में भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एलान किया, 'हम केवल उनतक नहीं पहुंचेंगे जिन्होंने इस घटना को अंजाम दिया था बल्कि उन तक भी पहुंचेंगे जो पर्दे के पीछे बैठे हुए हैं और जिन्होंने भारतीय ज़मीन पर इस तरह के कृत्य को किए जाने की साज़िश रची।'
हालांकि अभी तक नई दिल्ली ने अपने इस दावे के समर्थन में ऐसा कोई सबूत नहीं दिया है जिससे ये साबित होता हो कि पहलगाम हमले में पाकिस्तानी सरकार का हाथ है। इसने बस कहा कि रेज़िस्टेंस फ़्रंट का संबंध लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) से है। कथित रूप से रेज़िस्टेंस फ़्रंट ने इस हमले की ज़िम्मेदारी लेने का दावा किया है, जबकि एलईटी एक इस्लामी टेररिस्ट संगठन है जिसे पहले भी पाकिस्तानी मिलिटरी-इंटेलिजेंस से समर्थन मिलता रहा है।
बुधवार को जो क़दम उठाए गए उसमें शामिल हैं- राजनयिक कर्मियों को छोड़कर सभी पाकिस्तानी नागरिकों को 29 अप्रैल तक देश के बाहर जाने का आदेश; भारत पाकिस्तान के बीच अमृतसर और लाहौर को जोड़ने वाले सबसे महत्वपूर्ण बॉर्डर क्रॉसिंग को बंद करना; भारत में मौजूद पाकिस्तानी दूतावास से अटैच सभी पाकिस्तानी सैन्य कर्मियों का निष्कासन और इस्लामाबाद में भारतीय दूतावास से कुछ कर्मियों को वापस बुलाना।
नई दिल्ली की इन घोषणाओं में सबसे उकसाऊ है- सिंधु जल संधि में हिस्सा लेने को निलंबित करना। जबसे संधि हुई है, इन 65 सालों में भारत और पाकिस्तान के बीच दो घोषित और अनगितन अघोषित युद्ध और सीमा पर झड़पें हुई हैं। लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है जब इस संधि को निलंबित किया गया है और इस तरह पाकिस्तान को पानी आपूर्ति से वंचित करने की शक्ति हासिल कर ली गई है, जिस पर उसका बिजली ग्रिड और कृषि सिंचाई नेटवर्क निर्भर है।
मोदी ने इन घोषणाओं के बाद गुरुवार को एक उकसावे वाला और युद्ध भड़काऊ भाषण दिया जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ईरान को 'मिटा' देने की धमकी और ग़ज़ा के पीड़ित फ़लस्तीनियों के ख़िलाफ़ जनसंहार को भड़काने वाले इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के भाषणों की झलक देखी जा सकती है।
बिहार में बीजेपी की एक रैली को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा, 'जिन्होंने इस आतंकी हमले को अंजाम दिया और जिन लोगों ने इसकी योजना बनाई, उन्हें कल्पना से परे सज़ा दी जाएगी...समय आ गया है कि चरमपंथ की बची खुची ज़मीन को धूल में मिला दिया जाए। 140 करोड़ भारतीयों का संकल्प आतंक के मालिकों की रीढ़ तोड़कर रहेगा।' लंबे समय से भारत सरकार अपने कट्टर विरोधी पाकिस्तान को दुनिया के 'टेररिस्ट स्टेट' का मुखिया बताता रहा है।
पाकिस्तान ने भी इसका उसी तरह जवाब दिया है। गुरुवार को इसने घोषणा की कि वह शिमला समझौते को निलंबित कर रहा है, जिस पर 1971 में हुई भारत पाकिस्तान जंग के बाद जुलाई 1972 में हस्ताक्षर किए गए थे। अन्य चीज़ों के अलावा, शिमला समझौते के तहत दोनों देशों के बीच किसी विवाद का शांतिपूर्ण द्विपक्षीय समाधान किए जाने पर रज़ामंदी हुई थी और पाकिस्तान नियंत्रित आज़ाद कश्मीर और भारत के कब्ज़े वाले जम्मू एवं कश्मीर को विभाजित करने वाली लाइन ऑफ कंट्रोल यानी एलओसी की स्थापना हुई थी और पूरे कश्मीर पर एक दूसरे के दावे के अंतिम समाधान को आगे के लिए छोड़ दिया गया था।
गुरुवार को जारी प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ के एक बयान में इस्लामाबाद ने अपने हाल के आरोपों को दुहराया है कि भारत उनके देश को अस्थिर करना चाहता है, जिसमें बलूची अलगाववादियों और तहरीक-ए-तालिबान-ए-पाकिस्तान (पाकिस्तानी तालिबान) को गुपचुप समर्थन देना भी शामिल है।
बयान में घोषणा की गई है कि, 'पाकिस्तान सिर्फ शिमला समझौता ही नहीं बल्कि सारे द्विपक्षीय समझौतों को रोकने के अपने अधिकार का इस्तेमाल करेगा, जबतक भारत पाकिस्तान के अंदर आतंकवाद को हवा देने, विदेशी नागरिकों की हत्या करने और कश्मीर पर अंतरराष्ट्रीय क़ानून और संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों का पालन न करने के अपने स्पष्ट व्यवहार से बाज़ नहीं आता।'
इस बयान में आरोप लगाया है कि भारत द्वारा सिंधु जल समझौते को निलंबित किया जाना अवैध है क्योंकि पानी 'पाकिस्तान के राष्ट्रीय हित का हिस्सा है' और इसके '24 करोड़ लोगों की जीवन रेखा है।'
इसके बाद इसमें चेतावनी दी गई है कि अगर भारत पाकिस्तान को पानी की आपूर्ति बंद करने की धमकी पर अमल करता है तो इससे जंग भड़केगीः 'सिंधु जल समझौते के मुताबिक़ पाकिस्तान के पानी को रोकने या उसे मोड़ने की कोई भी कोशिश जंग का एलान माना जाएगा और पूरी राष्ट्रीय क्षमता के साथ इसका पूरी ताक़त से जवाब दिया जाएगा।'
भारत पाकिस्तान तनाव दो प्रतिद्वंद्वी पूंजीवादी देशों के बीच एक प्रतिक्रियावादी संघर्ष है, जिसकी जड़ें 1947 में दक्षिण एशिया के सम्प्रदायिक विभाजन में हैं, जिसमें एक मुखर मुस्लिम पाकिस्तान और हिंदू इंडिया बना था। बढ़ते साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन और जुझारू मज़दूर वर्ग के उभार के डर से पूंजीपतियों की अगुवाई वाली राष्ट्रीय कांग्रेस ने एक एकजुट, लोकतांत्रिक और सेक्युलर इंडिया के अपने कार्यक्रम को छोड़ दिया और लंदन के साथ सत्ता हस्तानांतरण का एक घिनौना सौदा कर लिया, जिसके तहत उसने ब्रिटिश साम्राज्यवाद द्वारा खड़ा किये गए औपनिवेशिक पूंजीवादी राज्य पर कब्ज़ा ग्रहण कर लिया। इसके साथ ही उसने उपमहाद्वीप के सांप्रदायिक बंटवारे के लिए प्रतिद्वंद्वी दक्षिणपंथी मुस्लिम लीग के साथ मिलकर काम करना स्वीकार किया। इस विभाजन से व्यापक पैमाने पर साम्प्रदायिक दंगा भड़का जिनमें कम से कम 20 लाख लोग मारे गए और दो करोड़ लोगों को विस्थापित होना पड़ा। बड़े पैमाने पर मुस्लिमों ने भारत छोड़ा जबकि हिंदू और सिखों को पाकिस्तान छोड़ना पड़ा।
भारत और पाकिस्तान के बीच मौजूदा संघर्ष कश्मीर पर नियंत्रण को लेकर है, जोकि एक जनजातीय-भाषाई और भौगोलिक क्षेत्र है जो ब्रिटेन के पूर्व भारतीय साम्राज्य की एक रियासत या जागीर भी रही है। 1947-48 की जंग में कश्मीर का विभाजन हो गया और भारत और पाकिस्तान नियंत्रित 'दो कश्मीर' बन गए।
भारत और पाकिस्तान दोनों की बुर्जुआज़ी कश्मीरी लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों को लेकर आरोप प्रत्यारोप लगाती रही है। भारत के एकमात्र मुस्लिम बहुल राज्य, जम्मू कश्मीर में चुनावों में बड़े पैमाने पर धांधली के ख़िलाफ़ 1989 में जब व्यापाक पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हुए तो नई दिल्ली ने इसे बर्बर तरीक़े से कुचला। इसकी वजह से उग्रवाद भड़का और पाकिस्तान ने अपने प्रतिक्रियावादी हितों के लिए इसे और हवा दी। उसने अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत समर्थित सरकार से लड़ने के लिए अमेरिकी साम्राज्यवाद के इशारे पर बनाए गए इस्लामी लड़ाकों के अपने नेटवर्क को कश्मीर में तैनात किया और उसे और फैलाया।
दशकों तक एलओसी दुनिया का सबसे ख़तरनाक संघर्ष क्षेत्र रहा है, जहां भारत और पाकिस्तान की सेनाओं और आर्टिलरी की सबसे सघन तैनाती है और भारत के कब्ज़े वाला कश्मीर दुनिया का सबसे अधिक सैन्यीकृत क्षेत्र है। क़रीब 1.4 करोड़ लोगों वाले इस इलाक़े में पांच लाख से अधिक सैनिक तैनात हैं।
कश्मीर पर संघर्ष और वैश्विक राजनीति
इस सदी की शुरुआत के साथ ही, भारत पाकिस्तान के बीच संघर्ष, चीन के साथ भारत की प्रतिद्वंद्विता और अमेरिकी साम्राज्यवाद और चीन के बीच संघर्ष के कारण और जटिल हो गई है।
भारत के साथ 'वैश्विक रणनीतिक पार्टनरशिप' को बढ़ाने की ख़ातिर वॉशिंगटन ने, शीत युद्ध के दौरान मुख्य क्षेत्रीय सहयोगी रहे पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को बहुत अधिक कम कर दिया है। अमेरिका का मक़सद भारत को चीन के ख़िलाफ़ खड़ा करना है, जबकि इसके साथ साझेदारी में हिंद महासागर में अमेरिकी दबदबे को सुनिश्चित करना भी इसका लक्ष्य है। हिंद महासागर के समुद्री रास्ते, चीन के बाकी दुनिया में निर्यात और संसाधनों तक पहुंच के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं।
जॉर्ज डब्ल्यू बुश के समय से ही, अमेरिका की सरकारें, चाहे वो डेमोक्रेटिक पार्टी की हों या रिपब्लिकन पार्टी की, उन्होंने अमेरिका-भारत 'साझेदारी' को और गहरा किया है और कुछ मौकों पर ये तक कहा गया कि इस पूरी सदी में भी अमेरिकी दबदबे को बनाए रखने के लिए यह साझेदारी 'सबसे महत्वपूर्ण' है।
अमेरिका ने दिल खोल कर रणनीतिक मामले में भारत का पक्ष लिया है, जिसमें अत्याधुनिक हथियारों की आपूर्ति और नागरिक परमाणु तकनीक देना शामिल है, जबकि पाकिस्तान ने वॉशिंगटन को चेतावनी दी कि वह इस क्षेत्र में 'सत्ता के संतुलन' को ख़तरनाक रूप से बिगाड़ रहा है। इन चेतावनियों को ख़ुशी ख़ुशी नज़रअंदाज़ कर दिया गया। इसके जवाब में पाकिस्तान ने चीन के साथ अपनी 'सदाबहार' रणनीतिक साझेदारी को बढ़ा दिया, जिसने वॉशिंगटन और नई दिल्ली को और चिढ़ा दिया।
अमेरिकी समर्थन से उत्साहित मोदी सरकार ने क्षेत्रीय महाशक्ति के रूप में खुद को स्थापित करने की कोशिशों के तहत भारत और पाकिस्तान के बीच 'रिश्तों के नियम' बदलने की कोशिश की है। मोदी ने पाकिस्तान के अंदर जो सीमा पार 'सर्जिकल स्ट्राइक' की थी, वह भारत की ऐसी पहली कार्रवाई नहीं थी, लेकिन इससे पहले नई दिल्ली ने इसके बारे में कभी इतना प्रचार नहीं किया था और ना ही माना था, लेकिन मोदी ने वॉशिंगटन और तेल अवीव के साम्राज्यवादी गैंगेस्टरों की शैली में अपनी इच्छानुसार अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के उल्लंघन के 'अधिकार' का दावा किया।
अमेरिका और चीन के बीच अभूतपूर्व रूप से बढ़ते तनाव ने कश्मीर क्षेत्र को एक नया वैश्विक रणनीतिक महत्व दे दिया है। भारत ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपेक), जोकि चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का एक प्रमुख अंग है, का कड़ा विरोध किया है और इसके बदले 'क़ानूनी कूटनीति' के औचित्य के तौर पर पूरे कश्मीर पर अपना दावा ज़ोरदार तरीक़ से दोहराया है। सीपेक के माध्यम से चीन पाकिस्तान के ग्वादर अरेबियन सी पोर्ट को पश्चिमी चीन तक रेल और पाइप लाइन के मार्फ़त जोड़ना चाहता है। अमेरिका समुद्री रास्तों को बंद करके चीनी अर्थव्यवस्था का गला घोंटना चाहता है और इसी से बचने के लिए चीन ऐसा कर रहा है।
दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के कुछ समय बाद ही अगस्त 2019 में मोदी ने जम्मू एंड कश्मीर के विशेष दर्जे को ख़त्म कर दिया जिसके तहत इस क्षेत्र को भारत में एक स्वायत्त राज्य का दर्जा हासिल था। यह संविधान का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन था। बीजेपी और हिंदू दक्षिणपंथ का यह लंबे समय से लक्ष्य रहा था। लेकिन कश्मीर के ख़िलाफ़ मोदी का तख़्तापलट सिर्फ इतने पर ही नहीं रुका, उन्होंने इसे विभाजित कर दिया और इसे केंद्र शासित क्षेत्र तक सीमित कर दिया ताकि यह केंद्र सरकार के सीधे नियंत्रण में आ सके। यह क़दम चीन और पाकिस्तान के ख़िलाफ़ अपने हाथ को और मजबूत करने के मक़सद से किया गया था। इसमें एक बात दूरदराज के लद्दाख क्षेत्र को अलग करना भी था, जिसकी सीमाएं चीन से मिलती हैं और इसे एक अलग केंद्र प्रशासित क्षेत्र बना दिया। इस तरह इसे पूरी तरह सेना के हाथ में दे दिया गया, जहां सेना सीमा पर बड़े पैमाने पर सैन्य आधारभूत ढांचे का निर्माण करने में जुटी हुई है।
मई-जून 2020 में भारत नियंत्रित लद्दाख और चीन के अक्साई चिन के बीच विवादित सीमा पर भारत और चीन की सेनाओं के बीच झड़प हुई थी। सीमा पर तनावपूर्ण गतिरोध की स्थिति पैदा हो गई, जिसमें भारत और चीन दोनों ने दुनिया के सबसे दुर्गम इलाकों और जलवायु में से एक में हजारों सैनिकों, तोपों और युद्धक विमानों की भारी तैनाती की। ट्रंप और बाइडन दोनों के शासन में अमेरिका ने अपने चीन विरोधी गठबंधन के जाल में भारत को और अधिक शामिल किया है। वॉशिंगटन ने सार्वजनिक रूप से भारत-चीन सीमा विवाद को चीन और उसके दक्षिण चीन सागर पड़ोसियों के बीच अमेरिका द्वारा भड़काए गए क्षेत्रीय विवादों से जोड़ा, और चीन को आक्रामक क़रार दिया, और पहली बार चीन-भारत सीमा विवाद पर अपना पक्ष रखते हुए कहा कि नई दिल्ली सही है।
अपनी हड़पाऊ महत्वाकांक्षा को हासिल करने में भारत कितना तैयार है और कितनी दूर जा सकता है और चीन विरोधी अपने गठबंधन को वॉशिंगटन और कितना फैलाता है ये आने वाले दिनों में और साफ़ हो जाएगा। पाकिस्तान की सरकार और इसका पूंजीपति वर्ग इस समय कई संकटों से जूझ रहा है और धुर दक्षिणपंथी मोदी सरकार हो इस बात का आंकलन कर रही हो सकती है कि वह अपने प्रतिद्वंद्वियों को कितना बड़ा झटका दे सकती है।
जो बात तय है, वो ये कि परमाणु हथियार संपन्न भारत और पाकिस्तान में कोई भी सैन्य टकराव जल्द ही हाथ से निकल सकता है और विनाशकारी हो सकता है और आशंका है कि इसमें अन्य शक्तियां भी शामिल हो जाएं।
ये भी तय है कि भारत और पाकिस्तान दोनों के पूंजीवादी सत्ताधारी कुलीन इस युद्ध संकट के मौका का फ़ायदा उठाते हुए साम्प्रदायिकता को हवा देंगे, मज़दूरों और मेहनतकशों के सामाजिक और लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला करेंगे और ऐसी प्रतिक्रियावादी नीतियों और योजनाओं को आगे बढ़ाएंगे जिन्हें पहले बहुत विस्फ़ोटक माना जाता था। इस संबंध में, यह बात रेखांकित करना महत्वपूर्ण है कि भारत कुछ समय से ये दावा करते हुए सिंधु जल संधि को लेकर असंतुष्टि का संकेत दे रहा था कि इससे भारत का आर्थिक विकास प्रभावित हो रहा है।