यह हिंदी अनुवाद अंग्रेजी के मूल का जो मूलतः Pakistani government intensifies repression after murderous assault on Islamabad protest 13 दिसम्बर को प्रकाशित हुआ थाI
पाकिस्तान की राजधानी में 26 नवंबर को निहत्थे सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों के जनसंहार के बाद, बड़े कार्पोरेट घरानों की परस्त मुस्लिम लीग (पीएमएल-एन) की अगुवाई वाली अल्पमत की सरकार और अमेरिकी शह वाली देश की सेना ने, पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ के समर्थकों के ख़िलाफ़ क्रूर कार्रवाई को जारी रखा है।
मार्च में शामिल होने के लिए इस्लामाबाद जाते समय या जनसंहार के दौरान गिरफ़्तार किए गए ख़ान के हज़ारों समर्थक जेल की सलाखों के पीछे हैं। उन्हें पाकिस्तान के निरंकुश आतंकवाद विरोधी क़ानूनों समेत कई आपराधिक मामलों में फंसाने की धमकी दी गई है।
ख़ान खुद ही, जेल की अपनी कोठरी से ही 26 नवंबर के प्रदर्शन को बुलाने के लिए 'आतंकवाद विरोधी' आरोपों का सामना कर रहे हैं और उनकी पत्नी पर भी ये आरोप लगे हैं। इस प्रदर्शन को केंद्रीय इस्लामाबाद के उस कथित रेड ज़ोन तक लाने में उनकी पत्नी ने प्रदर्शनकारियों की अगुवाई की थी, जहां सभी प्रदर्शनों पर पूरी तरह पाबंदी लगी हुई है।
पीटीआई प्रवक्ता वक़ास अकरम शेख़ ने कहा है कि पार्टी के 12 समर्थक मारे गए थे। उन्होंने जोड़ा कि, 'असल संख्या अधिक है, लेकिन हम केवल पुष्ट हुई संख्या ही मीडिया से साझा कर रहे हैं।' बिजली काटे जाने केबाद घुप्प अंधेरे में गोली बारी की गई जिसमें कई लोग और संभव है कि सैकड़ों लोग घायल हुए थे।
जबतक उसके गिरफ़्तार समर्थकों को सरकार रिहा नहीं कर देती और 26 नवंबर को हुई बड़े पैमाने पर गिरफ़्तारी और जनसंहार की जांच के लिए एक 'न्यायिक आयोग' का गठन नहीं हो जाता, पीटीआई ने 14 दिसम्बर से नागरिक 'सविनय अवज्ञा आंदोलन' शुरू करने का आह्वान किया है।
इस समय दक्षिणपंथी पीटीआई को आबादी का एक बड़ा हिस्सा सहानुभूति पूर्वक देख रहा है। वे सेना के क्रूर दमन और राजनीतिक दबंगई से नाराज़ हैं और उस सरकार को अवैध और आईएमएफ़ की खर्च कटौती को थोपने पर तुली हुई मानते हैं, जिसकी चुनावी जीत सेना द्वारा निर्देशित वोटों की धांधली के आधार पर हासिल की गई थी।
सेना और पाकिस्तानी पूंजीपति वर्ग के प्रमुख हिस्सों के आतंक के कारण, ख़ान और उनकी पीटीआई को सरकारी प्रतिष्ठानों, कुछ जजों और खुद मिलिटरी के अंदर भी सममर्थन प्राप्त है।
मंगलवार को मिलिटरी ने एलान किया कि विभिन्न आरोपों में अपनी इंटेलिजेंस एजेंसी के पूर्व प्रमुख लेफ़्टिनेंट जनरल फ़ैज़ हमीद के ख़िलाफ़ कोर्ट मार्शल का मुक़दमा चलाया जाएगा। इन आरोपों में ऑफ़ीशियल सीक्रेट एक्ट, पद का दुरुपयोग और 'राजनीतिक गतिविधियों में शामिल' होना भी शामिल है। इंटर-सर्विसेज़ इंटेलिजेंस (आईएसआई) के प्रमुख के पद पह रहते हुए वह, ख़ान और उनकी पीटीआई की जीत सुनिश्चित करने के लिए 2018 के चुनावों में सैन्य हस्तक्षेप की साज़िश रची थी। सत्ता में आने के बाद ही पीटीआई ने आईएमएफ़ की खर्च कटौती को थोपने के लिए इस्लामिक कल्याणकारी राज्य के अपने झूठे वादों से तुंरत पल्ला झाड़ लिया।
जबकि दूसरी तरफ़ ख़ान ने मिलिटरी को इसके समर्थन का बदला चुकाने के लिए उसे और अधिक सरकारी शक्तियां सौंप दीं, ख़ासकर आर्थिक मामलों में, बाद में मुख्य रूप से विदेशी नीति के मुद्दे पर सेना के शीर्ष नेतृत्व, पाकिस्तान के प्रभावी शासक वर्ग और वॉशिंगटन को उन्होंने दोषी ठहराया।
ख़ान और उनकी पीटीआई ने सेना के साथ समझौता करने की अपनी इच्छा का बार बार संकेत दिया। उन्होंने मिलिटरी निर्देशित ख़ान की सत्ता बेदख़ली, फ़रवरी 2023 के चुनावों को लूटे जाने और लगातार जारी दमन के ख़िलाफ़ अपनी आलोचना के निशाने पर कुछ चुनिंदा जनरलों को ही रखा। इन सबसे ऊपर, उन्होंने पांच नवंबर की जीत पर ट्रंप की तारीफ़ करके, वॉशिंगटन के साथ रिश्तों को सुधारने की अपनी व्यग्रता का भी संकेत दिया।
इस बीच, मिलिटरी और पीएमएल-एन की अगुवाई वाली सरकार ने अड़ियल तरीक़े से पीटीआई के सभी संकेतों को ख़ारिज़ कर दिया। इसकी बजाय उन्होंने पीटीआई को दबाने और उसे अपराधी दिखाने के अभियान में और तेज़ी ला दी।
26 नवंबर के जनसंहार के संदर्भ में, सरकार लगातार बेशर्मी से झूठ बोलती रही और किसी भी प्रदर्शनकारी को गोली मारे जाने की बात को सिरे से ख़ारिज़ करती रही। सूचना मंत्री अताउल्लाह तरार ने एक्स पर एक पोस्ट में एलान किया, 'ये शव सिर्फ टिक टॉक, फ़ेसबुक और व्हाट्सऐप पर ही मिलेंगे। वे राष्ट्र के साथ मज़ाक और झूठ की राजनीति का खेल खेल रहे हैं।' हालांकि फ़रवरी से ही पाकिस्तान में अधिकांश आबादी के लिए एक्स (पूर्व में ट्विटर) ब्लॉक है, जबकि सरकार, सेना और बड़े राजनीतिक दल इसका जम कर इस्तेमाल कर रहे हैं।
पीटीआई पर हुई कार्रवाई के बारे में कम से कम ख़बर बाहर आए इसे सुनिश्चित करने के लिए सरकार और मिलिटरी-इंटेलिजेंस एजेंसियां धमकी और पाबंदियों के मार्फ़त मीडिया पर अपनी नकेल कसे हुए हैं और दमन को व्यापक बना रही हैं। इक्का दुक्का ही ऐसे मामले हैं जब सरकारी सेंसर और मीडिया स्व-सेंसरशिप का दुष्चक्र टूटा है, जबकि पत्रकारों को निशाना बनाया गया है, जिसका उदाहरण है कि एक प्रमुख पत्रकार मतिउल्लाह जान का अपहरण किया गया, जिन पर बाद में 'आतंकवाद' का आरोप मढ़ा गया। पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने जान की तत्काल रिहाई की मांग की और कहा कि 'पत्रकारों मुंह बंद कराने के मनमाने तरीक़ों का अंत होना चाहिए।'
वर्ल्ड सोशलिस्ट वेब साइट के पाठकों ने उसे जानकारी दी है कि 29 नवंबर को पाकिस्तानी सेना ने जब इमरान ख़ान समर्थक प्रदर्शन पर 'अमेरिकी समर्थित जनसंहार में खुलेआम गोलीबारी' को अंजाम दिया, उसके बाद से ही कई दिनों तक लाहौर और क्वेटा समेत कई बड़े शहरों में वेबसाइट खुल नहीं रही थी। हालांकि इस प्रतिबंध का कितना असर था, इसका सही सही अंदाज़ा लगाना असंभ है, लेकिन इस तरह का प्रतिबंध सरकारी सेंसरशिप की खुल्लमखुल्ला कार्रवाई है।
डब्लूएसडब्ल्यूएस लेख में एक विश्लेषण प्रदान किया गया है, जिसमें इस्लामाबाद में चल रहे राजनीतिक संकट को विकसित हो रहे अमेरिकी साम्राज्यवादी नेतृत्व वाले वैश्विक युद्ध के संदर्भ में देखा गया है। इसमें कहा गया है, 'जनसंहार को पाकिस्तानी सेना ने अंजाम दिया लेकिन इस पूरे घटनाक्रम पर वॉशिंगटन और इसके यूरोपीय सहयोगियों के अंगुलियों के निशान मौजूद हैं। ख़ान, रूस और चीन के ख़िलाफ़ अमेरिकी-नेटो की युद्ध योजनाओं में हिस्सा लेने से इनकार करने के लिए साम्राज्यवादी प्रतिशोध के कारण जेल में हैं।'
यह महत्वपूर्ण है कि डब्ल्यूएसडब्ल्यूएस के लेख में लीक हुए एक राजनयिक संदेश का व्यापक हवाला दिया गया है जो इस बात का खुलासा करता है कि ख़ान को सत्ता से बेदख़ल किए जाने के पीछे वॉशिंगटन की पर्दे के पीछे भूमिका थी। इस राजनयिक संदेश में अमेरिकी विदेश विभाग के अधिकारी डोनाल्ड लू द्वारा द्वारा वॉशिंगटन में पाकिस्तानी दूतावास को कही गईं कई बातें शामिल हैं, जैसे कि, बाइडन प्रशासन ख़ान को सत्ता से हटाए जाने को सुलह समझौते से परे मानता था।
पाकिस्तान का बुर्जुआ शासक अभिजात वर्ग का सामना अभूतपूर्व चौतरफ़ा संकट से है। 24 करोड़ की आबादी वाली यह परमाणु हथियार संपन्न दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्था अभी पिछले साल ही दिवालिया होने से बाल बाल बची है, जिसका, आईएमएफ़ द्वारा निर्देशित खर्च कटौती और बाज़ार परस्त सुधारों के एक नए दौर के तहत एक और गहरे संकट में जाना तय है।
यह एक भूराजनीतिक गतिरोध भी है क्योंकि चीन और इसकी बढ़ती अर्थव्यवस्था और इसके वैश्विक प्रभाव पर व्यापक और तीव्र अमेरिकी साम्राज्यवादी हमले के बीच पाकिस्तान फंस गया है। परम्परागत रूप से इस्लामाबाद की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा नीति पाकिस्तानी मिलिटरी और पेंटागन के बीच क़रीबी साझेदारी पर निर्भर है और साथ ही चीन के साथ 'ऑल वेदर' गठबंधन पर भी। यह संतुलन लगातार असंभव होता जा रहा है क्योंकि वॉशिंगटन चीन के साथ युद्ध की तैयारी कर रहा है और इसके आर्थिक उभार को विफल करने के लिए पूरे एशिया प्रशांत में अपने आर्थिक, कूटनीतिक और सैन्य आक्रामकता में तेज़ी ला रहा है।
सबसे बढ़कर, इस्लामाबाद का कट्टर अभिजात वर्ग अपनी ही आबादी से भयभीत है। मिलिटरी देश के उत्तर पश्चिमी कबायली इलाक़ों और पश्चिम में बलूचिस्तान में आभासी कब्ज़ाधारी बल के रूप में तैनात है। यह आतंक के तरीक़े अपनाती है, जिसमें गैर न्यायिक हत्याएं, ज़बरिया लापता करना और औपनिवेशिक ज़माने की सामूहिक सज़ा शामिल हैं। अक्टूबर में, सरकार ने पश्तून डिफ़ेंस मूवमेंट या पीटीएम को प्रतिबंधित कर दिया था, जिसने 2018 में अपनी स्थापना के बाद से ही कबायली इलाक़ों में मिलिटरी दमन के ख़िलाफ़ सामूहिक प्रदर्शनों की अगुवाई की है।
विभिन्न राष्ट्रवादी और इस्लामी समूहों (जिन्हें अफ़गानिस्तान में सोवियत संघ से लड़ने के लिए 1980 के दशक में पाकिस्तान ने मुजाहिदीन को बढ़ावा और हथियार दिया) के प्रति इसकी जवाबी कार्रवाई जितनी क्रूर है, उससे भी अधिक इस्लामाबाद के सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग के लिए वह डर है कहीं मज़दूर वर्ग के अंदर से व्यापक विरोध न पैदा हो जाए। इस्लामाबाद के अभिजात वर्ग के पास पाकिस्तानी जनता की सामाजिक, लोकतांत्रिक और समतावादी आकांक्षाओं का कोई जवाब नहीं है। इसीलिए, व्यापक विरोध के बीच सरकार सेना के हाथ को और मजबूत करना चाह रही है।
आतंकवाद विरोधी अधिनियम संशोधन विधेयक 2024 और इलेक्ट्रॉनिक अपराध निवारण (संशोधन) अधिनियम, 2024 को संसद के माध्यम से लाया जा रहा है। पहले तो, 1997 के आतंकवाद विरोधी अधिनियम द्वारा स्थापित अलोकतांत्रिक दमनकारी तंत्र को और व्यापक बनाया जाएगा। यह विधेयक सुरक्षा बलों को किसी भी व्यक्ति को 3 महीने तक 'पहले से ही हिरासत' में रखने की अनुमति देगा। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने पाया कि बिल 'नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय संधि सहित अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानूनों और मानकों का पालन नहीं करता है।'
1997 का अधिनियम अपने विरोधियों को निशाना बनाने के लिए जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ (1999-2008) की अमेरिका समर्थित तानाशाही का एक बुनियादी हथियार था, और इसे धोखाधड़ी वाले 'आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध' के रूप में लागू किया गया, जिसका इस्तेमाल इस्लामाबाद ने अमेरिकी साम्राज्यवाद के साथ अपने प्रतिक्रियावादी गठबंधन को और मजबूत बनाने के लिए किया था।
ऐसी बहुत सी रिपोर्टों आ रही हैं, जिनके अनुसार, सरकार देश के अंदर और बाहर से आने जाने वाले इंटरनेट ट्रैफ़िक को नियंत्रित करने और जनता के इंटरनेट इस्तेमाल की जासूसी के लिए फ़ायरवॉल टेक्नोलॉजी का भी इस्तेमाल कर रही है। नई टेक्नोलॉजी सरकार को निगरानी करने, आवाज़ दबाने और कंटेंट ब्लाॉक करने की अभूतपूर्व ताक़त देती है। फ़ायरवॉल से उलट, जिसकी जगह इसने जगह ली है, नई तकनीक को वीपीएन तकनीकियों द्वारा बायपास नहीं किया जा सकता, जिसे यह पहचान सकता है और ब्लॉक कर सकता है। फ़ायरवॉल लोकेशन के आधार पर कंटेंट को ब्लॉक कर सकता है और आईपी-एड्रेस के आधार पर भी ब्लॉकिंग कर सकता है, जिससे विशेष नेटवर्क एड्रेस को निशाना बनाना आसान हो जाता है। यह पता लगा सकता है कि कहां से मैसेज सबसे पहले आया और कहां कहां भेजा गया।
इंटरनेट की पहुंच को नियंत्रित करने के अलावा, सरकार प्रिवेंशन ऑफ़ इलेक्ट्रानिक क्राइम (अमेंडमेंट) एक्ट के माध्यम से इंटरनेट पर कार्रवाई का दायरा और बढ़ाना चाहती है। अंग्रेज़ी दैनिक अख़बार डॉन ने दावा किया है कि उसने इस प्रस्ताव को देखा है। उसने कहा कि यह विधेयक, ऑनलाइन कंटेंट को हटाने, प्रतिबंधित कंटेंट को साझा करने या उसे हासिल करने के लिए लोगों पर मुकदमा चलाने और ऐसे कंटेंट को होस्ट करने वाले सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्मों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने जैसे मुद्दों से निपटने के लिए डिजिटल राइट्स प्रोटेक्शन अथॉरिटी (डीआरपीए) के गठन की ज़रूरत पर बल दिया है।
इस संशोधन विधेयक में सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म की परिभाषा के दायरे को और बढ़ाना भी शामिल है, ताकि सोशल मीडिया की पहुंच के लिए जो सॉफ़्टवेयर और टूल्स इस्तेमाल किया जाते हैं उन्हें भी इसमें शामिल किया जाए और उन लोगों को भी इस दायरे में लाना शामिल है जो 'ऐसे सिस्टम का प्रबंधन करते हैं जो सोशल मीडिया की पहुंच आसान' करते हैं। ये संशोधन 'फ़ेक न्यूज़' के ख़िलाफ़ कठोर तरीक़े अपनाते हैं, जोकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस्तेमाल किए जाने वाले तरीक़े- सभी को पकड़ने का औचित्य है। इसमें एक नई बात ये है कि इसमें ग़ैरज़मानती धारा जोड़ी गई है जिसमें पांच साल तक की क़ैद या 10 लाख रुपये के ज़ुर्माने का प्रावधान है (जबकि तुलनात्मक रूप से अधिकांश पाकिस्तानी मज़दूर 40,000 रुपये प्रति माह कमा नहीं पाएंगे।)