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श्रीलंकाः चक्रवाती तूफ़ान दित्वाह से 330 लोगों की मौत, लाखों लोग प्रभावित

यह हिंदी अनुवाद अंग्रेज़ी के मूल लेख Sri Lanka: Over 330 dead from Cyclone Ditwah, hundreds of thousands impacted का है जो एक दिसंबर 2025 को प्रकाशित हुआ था।

29 नवंबर, 2025 को बाढ़ के पानी में डूबी हुई कोलंबो की एक सड़क।

श्रीलंका में दशकों में सबसे भीषण आपदाओं में से एक चक्रवाती तूफ़ान दित्वाह ने रविवार को 334 से अधिक लोगों को मार डाला और इस द्वीप पर दस लाख से अधिक लोगों को प्रभावित किया। अभी भी 370 लोग लापता हैं और राहत एवं बचाव कार्य जारी है, लेकिन आने वाले दिनों में मरने वालों की संख्या और बढ़ने वाली है।

चक्रवाती तूफ़ान ने पूरे देश में तबाही मचाई है, विनाशाकारी बाढ़ को पैदा किया है और बड़ी संख्या में भूस्खलन हुए हैं जिनकी वजह से गांव के गांव बह गए और परिवार ज़िंदा दफ़न हो गए ख़ासकर सबसे प्रभावित केंद्रीय प्रांत में.

25 ज़िलों के 120,000 से अधिक लोगों को 919 शेल्टरों में पनाह लेनी पड़ी है। मौसम विभाग और आपदा प्रबंधन केंद्र (डीएमसी) के अनुसार, सबसे अधिक तबाही 20 ज़िलों में हुई है। मौसम विभाग की रिपोर्ट बताती है कि 3,09,607 परिवारों के 11,18,929 लोग सीधे तौर पर प्रभावित हुए हैं।

देश के बीचोबीच स्थित ऊपरी इलाक़ों में भारी बारिश के कारण ढलानें अस्थिर हो गईं और घातक भूस्खलनों का कारण बनीं। जब दित्वाह देश के अंदरूनी हिस्सों में पहुंचा, तो कुछ इलाक़ों में 500 मिलीमीटर से भी अधिक बारिश दर्ज की गई। उफनते जलाशय और नदियों में पानी का स्तर 10 से 20 फ़ुट ऊंचा उठ गया था, इससे वहां के निवासियों को बचने के लिए पर्याप्त समय भी नहीं मिला और पूर्व चेतावनी तंत्र की पूरी तरह ग़ैरमौजूदगी को इस आपदा ने खोल कर रख दिया।

एक सबसे त्रासदीपूर्ण घटना, 27 नवंबर की रात को कैंडी ज़िले के गैमपोला के बाहरी हिस्से में कुडामाके में हुई, जहां 13 फ़ुट ऊंची पानी की दीवार उठी और उसने 100 परिवारों वाले एक गांव को लील लिया। इसमें 66 लोग मारे गए, जबकि बहुत से लोग अभी भी लापता हैं।

कई ज़िलों के पूरे कस्बे पानी में डूब गए हैं, प्रमुख पुल बह गए हैं और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा बर्बाद हो गया है। भूस्खलन के कारण सैकड़ों सड़कें और रेल लाइनें नष्ट हो गई हैं या बंद हो गई हैं, जिससे बचाव कार्य बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। बाढ़ प्रभावित कई इलाकों तक अब केवल नाव या सेना के हेलीकॉप्टर से ही पहुँचा जा सकता है।

30 नवंबर, 2025 को श्रीलंका के गम्पाहा की सड़कें, एक सरकारी अस्पताल के सामने बाढ़ के पानी में डूबी हुईं।

बुरी तरह प्रभावित कई इलाकों में 48 घंटे से ज़्यादा समय तक बिजली गुल रहने और दूरसंचार सेवाओं के ठप रहने से कई समुदाय पूरी तरह से कट गए हैं और उन्हें अपना गुज़ारा खुद ही करना पड़ रहा है। टेलीविज़न फुटेज में सैन्य हेलीकॉप्टरों को दर्जनों जगहों पर लोगों को छतों से उठाते हुए देखा गया है, जिससे यह बात साफ़ हो जाती है कि हज़ारों लोगों को कोई चेतावनी नहीं मिली और उन्हें छतों और पेड़ों पर चढ़कर अपनी जान बचाने पर मजबूर होना पड़ा।

समय पर राहत और बचाव न पहुंचने के कारण मृतकों की संख्या बहुत ज़्यादा है। कई मामलों में, भूस्खलन बिना किसी चेतावनी के हुआ क्योंकि अधिकारी या तो अलर्ट जारी करने में विफल रहे या आख़िरी समय पर चेतावनी भेजी, जिससे लोगों को भागने का समय ही नहीं मिला।

28 नवंबर, 2025 को श्रीलंका के हापुटाले स्थित कहगल्ला एस्टेट में भूस्खलन, जहां बच्चों सहित एक ही परिवार के तीन सदस्यों की मौत हो गई। (फोटो: फ़ेसबुक: mariyan.teran) [Photo: Facebook: mariyan.teran]

शनिवार शाम को, कैंडी ज़िले के अलावाथुगोडा पुलिस प्रभाग के रामबुक-एला गांव में हुए भीषण भूस्खलन में लगभग 50 घर दब गए। लगभग 50 लोगों के लापता होने की आशंका है। इसी तरह अन्य घटनाओं की तरह, ख़राब मौसम के कारण बचाव दल समय पर घटनास्थल पर नहीं पहुंच पाए, जिससे ज़िंदा बचे लोगों को खोजने की उम्मीद ख़त्म हो गई।

बचाव अभियान अपने आप में ख़तरनाक हो गए हैं। गवारम्मना इलाके में, सड़क विकास प्राधिकरण के कर्मचारियों की एक टीम को वेलिमाडा-नुवारा एलिया मुख्य मार्ग के बीच एक मिट्टी के टीले को साफ़ करने के लिए भेजा गया था। इस अभियान के दौरान, एक कर्मचारी लापता हो गया और मलबे में दबे एक अन्य को ज़िंदा बाहर निकाल लिया गया।

देश भर में फंसे लोगों की ओर से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, ख़ासकर फ़ेसबुक पर, साफ़ पानी, भोजन, कपड़े और अन्य ज़रूरी चीज़ों के लिए सैकड़ों हताश अपीलें उमड़ पड़ी हैं। कई लोग बढ़ते बाढ़ के पानी में फंसे लोगों को बचाने के लिए बचाव दल, नावों और हेलीकॉप्टरों की तत्काल मदद की भी मांग कर रहे हैं। शिकायतें आम हैं कि सरकारी सहायता या तो बहुत अपर्याप्त है या बिल्कुल है ही नहीं।

हालांकि जनता विमुक्ति पेरामुना/नेशनल पीपुल्स पॉवर (जेवीपी/एनपीपी) सरकार ने 25,000 सैनिकों को तैनात किया है और कई नागरिक खुद ही सहायता के लिए आगे आ रहे हैं, लेकिन इस आपदा की भयावहता राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तालमेल की मांग करती है। अब तक, सरकार उससे भी कम जुटाने में विफल रही है, जितनी ज़रूरत है।

29 नवंबर, 2025 को श्रीलंका के कोलंबो के एक स्कूल में बाढ़ के कारण विस्थापित लोग भोजन लेने के लिए इंतज़ार करते हुए।

सरकार के भयानक ढीलेपन पर जनता का आक्रोश बढ़ता ही जा रहा है। राष्ट्रपति दिसानायके ने शनिवार को व्यापक आपातकाल लागू कर दिया और अपने हाथ में व्यापक शक्तियां ले लीं। और ये सब मानवीय संकट से निपटने के लिए नहीं किया गया, बल्कि बढ़ते सामाजिक अशांति को दबाने के लिए किया गया। समागी जन बालवेगया और यूनाइटेड नेशनल पार्टी सहित विपक्षी दल पहले से ही जनाक्रोश के भड़कने के डर से ऐसे ही किसी क़दम की मांग कर रहे थे।

औपचारिक आपातकाल की घोषणा से पहले ही, दिसानायके ने सभी शेल्टरों को सैन्य नियंत्रण में ले लिया था और पेट्रोलियम, गैस, बिजली, स्वास्थ्य, सिंचाई और सड़क एवं रेलवे रखरखाव जैसे प्रमुख क्षेत्रों को आवश्यक सेवा नियमों के अंतर्गत ला दिया था। एक घटना में, एक सैन्य अधिकारी ने लाउडस्पीकर के ज़रिए वालमपिटिया क्षेत्र के निवासियों को खाली करने का आदेश दिया और कलानी नदी में बढ़ते जल स्तर की चेतावनी दी।

आपातकाल की घोषणा और शेल्टरों पर सैन्य नियंत्रण का साफ़ मक़सद जन विरोध को दबाना है। यह जेवीपी/एनपीपी शासन द्वारा मज़दूर वर्ग के बढ़ते विरोध के मद्देनज़र सामाजिक और लोकतांत्रिक अधिकारों को सीमित करने के व्यापक प्रयासों को भी दिखाता है।

रविवार को एक टेलीविज़न संदेश में दिसायनायके ने पीड़ितों की मदद पहुंचाने के लिए अपनी सरकार की अथक कोशिशों का बखान करने की हताश कोशिश की। इस संकट को 'कोई छोटी चुनौती नहीं' बताते हुए, उन्होंने दावा किया कि प्रशासन की प्राथमिकता 'अल्पकालिक, मध्यम और दीर्घकालिक रूप से देश का पुनर्निर्माण' करना है। वास्तव में, यह आपदा प्रबंधन और सार्थक सहायता प्रदान करने में उनकी सरकार की घोर विफलता को छुपाने का एक कुटिल प्रयास है।

आपातकाल का बचाव करते हुए, दिसानायके ने दावा किया कि 'हमारे देश को पहले से बेहतर बनाने के लिए आवश्यक क़ानूनी सुरक्षा और वित्तीय मदद' ज़रूरी था और ज़ोर देकर कहा कि इसका इस्तेमाल दमनकारी उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाएगा। जबकि यह सरासर झूठ है।

जेवीपी/एनपीपी सरकार पहले से ही अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा निर्देशित कठोर खर्च कटौती उपायों को लागू कर रही है। ऐसे में दिसानायके के आश्वासन स्पष्ट रूप से सत्तारूढ़ हलकों और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों में अपने आलोचकों को शांत करने के लिए थे।

जैसा कि संडे टाइम्स ने 30 नवंबर को रिपोर्ट किया था, मौसम विभाग ने नवंबर के मध्य में ही वायुमंडलीय परिस्थितियों के बारे में चेतावनी जारी कर दी थी जो एक बड़े चक्रवात का रूप ले सकती थी।

विश्व मौसम विज्ञान संगठन में श्रीलंका की स्थायी प्रतिनिधि, अथुला करुणानायके ने 12 नवंबर को 'अदा डेराना बिग फ़ोकस' कार्यक्रम के दौरान सार्वजनिक रूप से चेतावनी दी थी। फिर भी, अख़बार के राजनीतिक कॉलम के अनुसार, 'जब तक आपदा का पूरा स्वरूप स्पष्ट नहीं हो गया, तब तक कोई तैयारी बैठक नहीं हुई और कोई बड़ी सार्वजनिक घोषणा नहीं की गई, जिसने देश को वर्षों में अपनी सबसे भयावह प्राकृतिक आपदाओं में से एक में धकेल दिया।'

संडे आइलैंड के साथ एक साक्षात्कार में, इंडोनेशिया के जलवायु अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. थासुन अमरसिंघे ने कहा, 'कोई प्राकृतिक आपदाएं नहीं हैं। ये शासन संबंधी आपदाएं हैं। श्रीलंका ने उन्हीं प्रणालियों को नष्ट कर दिया जो उसे सुरक्षित रखती थीं। अब जो हो रहा है वह राजनीतिक कुप्रबंधन का अनुमानित परिणाम है।' हालंकि उनकी टिप्पणियां सही हैं, लेकिन वे वैश्विक तापमान वृद्धि को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सरकारों द्वारा उठाए जा रहे अपर्याप्त उपायों को नज़रअंदाज करती हैं, जिसने सीधे तौर पर चक्रवात दित्वाह की तीव्रता में योगदान दिया।

अमरसिंहे ने यह तो बताया कि चक्रवात पीड़ितों ने खुले तौर पर 'अनियोजित विकास, नमी वाली भूमि के विनाश और राजनीतिक हस्तक्षेप' को दोषी ठहराया, लेकिन औपनिवेशिक काल की वृक्षारोपण परियोजनाओं की भूमिका को नज़रअंदाज़ कर दिया। केंद्रीय इलाक़ों में ऊंची जगहों पर हुए घातक भूस्खलन का, औपनिवेशिक शासन के दौरान लिए गए फ़ैसलों से गहरा नाता है। ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने बिना किसी वैज्ञानिक आकलन के चाय और रबर के बागान लगाने के लिए देशी जंगलों को साफ़ कर दिया और गहरी जड़ों वाली वनस्पतियों की जगह उथली जड़ों वाली एकल-फसलें उगा दीं। खड़ी ढलानों पर बनाए गए वृक्षारोपण ढांचे ने पहाड़ियों को कटाव और ढहने के प्रति अत्यधिक संवेदनशील बना दिया।

आज, मूसलाधार बारिश इन संरचनात्मक कमज़ोरियों को और बढ़ा देती है, कभी लाभदायक रहे बागानों को जानलेवा बना देती है और सैकड़ों लोगों की जान ले लेती है।

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