यह हिंदी अनुवाद अंग्रेज़ी के मूल लेख Growing popular unrest in India’s Ladakh region as New Delhi makes it a forward base for war with China and Pakistan का है, जो 29 अक्टूबर 2025 को प्रकाशित हुआ था।
रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण लद्दाख क्षेत्र में हाल ही में भारतीय सुरक्षा बलों के हाथों चार निहत्थे प्रदर्शनकारियों की हत्या और 150 अन्य लोगों के घायल होने के मद्देनजर, भारत की हिंदू-वर्चस्ववादी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार ने स्थानीय नेताओं के साथ देर से ही सही, बातचीत शुरू कर दी है।
24 सितंबर को सुरक्षा बलों ने क्षेत्र में भारतीय केंद्र सरकार के दमनकारी शासन का विरोध करने वाले और लद्दाख को राज्य का दर्जा देने की मांग करने वाले प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी की थी।
भारत का सबसे उत्तरी क्षेत्र, लद्दाख, नई दिल्ली के प्रमुख भू-रणनीतिक प्रतिद्वंद्वियों, चीन और पाकिस्तान, दोनों की सीमा से लगा हुआ है और उत्तरी सीमा को लेकर बीजिंग और इस्लामाबाद के साथ नई दिल्ली के चल रहे विवादों का केंद्र भी है।
पाकिस्तान दावा करता है कि लद्दाख के हिस्सों पर उसका वाज़िब हक़ है, जो कि लगभग उस पूरे क्षेत्र पर उसके व्यापक दावे का हिस्सा है जो कभी मुस्लिम बहुल ब्रिटिश भारतीय रियासत जम्मू और कश्मीर का हिस्सा था। वहीं, बीजिंग का दावा है कि लद्दाख के जिन हिस्सों पर पाकिस्तान का दावा नहीं है, वे चीनी क्षेत्र हैं।
उधर, नई दिल्ली के अपने प्रति दावे हैं। इसमें पाकिस्तान के कब्ज़े वाला आज़ाद कश्मीर और इससे भी आगे उत्तरी गिलगित-बाल्टिस्तान भी भारत का हिस्सा है और लद्दाख के पास, चीनी क्षेत्र- लगभग 38,000 किलोमीटर का अक्साई चिन का पूरा हिस्सा भी उसका है।
लद्दाख और अक्साई चिन को बांटने वाली विवादित वास्तविक नियंत्रण रेखा (लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रो-एलएसी) पर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच 2020 में झड़प हुई थी, जिसके बाद दोनों तरफ़ से हज़ारों सैनिक, टैंक और लड़ाकू विमान तैनात कर दिए गए, जिससे सीमा पर तनाव बढ़ गया और हाल ही में इस तनाव को कम करने की प्रक्रिया शुरू हुई है।
24 सितंबर के प्रदर्शनों को हिंसक तरीक़े से दबाने के दो दिन बाद, नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार ने मुख्य आयोजनकर्ता, राजनीतिक और पर्यावरण अधिकार कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून (एनएसए) के तहत गिरफ़्तार कर लिया, जो कि ऐसा क़ानून है जो भारतीय राज्य को राजनीतिक विरोधियों को बिना किसी आरोप के एक साल तक हिरासत में रखने का अधिकार देता है।
हालांकि वांगचुक ने लगातार धुर दक्षिणपंथी बीजेपी सरकार के साथ काम करने की बार बार इच्छा दिखाई है, लेकिन प्रशासन ने दावा किया कि भारत में अशांति फैलाने के लिए विदेशी ताक़तों के साथ वो काम कर रहे हैं। सबूत के तौर पर, उसने पाकिस्तान में जलवायु परिवर्तन और हिमालयी ग्लेशियरों के गलने पर हुए सम्मेलन के बारे में सवाल उठाए।
एक तरफ़ वांगचुक को जेल में डाले रखा गया है, उधर, बीजेपी सरकार अलग राज्य का दर्ज़ा देने की मांग का समर्थन करने वाली लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) के साथ बातचीत को फिर से बहाल करने पर सहमत हो गई है।
सभी संकेत हैं कि मोदी सरकार की मंशा है कि बातचीत को लंबा खींचा जाए ताकि एलएबी और केडीए की भारतीय संविधान की छठी अनुसूचि के तहत राज्य के दर्जे़ की मांग को कमज़ोर किया जा सके, जो पारंपरिक रूप से जनजातीय समूहों द्वारा बसाए गए क्षेत्रों को एक निश्चित सीमा तक स्वायत्तता प्रदान करता है।
नई दिल्ली लद्दाख को राज्य का दर्ज़ा देने से इनकार करती है क्योंकि इससे केंद्र सरकार की इस रणनीतिक क्षेत्र पर और इसकी शक्ति पर नियंत्रण कम हो जाएगा। यह नियंत्रण मनमर्ज़ी के मुताबिक़ जनजातीय ज़मीनों को भारतीय सेना द्वारा ज़ब्त किए जाने की अनुमति देता है।
एलएबी और केडीए चुने हुए निकाय नहीं हैं बल्कि यह विभिन्न पूंजीवादी जनजातीय, सिविल सोसाइटी और धार्मिक ग्रुपों के प्रतिनधियों से बनी है। फिर भी, ऐसे हालात में वे लद्दाख के वास्तविक राजनीतिक प्रतिनिधि बन गए हैं, जब भाजपा सरकार ने लद्दाख में क्षेत्रीय विधानसभा के लिए चुनाव कराने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है (जो कि अन्य सभी केंद्र शासित प्रदेशों में सामान्य बात है), राज्य का दर्ज़ा देने की तो बात ही छोड़ दीजिए।
राज्य के दर्जे़ की यह मांग 2019 में लद्दाख को भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर (जेएंडके) से अलग करने से पहले की है, जोकि एक संवैधानिक तख़्तापलट का हिस्सा था जिसमें मोदी सरकार ने भारत के एकमात्र मुस्लिम बहुल राज्य से उसकी विशेष स्वायत्तता का दर्ज़ा छीन लिया था और इसे और लद्दाख दोनों को केंद्र शासित प्रदेशों में बदल दिया था।
तबसे ही, लद्दाख का प्रशासन प्रभावी तरीक़े से मोदी के दाहिने हाथ अमित शाह की अगुवाई वाले गृह मंत्रालय के हाथों में चला गया है। लद्दाख में क़रीब तीन लाख लोग रहते हैं और जम्मू कश्मीर में एक करोड़ 30 लाख रहते हैं। इन दोनों का प्रशासन केंद्रीय गृह मंत्रालय के हाथों में है।
हालांकि बीजेपी सरकार विभाजित जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्ज़ा बहाल करने के अपने वादे से मुकर गई है, लेकिन आख़िरकार उसे क्षेत्रीय विधानसभा के लिए चुनाव की अनुमति देने के लिए मजबूर होना पड़ा - ताकि केवल शासक वर्ग की शिकायतों को शांत किया जा सके क्योंकि उसकी करतूत कश्मीर पर भारतीय शासन को स्थिर करने में विफल रही है।
व्यवहार में, हालांकि दोनों इलाक़ों के साथ जिस तरह मोदी सरकार बर्ताव करती है उसमें बहुत अंतर नहीं है। दोनों जगह सेना और सुरक्षा बलों को खुली छूट है और दमनकारी शासन और व्यापक आर्थिक मुश्किलों के ख़िलाफ़ शांतिपूर्ण प्रदर्शन के दौरान भी राज्य दमन, इंटरनेट शटडाउन और कर्फ़्यू आम बात है।
लद्दाख राज्य की मांग दरअसल स्थानीय अभिजात्य वर्ग के हितों और आकांक्षाओं को दर्शाती है। वे इसका इस्तेमाल, इस इलाक़े पर मोदी सरकार के दमनकारी शासन को लेकर फैले व्यापक ग़ुस्से, ख़ासकर नौजवानों के ग़ुस्से से ध्यान भटकाने के रूप में कर रहे हैं। लद्दाख में सेना पर बहुत पैसा ख़र्च हो रहा है, सैन्य बेस बनाए जा रहे हैं, किलेबंदी की जा रही है और यातयात के लिए संपर्क मार्ग बनाए जा रहे हैं, जबकि स्थानीय युवा नौकरियों की कमी और सुविधाओं के अभाव से जूझ रहे हैं।
लगातार प्रदर्शन के बाद बीजेपी सरकार 2023 की शुरुआत में एलएबी औ केडीए से बातचीत के तैयार हुई थी, जोकि क्रमशः लेह और कारगिल की प्रतिनिधि सभाएं हैं। लेह, ग्रीष्म राजधानी है जबकि कारगिल सर्दियों की राजधानी है।
जब बातचीत रुक गई, तो वांगचुक और 14 अन्य लोगों ने बीते 10 सितंबर को 15 दिन की भूख हड़ताल शुरू की ताकि राज्य के दर्ज़े की अपनी मांग पर दबाव डाला जा सके।
24 सितंबर को दो बुज़ुर्ग अनशनकारियों को गंभीर हालत में हास्पीटल में भर्ती कराना पड़ा। इसके जवाब में युवा संगठनों ने प्रदर्शन का आह्वान किया और पूरी तरह हड़ताल की अपील की। लेह में प्रदर्शनकारियों ने बीजेपी के लद्दाख क्षेत्रीय कार्यालय को आग के हवाले कर दिया।
वांगचुक और उनके साथियों ने तत्काल इन प्रदर्शनों से खुद को अलग कर लिया और इसमें किसी भी तरह की संलिप्तता से इनकार कर किया और शांति की अपील की।
लेकिन बदले की मंशा से मोदी सरकार ने आनन फानन में दर्जनों सुरक्षा बलों को वहां तैनात कर दिया, जिन्होंने बिना चेतावनी के प्रदर्शनकारियों पर फ़ायरिंग की, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई जबकि 150 से अधिक लोग घायल हो गए।
बाद में सुरक्षा बलों ने दावा किया कि उन्होंने 'आत्मरक्षा में फ़ायरिंग' की थी, जोकि निहत्थे प्रदर्शनकारियों की हत्याओं को सही ठहराने का प्रशासन का एक आम तरीक़ा होता है।
भूख हड़ताल के आयोजकों में से एक पद्मा स्टैनज़िन ने 25 सितंबर को बीबीसी को बताया था कि 'उनका आंदोलन हमेशा से शांतिपूर्ण रहा है और उन्हें नहीं पता था कि यह इस तरह का मोड़ ले लेगा।'
लद्दाख में आम लोगों की जीवन-स्थितियां बेहद ख़राब हैं। विश्वविद्यालय स्नातकों के लिए आधिकारिक बेरोज़गारी दर 39.6 प्रतिशत है, जो राष्ट्रीय 12.4 प्रतिशत के औसत से तीन गुना ज़्यादा है।
इसके बावजूद, मोदी सरकार ने 2022 से 5,000 सरकारी नौकरियां खाली छोड़ रखी हैं। जलवायु परिवर्तन से कृषि और पशुपालन को भी ख़तरा है, जो पर्यटन के अलावा लद्दाख की मुख्य आर्थिक रीढ़ है। इन हालात ने सत्तारूढ़ बीजेपी के ख़िलाफ़ व्यापक नफ़रत और विरोध को हवा दी है, यही वजह है कि निराश और अलग-थलग पड़े युवाओं ने लेह स्थित बीजेपी कार्यालय में आग लगा दी।
वांगचुक एक निम्न-बुर्जुआ राजनीतिक कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने कभी भी मोदी सरकार और भारतीय शासक वर्ग के व्यापक हड़पाऊ भू-रणनीतिक एजेंडे की आलोचना नहीं की है, जिसकी शुरुआत चीन-विरोधी भारत-अमेरिका वैश्विक रणनीतिक साझेदारी से हुई है।
उन्होंने 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से विशेष संवैधानिक दर्ज़ा छीनने के लिए मोदी और उनकी सरकार के कसीदे पढ़े थे, जो कि रात के अंधेरे में किया गया क़दम था और भारत के संविधान का घोर उल्लंघन था।
उसी रात जम्मू-कश्मीर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए और सैकड़ों कश्मीरियों को हिंसक तरीक़े से गिरफ़्तार कर लिया गया, जिसके बाद वांगचुक ने मोदी सरकार की सराहना की।
उन्होंने अपने एक्स (ट्विटर) अकाउंट पर लिखा, 'लद्दाख के लंबे समय से चले आ रहे सपने को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री जी का धन्यवाद।'
गिरफ़्तारी से पहले, वांगचुक के बीजेपी और भारतीय सेना के साथ मधुर संबंध थे। वह लद्दाख में बीजेपी के प्रचार अभियानों में नज़र आ चुके हैं और बीजेपी के नेतृत्व वाली अन्य राज्य सरकारों ने उनसे शैक्षणिक मामलों में सलाहें ली हैं।
इसके बावजूद, वांगचुक- सरकार और सुरक्षा बलों की तमाम लोकतंत्र-विरोधी साज़िशों का शिकार हो रहे हैं। उन्हें 26 सितंबर को भारत के कठोर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ़्तार कर लिया गया और उनके घर से 1,600 किलोमीटर दूर राजस्थान के जोधपुर की एक जेल में भेज दिया गया।
वांगचुक की पत्नी गीतांजलि अंगमो ने 7 अक्टूबर को अल जज़ीरा को बताया कि सिर्फ़ एक महीने में, जिस प्रशासन ने उन्हें सम्मानित किया था, वही अब उन्हें 'राष्ट्र-विरोधी' बता रहा है। उन्होंने कहा कि यह उन्हें चुप कराने और डराने के लिए किया जा रहा है।
कश्मीर के ख़िलाफ़ मोदी का 2019 का संवैधानिक तख़्तापलट और भारत के रणनीतिक उद्देश्य
जम्मू और कश्मीर के विशेष संवैधानिक दर्जे़ (अनुच्छेद 370) को हटाना, लंबे समय से हिंदू दक्षिणपंथियों की मांग रही है और 1950 के दशक की शुरुआत से ही भारत को एक हिंदू राष्ट्र या हिंदू राज्य में बदलने के उनके कार्यक्रम का एक प्रमुख तत्व रहा है, जहाँ मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों को हिंदू वर्चस्व के आगे झुकना होगा।
हालाँकि, मोदी का 2019 का संवैधानिक तख़्तापलट और जहां तक लद्दाख से इसका संबंध है, उसके पीछे भू-रणनीतिक मक़सद, मुख्य कारण थे।
लद्दाख, चीन और पाकिस्तान दोनों के साथ भारत के कई युद्धों और सीमा संघर्षों का केंद्र रहा है, जिसमें 1999 का कारगिल युद्ध भी शामिल है जो नई दिल्ली और इस्लामाबाद ने सियाचिन ग्लेशियर पर लड़ा था।
अगस्त 2019 में लद्दाख को एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने के साथ, मोदी सरकार और सेना ने लद्दाख में अपने सैन्य निर्माण अभियान का बड़े पैमाने पर विस्तार किया, जिसमें 5,000 करोड़ रुपये या 600 मिलियन डॉलर से अधिक का निवेश किया गया।
इसके बाद हुए भारत-चीन सीमा संघर्ष, साफ़ तौर पर इस क्षेत्र में भारतीय सैन्य गतिविधियों में वृद्धि और इसे लेकर चीनी आशंकाओं से जुड़े थे। लद्दाख अक्साई चिन से सटा हुआ है जो चीन के स्वायत्त शिनजियांग और तिब्बत क्षेत्रों को भौगोलिक और रणनीतिक रूप से सड़क और रेल संपर्क के माध्यम से जोड़ता है। लद्दाख, गिलगित-बाल्टिस्तान के भी निकट है, जहाँ से होकर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा गुजरता है।
लद्दाख के युवाओं की आर्थिक स्थिति ख़राब होने के कारण, उन्हें पाकिस्तान और चीन के ख़िलाफ़ भविष्य की जंगों में हथियार के रूप में इस्तेमाल करने के लिए सेना में भर्ती किया जा रहा है। भारतीय उच्च कमान उन्हें महत्व देता है क्योंकि स्थानीय निवासी होने के नाते उन्हें पहाड़ी इलाकों और कठोर मौसम की स्थिति का गहन ज्ञान है, जो इस इलाक़े में जंग को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं।
भारत भर में सशस्त्र बलों में प्रति व्यक्ति भर्ती लद्दाख में सबसे अधिक है। भारतीय सेना स्थानीय लोगों पर इतनी निर्भर है कि उसने उन्हें 300 से अधिक वीरता पुरस्कारों से सम्मानित किया है।
इसलिए भारतीय सेना के भीतर गहरी चिंता है कि लद्दाख के लोगों का अलगाव. उसकी प्रभावशीलता पर ख़तरनाक प्रभाव डाल सकता है।
लद्दाख में सेवा दे चुके एक पूर्व भारतीय सेना कमांडर ने फ्रंटलाइन पत्रिका को बताया, 'अगर कश्मीर में अशांति है, तो पाकिस्तान इसका फ़ायदा उठाएगा। यही बात लद्दाख पर भी लागू होती है। अगर यहां अशांति है, तो चीन निश्चित रूप से इसका फ़ायदा उठाने की कोशिश करेगा।'
उन्होंने आगे चेतावनी दी, 'अगर तनाव बढ़ता रहा, तो पाकिस्तान अंततः अपना ध्यान यहाँ भी केंद्रित करने की कोशिश कर सकता है। शांति के समय में भी, देशों के बीच प्रतिस्पर्धात्मक और आर्थिक संघर्ष हमेशा बने रहते हैं और रक्षा के नज़रिये से, लद्दाख में ऐसी अस्थिरता सबसे ख़तरनाक परिदृश्यों में से एक है।'
