यह अनुवाद अंग्रेज़ी के मूल लेख Tens of millions of Indian defence ministry-owned company to acquire control of Colombo Dockyard का है जो 8 जुलाई 2025 को प्रकाशित हुआ था।
भारत के रक्षा मंत्रालय के मालिकाने वाली शिपबिल्डिंग कंपनी मज़गांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (एमडीएल) ने एलान किया है कि वह श्रीलंका की कोलंबो डॉकयार्ड में बहुलांश हिस्सेदारी खरीदने की प्रक्रिया में है।
इस सौदे के तहत एमडीएल को कोलंबो डॉकयार्ड (सीडी) में 51 प्रतिशत बहुलांश हिस्सेदारी मिल जाएगी, जो पहले जापान की ओनोमिची डॉकयार्ड के पास थी। यह सौदा 5.29 करोड़ अमेरिकी डॉलर में होगा। ओनोमिची ने पिछले साल नवंबर में वित्तीय संकट के चलते अपनी हिस्सेदारी बेचने का फैसला किया था। नियामकीय मंजूरी मिलने के बाद एमडीएल के साथ यह सौदा पूरा होने में लगभग चार से छह महीने लगेगा।
साल 1974 में स्थापित और कोलंबो बंदरगाह में स्थित यह डॉकयार्ड श्रीलंका का सबसे बड़ा शिपबिल्डिंग और मरम्मत केंद्र है। यहां व्यावसायिक और नौसैनिक जहाजों के निर्माण व मरम्मत का काम किया जाता है। जापान की ओनोमिची डॉकयार्ड का इसमें 1993 से ही बहुलांश शेयर था।
अपने नए निवेश की घोषणा करते हुए एमडीएल ने कहा कि इस अधिग्रहण से कंपनी को 'हिंद महासागर क्षेत्र में एक रणनीतिक बढ़त मिलेगी, जो एक अहम समुद्री मार्ग है।'
यह सौदा हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के प्रभाव को काउंटर करने के लिए, नई दिल्ली की रणनीतिक बढ़त का बड़ा विस्तार माना जा रहा है। श्रीलंका के लिए यह क़दम, भारत के रणनीतिक नेटवर्क में गहरी भागीदारी का संकेत है। ये भूलना नहीं चाहिए कि भारत, अमेरिका के साथ चीन के ख़िलाफ़ बढ़ती तैयारियों में एक अहम साझेदार है।
कोलंबो डॉकयार्ड को 2023 में 3.83 करोड़ अमेरिकी डॉलर का भारी नुकसान हुआ था। यह नुकसान श्रीलंकाई सरकार के लिए बड़ा संकट साबित हुआ, क्योंकि उसके पास कंपनी की 49 प्रतिशत हिस्सेदारी है। इसी वजह से श्रीलंका ने भारत की ओर रुख़ किया।
इंडियन एक्सप्रेस में 29 जून को प्रकाशित एक रिपोर्ट में भारतीय अधिकारियों के हवाले से बताया गया था, 'श्रीलंकाई सरकार ने भारतीय सरकार से अनुरोध किया था कि भारतीय निवेशक कोलंबो डॉकयार्ड में दिलचस्पी लें।' रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि दोनों देशों के अधिकारियों ने, 'श्रीलंका के सबसे बड़े शिपयार्ड के इस रणनीतिक सौदे को पूरा करने के लिए मिलकर कड़ी मेहनत की।'
हालांकि यह सौदा केवल व्यावसायिक नहीं है। दिसानायके सरकार का भारतीय निवेश को आमंत्रित करने का फैसला उसकी व्यापक विदेश नीति का हिस्सा है, जिसके तहत नई दिल्ली और अमेरिका के साथ संबंध को और मजबूत करना है।
दिसानायके ने पिछले दिसंबर में नई दिल्ली का दौरा किया था और मोदी सरकार के साथ ‘साझा भविष्य के लिए साझेदारी’ शीर्षक वाले 'संयुक्त दृष्टि समझौते' पर हस्ताक्षर किए थे। इसका मक़सद निवेश-आधारित विकास और आर्थिक साझेदारी के मार्फ़त संपर्क को बढ़ाना है।
मोदी के 4 से 6 अप्रैल के श्रीलंका दौरे के दौरान दोनों नेताओं ने 1.2 अरब अमेरिकी डॉलर के संयुक्त निवेश संबंधी कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे।
इनमें सबसे अहम था पांच साल का रक्षा सहयोग समझौता, जिसके तहत समुद्री सुरक्षा और आतंकवाद-रोधी अभियानों को मजबूत करने पर जोर दिया गया था। इसमें संयुक्त सैन्य अभ्यास, ख़ुफ़िया जानकारी साझा करना, प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण और उच्च स्तरीय आदान-प्रदान शामिल है।
समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद दिसानायके ने कहा, “भारत की सुरक्षा को कमज़ोर करने के लिए श्रीलंका की ज़मीन का इस्तेमाल किसी को भी नहीं करने दिया जाएगा।” जवाब में मोदी ने कहा, “हम मानते हैं कि हमारी सुरक्षा हित एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं… हमारी सुरक्षा एक दूसरे पर निर्भर और जुड़ी हुई है।”
एमडीएल 1963 से ही सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी के रूप में काम कर रही है, जो नौसैनिक और व्यावसायिक दोनों प्रकार के जहाज़ बनाती है। कंपनी की वेबसाइट के अनुसार, उसने 1960 से अब तक भारतीय नौसेना के लिए “30 युद्धपोत बनाए हैं, जिनमें एडवांस्ड डेस्ट्रॉयर से लेकर मिसाइल बोट तक शामिल हैं, साथ ही 8 नौसैनिक पनडुब्बियां भी तैयार की हैं।”
भारत और अमेरिका ने “मास्टर शिप रिपेयर एग्रीमेंट” (एमएसआरए) के ज़रिए अपनी सैन्य साझेदारी को और गहरा किया है। यह समझौता छूट देता है कि अमेरिकी नौसेना अपने मिलिटरी सी-लिफ्ट कमांड जहाज़ों की मरम्मत भारतीय शिपयार्ड्स में करा सके। इस समझौते के तहत लार्सन एंड टुब्रो के कट्टुपल्ली यार्ड, मज़गांव डॉक शिपबिल्डर्स और कोचीन शिपयार्ड आते हैं।
कई अमेरिकी जहाज़ों की मरम्मत पहले ही भारत में की जा चुकी है। यह समझौता, हिंद प्रशांत क्षेत्र में सामरिक साझेदारी के ज़रिए बढ़ती सैन्य गतिविधियों और साम्राज्यवादी हितों के विस्तार को दिखाता है। अब कोलंबो डॉकयार्ड भी इस नेटवर्क का हिस्सा बन सकता है।
श्रीलंका का भौगोलिक स्थान बहुत महत्वपूर्ण है, यह यूरोप, पश्चिम एशिया और अफ्रीका को पूर्वी एशिया, विशेष रूप से चीन से जोड़ने वाले अहम समुद्री मार्गों के पास है, और श्रीलंका को चीन के ख़िलाफ़ पेंटागन की युद्ध योजनाओं की अहम कड़ी बना देता है।
लगभग दो दशकों से श्रीलंका पर एक तरफ़ अमेरिका और भारत जबकि दूसरी तरफ़ चीन का दबाव रहा है कि वह रणनीतिक तौर पर उनके साथ खड़ा हो।
चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की वजह से श्रीलंका के समुद्री बुनियादी ढांचे में बड़ा निवेश हुआ, ख़ासकर कोलंबो पोर्ट सिटी, कोलंबो साउथ कंटेनर टर्मिनल और हंबनटोटा बंदरगाह में।
कोलंबो बंदरगाह के कोलंबो वेस्ट इंटरनेशनल कंटेनर टर्मिनल की 51 प्रतिशत हिस्सेदारी भारतीय अरबपति अडानी ने ख़रीदी है। यह 70 से 80 करोड़ अमेरिकी डॉलर की परियोजना सालाना 30 लाख से अधिक कंटेनरों का प्रबंधन करती है। यही नहीं भारत, त्रिंकोमाली ऑयल टैंक फ़ार्म का फिर से विकास कर रहा है, जिसके बारे में कहा गया है कि इससे 'श्रीलंका की ऊर्जा सुरक्षा और समुद्री क्षमताओं में ख़ासी बढ़ोत्तरी होगी।'
श्रीलंका में नई दिल्ली के प्रभाव को और विस्तार देने की मुहिम के तहत कानफ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) का एक उच्चस्तरीय कारोबारी प्रतिनिधिमंडल 29 जून से 2 जुलाई तक कोलंबो दौरे पर था। इस दल का नेतृत्व संगठन के अध्यक्ष संजीव पुरी ने किया।
प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति दिसानायके से मुलाकात की। उन्हें विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने की कोलंबो की कोशिशों के बारे में जानकारी दी गई। बताया जाता है कि पुरी ने दिसानायके से कहा कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए श्रीलंका को एक 'मजबूत सरकार' की ज़रूरत है।
नई दिल्ली ने श्रीलंका को 2022 के अभूतपूर्व आर्थिक संकट और उसके बाद राजपक्षे सरकार को सत्ता से हटाने वाले जनविद्रोह के बाद 4 अरब अमेरिकी डॉलर की वित्तीय सहायता देने की घोषणा की थी। भारत ने श्रीलंका को 3 अरब अमेरिकी डॉलर का अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) बेलआउट कर्ज़ दिलाने में भी मदद की थी। इसके लिए भारत ने वित्तीय आश्वासन दिए और कर्ज़ पुनर्गठन प्रक्रिया में मदद की।
श्रीलंका के शासक तबकों का हर धड़ा यानी- यूनाइटेड नेशनल पार्टी, समागी जन बलवेगया, दिसानायके की जनता विमुक्ति पेरामुना के नेतृत्व वाली नेशनल पीपुल्स पॉवर सरकार और तमिल पार्टियां- ये सभी अमेरिका और उसके पार्टनर भारत के रणनीतिक हितों में श्रीलंका को शामिल करने का समर्थन करते हैं। वे सभी आईएमएफ़ के कठोर आर्थिक सुधार कार्यक्रम के पक्षधर हैं।
असल में राष्ट्रपति दिसानायके वही अमेरिका-समर्थक विदेश नीति और आईएमएफ़ निर्देशित कठोर आर्थिक कार्यक्रम आगे बढ़ा रहे हैं, जिसे पहले विक्रमसिंघे सरकार चला रही थी। जनता विमुक्ति पेरामुना और खुद दिसानायके बहुत पहले ही अपनी पुरानी साम्राज्यवाद विरोधी राजनीति को छोड़ चुके हैं।