यह अनुवाद अंग्रेज़ी के मूल लेख Leaders of China, Russia and India gather for Shanghai Cooperation Organisation summit है जो को 2 सितंबर 2025 को प्रकाशित हुआ था।
शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के नेताओं की दो दिन की बैठक कल चीन के शहर तिआंजिन में खत्म हुई। मेज़बान, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 'हेजेमोनिज़्म और पवर पॉलिटिक्स' के बरक्स बहुध्रुवीय दुनिया की अपनी सोच सामने रखी। यह अमेरिका पर सीधा तंज़ माना गया।
इस संगठन की शुरुआत 1996 में 'शंघाई फ़ाइव' के तौर पर हुई थी, जब चीन और रूस ने कज़ाख़स्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान के साथ मिलकर सोवियत संघ के विघटन के बाद मध्य एशिया में अमेरिकी हस्तक्षेपों का मुकाबला करने के लिए इसे बनाया था। एससीओ साल 2001 में औपचारिक रूप से स्थापित हुआ और इसमें उज़्बेकिस्तान को भी शामिल किया गया। इसके बाद भारत, पाकिस्तान, बेलारूस और ईरान को पूर्ण सदस्य बनाया गया। वहीं, सऊदी अरब, तुर्की और मिस्र समेत 14 अन्य देश भी डॉयलॉग पार्टनर यानी संवाद साझेदार हैं।
संगठन के ताज़ा शिखर सम्मेलन में मौजूद 20 नेताओं में कई नाम थे, लेकिन सात साल बाद चीन पहुंचे भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी ने वॉशिंगटन में चिंता पैदा कर दी। अमेरिकी साम्राज्यवाद ने लंबे समय से भारत के साथ आर्थिक और रणनीतिक रिश्ते मज़बूत किए हैं, क्योंकि वह चीन को अपनी वैश्विक दबंगई के लिए सबसे बड़ा ख़तरा मानता है और उसके ख़िलाफ़ युद्ध की तैयारी तेज़ कर रहा है।
मोदी ने पहले संकेत दिया था कि वह संसद की कार्यवाही के चलते सम्मेलन में शामिल नहीं होंगे, जिसे चीन को सीधा संदेश माना गया था। हालांकि इस बीच संबंधों में कुछ सुधार शुरू हो चुका था। साल 2020 में सीमा पर हुई झड़पों में 20 भारतीय और 4 चीनी सैनिकों की मौत के बाद दोनों के बीच रिश्ते ठंडे पड़ गए थे।
इसी बीच, रूस से तेल ख़रीदने को लेकर ट्रंप प्रशासन से टकराव के दौरान मोदी ने अचानक अपने कार्यक्रम बदल दिए। अगस्त की शुरुआत में ट्रंप ने भारत पर दबाव बनाने के लिए अमेरिकी बाज़ार में भारतीय निर्यात पर टैरिफ़ को दोगुना कर 50 प्रतिशत तक कर दिया। मोदी पीछे नहीं हटे और अतिरिक्त 25 प्रतिशत शुल्क बढ़ोतरी पिछले हफ़्ते लागू हो गई। रॉयटर्स ने रिपोर्ट किया कि भारत रूस से तेल ख़रीद को 10 से 20 प्रतिशत तक और बढ़ाने की योजना बना रहा है।
ट्रंप भारत और चीन दोनों पर दबाव डाल रहे थे कि वे रूस से तेल आयात बंद कर दें ताकि यूक्रेन की मौजूदा जंग में संघर्ष विराम को लेकर चल रही वार्ताओं में रूस को रियायतें दने के लिए मजबूर किया जा सके। इस तथ्य से कि ट्रंप ने इसी तरह का टैरिफ़ दंड चीन पर नहीं लगाया था, जबकि भारत और अमेरिका के बीच लंबे समय से रणनीतिक साझेदारी चल रही है और यह मोदी के लिए हजम होना मुश्किल था।
इस हफ़्ते मोदी की चीन मौजूदगी, शी जिनपिंग के लिए एक कूटनीतिक जीत साबित हुई। रविवार को शी जिनपिंग ने गर्मजोशी से मोदी का स्वागत किया और कहा कि सीमा मुद्दा को बाकी के संबंधों को परिभाषित नहीं करने देना चाहिए, दोनों देश प्रतिस्पर्धी नहीं बल्कि विकास साझेदार होने चाहिए। मोदी ने एलान किया कि अब उनके बीच 'शांति और स्थिरता का माहौल' है।
पिछले साल अक्तूबर में मोदी और शी रूस में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान मिले थे, जब सीमा गश्त समझौता हुआ था। हाल के हफ़्तों में रिश्तों में और सुधार हुआ है, सीधी उड़ानें दोबारा शुरू हुईं और चीन ने भारत पर लगाए निर्यात प्रतिबंधों को हटाया, जिनमें रेयर अर्थ मटीरियल्स भी शामिल थे। कल, मोदी के अनुसार, दोनों नेताओं ने चीन के साथ भारत के 99 अरब डॉलर के भारी व्यापार घाटे को कम किए जाने चर्चा की।
शी जिनपिंग ने एससीओ शिखर सम्मेलन का इस्तेमाल ये दिखाने के लिए किया कि चीन अमेरिकी कोशिशों को धता दे सकता है, जो उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने और सैन्य घेराबंदी में लेने के लिए की जा रही हैं। उन्होंने कहा, 'वैश्विक शासन एक नए मोड़ पर पहुंच गया है।'
अमेरिका और ट्रंप पर सीधा हमला करते हुए, शी जिनपिंग ने 'धौंस जमाने वाली प्रवृत्ति' की आलोचना की और कहा, 'कुछ देशों के घरेलू नियम दूसरों पर नहीं थोपे जाने चाहिए।'
बैठक में शी के प्रस्ताव पर नए एससीओ विकास बैंक को मंज़ूरी दी गई, ताकि वैश्विक व्यापार और वित्त व्यवस्था में अमेरिकी डॉलर के दबदबे को चुनौती दी जा सके। चीन इस बैंकिंग समूह को 10 अरब युआन (1.4 अरब डॉलर) का क़र्ज़ और इस साल सदस्य देशों को 2 अरब युआन की मदद देगा। चीन एससीओ देशों के लिए एक आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस सहयोग केंद्र बनाने की भी योजना बना रहा है।
पुतिन ने भी इस मौके पर 'सच्चे बहुपक्षवाद' की वकालत की ताकि यूरेशिया में 'एक नई स्थिरता और सुरक्षा प्रणाली' की नींव रखी जा सके। अमेरिका और नेटो पर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, 'यह सुरक्षा प्रणाली यूरो-केंद्रित और यूरो-अटलांटिक मॉडलों के विपरीत होगी, सचमुच संतुलित होगी और किसी एक देश को दूसरों की क़ीमत पर अपनी सुरक्षा सुनिश्चित नहीं करने देगी।'
पुतिन ने यूक्रेन युद्ध पर अमेरिका और नेटो पर निशाना साधते हुए कहा कि यह 'रूस के यूक्रेन पर हमले से नहीं, बल्कि 2014 में यूक्रेन में पश्चिम समर्थित तख़्तापलट के कारण शुरू हुआ।' उन्होंने चीन और भारत के प्रयासों की सराहना की और कहा कि वे अलास्का में पिछले महीने ट्रंप के साथ हुई बातचीत का ब्यौरा एससीओ सदस्यों को द्विपक्षीय बैठकों में देंगे।
चीन और भारत दोनों ने युद्ध ख़त्म करने की अपील तो की, लेकिन 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की निंदा से साफ़ इनकार किया है।
सम्मेलन में मेल-जोल और दोस्ती का माहौल दिखाने की कोशिशें की गईं। मोदी और पुतिन कल की बैठक में पुतिन की गाड़ी में साथ पहुंचे और लंबे वार्तालाप के बाद शी जिनपिंग के एक घेरे में साथ हाथ पकड़कर तस्वीर खिंचवाई। भारत और रूस के नेताओं ने अपनी चर्चाओं की खुलकर तारीफ़ भी की।
वॉशिंगटन पोस्ट के एक संपादकीय में लिखा गया, 'भारत पर ट्रंप का दबाव उल्टा पड़ सकता है।' इसमें अमेरिकी हलकों की चिंता ज़ाहिर की गई कि व्हाइट हाउस का भारी टैरिफ़ लगाकर नई दिल्ली को झुकाने और रूस से पुराने रिश्ते तोड़ने की कोशिश जैसे कच्चे प्रयास नाकाम रहे।
लेख में कहा गया कि, 'बीजिंग अभी भी वॉशिंगटन का सबसे ताक़तवर प्रतिद्वंद्वी है। आर्थिक तौर पर देखें तो चीन पहले से कहीं ज़्यादा मज़बूत विरोधी है, सोवियत संघ से भी ज़्यादा।'
और फिर अख़बार ने निष्कर्ष निकाला, 'बातचीत की मेज पर पैसे को दांत से पकड़ने का ट्रंप का रवैया रहा है। व्यापार में भी यह ग़लती है। सद्भावना की भी अहमियत होती है। ट्रंप की चीन के साथ बातचीत उतनी ही कठिन हो सकती है जितनी वह अपने सहयोगियों के साथ कर रहे हैं। शायद तभी उन्हें बेहतर रिश्तों की अहमियत समझ आए।'
लेकिन ट्रंप प्रशासन ने ऐसी कोई समझदारी नहीं दिखाई। अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने एससीओ शिखर सम्मेलन को 'दिखावटी' करार दिया और भारत व चीन को 'ग़लत खिलाड़ी' बताया जो 'रूस की युद्ध मशीन को ताक़त दे रहे हैं।' ट्रंप के व्यापार सलाहकार पीटर नवरो ने भारत को 'अहंकारी' कहा और आरोप लगाया कि 'रूसी तेल व्यापार से भारतीय जनता की क़ीमत पर ब्राह्मण फ़ायदा उठा रहे हैं।' उन्होंने ग़ुस्से में इस युद्ध को 'मोदी का युद्ध' कह डाला।
मोदी का अमेरिका से तुरंत रिश्ते तोड़ने का कोई इरादा नहीं है। एससीओ शिखर सम्मेलन जाते समय वे टोक्यो में रुके और क्वाड (जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ सैन्य गठबंधननुमा समझौते) की तारीफ़ की। निक्केई एशिया से बात करते हुए मोदी ने कहा, 'जीवंत लोकतंत्रों, खुले अर्थतंत्रों और बहुलतावादी समाजों के रूप में हम मुक्त, खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत के लिए प्रतिबद्ध हैं', असल में यह सीधा संदेश 'सत्तावादी' चीन के ख़िलाफ़ था।
एससीओ के अन्य सदस्य देशों की तरह, चीन और रूस समेत भारत भी अपनी आर्थिक और रणनीतिक हितों को आगे बढ़ा रहा है। यह सब ऐसे समय हो रहा है जब ट्रंप की व्यापारिक नीतियों से अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संकट और भू-राजनीतिक तनाव बढ़ रहे हैं और संभावित विश्व युद्ध का ख़तरा मंडरा रहा है। घरेलू स्तर पर सामाजिक तनाव और तमाम अनसुलझे विवादों में उलझे इनमें कोई भी देश, वैश्विक स्तर पर भड़कती साम्राज्यवादी हिंसा और पूंजीवादी के गहराते संकट का कोई प्रगतिशील हल नहीं पेश कर पा रहा है।